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वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते। अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत् तन्मयो भवेत् ॥ ॐ (प्रणव) है धनुष तथा आत्मा है बाण, और 'वह', अर्थात् 'ब्रह्म' को लक्ष्य के रूप में कहा गया है। 'उसका' प्रमाद रहित होकर वेधन करना चाहिये; जिस प्रकार शर अर्थात् बाण अपने लक्ष्य में विलुप्त हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य को 'उस' में (ब्रह्म में) तन्मय हो जाना चाहिये। OM is the bow and the soul is the arrow, and That, even the Brahman, is spoken of as the target. That must be pierced with an unfaltering aim; one must be absorbed into That as an arrow is lost in its target. ( मुंडकोपनिषद २.२.४ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #ॐ #ब्रह्म #धनुष #बाण
SONALI SEN
काँधे पर बंधे धनुष बाण में, राम मिले सन्तन के प्राण में, राम गगन की ऊचाई में, राम धरा की गहराई में, राम भरत के अश्रु धार में, राम लखन के शक्ती बाण में , सीता के सतित्व में राम, अग्नि परीक्षा मे श्री राम, राम ह्रदय के परिवर्तन मे, राम जगत के आवर्तन में, राम सूर्य की लालिमा में, राम चांदनी चंद्रमा में , शरण राम की भाग्य करे न्यारे, राम बसे है ह्रदय हमारे।। ©SONALI SEN काँधे पर बंधे धनुष बाण में, राम मिले सन्तन के प्राण में, राम गगन की ऊचाई में, राम धरा की गहराई में, राम भरत के अश्रु धार में, राम लखन के शक्
Parul Sharma
।। जय माँ चन्द्रघंटा ॥ कंठ में साजै श्वेतपुष्प माला,इनका ध्यान अच्छाई नैतिकता सद् गुणों की प्रवृती देने वाला। मस्तक पर मुकुट रत्नजड़ित वाला और अर्धचन्द्र का आकार लगैं जैसे घंटा ॥ त्रिनेत्री,दसभुजी,बाघबाहिनी,स्वर्णआभा वाली,दुर्गा की तृतीय रूप माँ चन्द्रघण्टा ॥ भुजाओं में धारण करती धनुष,बाण,कमल,कमंडल, वरछी, त्रिशूल,तलवार और गदा॥ कल्याणकारिणी,कष्टनिवारिणी,देती चिरायु,बल-बुद्धि,युक्ति-शक्ति,आरोग्य व सम्पदा ॥ पारुल शर्मा ।। जय माँ चन्द्रघंटा ॥ कंठ में साजै श्वेतपुष्प माला,इनका ध्यान अच्छाई नैतिकता सद् गुणों की प्रवृती देने वाला। मस्तक पर मुकुट रत्नजड़ित वाला
drsharmaofficial
तरकश में रखकर तीर तीन चल दिया रणभूमि में वो वीर छूकर माँ के चरणों को दिए वचन निभाने को हारे हुए का सहारा बन जाने को निकला वो धर्मयुद्धभूमि की ओर रोका गया युद्धभूमि से कुछ दूर याचक बन स्वयं भगवान् पधारे थे देख 'तीन बाण धारी', हरि को हांसी हो आई थी मधुर वचन तब कृष्ण ने ये ही सुनाए थे "पात विटप के सभी निहारो ! एक बाण से सब भेद कर डालो" अजब रची माया अविनाशी थी जानी ना वो हरि की ही माया थी (शेष कविता ) ^बर्बरीक^ तरकश में रखकर तीर तीन चल दिया रणभूमि में वो वीर याचक बन स्वयं भगवान् पधारे देख तीन बाण धारी हरि को हांसी हो आई मधुर वचन तब कृ
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} कुरुवंश के प्रथम पुरुष का नाम कुरु था| कुरु बड़े प्रतापी और बड़े तेजस्वी थे| उन्हीं के नाम पर कुरुवंश की शाखाएं निकलीं और विकसित हुईं| एक से एक प्रतापी और तेजस्वी वीर कुरुवंश में पैदा हो चुके हैं| पांडवों और कौरवों ने भी कुरुवंश में ही जन्म धारण किया था| महाभारत का युद्ध भी कुरुवंशियों में ही हुआ था| किंतु कुरु कौन थे और उनका जन्म किसके द्वारा और कैसे हुआ था - वेदव्यास जी ने इस पर महाभारत में प्रकाश में प्रकाश डाला है| हम यहां संक्षेप में उस कथा को सामने रख रहे हैं| कथा बड़ी रोचक और प्रेरणादायिनी है| अति प्राचीन काल में हस्तिनापुर में एक प्रतापी राजा राज्य करता था| उस राजा का नाम सवरण था| वह सूर्य के समान तेजवान था और प्रजा का बड़ा पालक था| स्वयं कष्ट उठा लेता था, पर प्राण देकर भी प्रजा के कष्टों को दूर करता था| सवरण सूर्यदेव का अनन्य भक्त था| वह प्रतिदिन बड़ी ही श्रद्धा के साथ सूर्यदेव की उपासना किया करता था| जब तक सूर्यदेव की उपासना नहीं कर लेता था, जल का एक घूंट भी कंठ के नीचे नहीं उतारता था| एक दिन सवरण एक पर्वत पर आखेट के लिए गया| जब वह हाथ में धनुष-बाण लेकर पर्वत के ऊपर आखेट के लिए भ्रमण कर रहा था, तो उसे एक अतीव सुंदर युवती दिखाई पड़ी| वह युवती सुंदरता के सांचे में ढली हुई थी| उसके प्रत्येक अंग को विधाता ने बड़ी ही रुचि के साथ संवार-संवार कर बनाया था| सवरण ने आज तक ऐसी स्त्री देखने की कौन कहे, कल्पना तक नहीं की थी| सवरण स्त्री पर आक्स्त हो गया, सबकुछ भूलकर अपने आपको उस पर निछावर कर दिया| वह उसके पास जाकर, तृषित नेत्रों से उसकी ओर देखता हुआ बोला, "तन्वंगी, तुम कौन हो? तुम देवी हो, गंधर्व हो या किन्नरी हो? तुम्हें देखकर मेरा चित चंचल हो उठा| तुम मेरे साथ गंधर्व विवाह करके सुखोपभोग करो|" पर युवती ने सवरण की बातों का कुछ भी उत्तर नहीं दिया| वह कुछ क्षणों तक सवरण की ओर देखती रही, फिर अदृश्य हो गई| युवती के अदृश्य हो जाने पर सवरण अत्यधिक आकुल हो गया| वह धनुष-बाण फेंककर उन्मतों की भांति विलाप करने लगा, "सुंदरी ! तुम कहां चली गईं? जिस प्रकार सूर्य के बिना कमल मुरझा जाता है और जिस प्रकार पानी के बिना पौधा सूख जाता है, उसी प्रकार तुम्हारे बिना मैं जीवित नहीं रह सकता| तुम्हारे सौंदर्य ने मेरे मन को चुरा लिया है| तुम प्रकट होकर मुझे बताओ कि तुम कौन हो और मैं तुम्हें किस प्रकार पा सकता हूं?" युवती पुन: प्रकट हुई| वह सवरण की ओर देखती हुई बोली, "राजन ! मैं स्वयं आप पर मुग्ध हूं, पर मैं अपने पिता की आज्ञा के वश में हूं| मैं सूर्यदेव की छोटी पुत्री हूं| मेरा नाम तप्ती है| जब तक मेरे पिता आज्ञा नहीं देंगे, मैं आपके साथ विवाह नहीं कर सकती| यदि आपको मुझे पाना है तो मेरे पिता को प्रसन्न कीजिए|" युवती अपने कथन को समाप्त करती हुई पुन: अदृश्य हो गई| सवरण पुन: उन्मत्तों की भांति विलाप करने लगा| वह आकुलित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा और तप्ती-तप्ती की पुकार से पर्वत को ध्वनित करने लगा| सवरण तप्ती को पुकारते-पुकारते धरती पर गिर पड़ा और बेहोश हो गया| जब उसे होश आया, तो पुन: तप्ती याद आई, और याद आया उसका कथन - यदि मुझे पाना चाहते हैं, तो मेरे पिता सूर्यदेव को प्रसन्न कीजिए| उनकी आज्ञा के बिना मैं आपसे विवाह नहीं कर सकती| सवरण की रगों में विद्युत की तरंग-सी दौड़ उठी| वह मन ही मन सोचता रहा, वह तप्ती को पाने के लिए सूर्यदेव की आराधना करेगा| उन्हें प्रसन्न करने में सबकुछ भूल जाएगा| सवरण सूर्यदेव की आराधना करने लगा| धीरे-धीरे सालों बीत गए, सवरण तप करता रहा| आखिर सूर्यदेव के मन में सवरण की परीक्षा लेने का विचार उत्पन्न हुआ| रात का समय था| चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था| सवरण आंखें बंद किए हुए ध्यानमग्न बैठा था| सहसा उसके कानों में किसी की आवाज पड़ी, "सवरण, तू यहां तप में संलग्न है| तेरी राजधानी आग में जल रही है|" सवरण फिर भी चुपचाप अपनी जगह पर बैठा रहा| उसके मन में रंचमात्र भी दुख पैदा नहीं हुआ| उसके कानों में पुन: दूसरी आवाज पड़ी, "सवरण, तेरे कुटुंब के सभी लोग आग में जलकर मर गए|" किंतु फिर भी वह हिमालय-सा दृढ़ होकर अपनी जगह पर बैठा रहा, उसके कानों में पुन: तीसरी बार कंठ-स्वर पड़ा, " सवरण, तेरी प्रजा अकाल की आग में जलकर भस्म हो रही है| तेरे नाम को सुनकर लोग थू-थू कर रहे हैं|" फिर भी वह दृढतापूर्वक तप में लगा रहा| उसकी दृढ़ता पर सूर्यदेव प्रसन्न हो उठे और उन्होंने प्रकट होकर कहा, "सवरण, मैं तुम्हारी दृढ़ता पर मुग्ध हूं| बोलो, तुम्हें क्या चाहिए?" सवरण सूर्यदेव को प्रणाम करता हुआ बोला, "देव ! मुझे आपकी पुत्री तप्ती को छोड़कर और कुछ नहीं चाहिए| कृपा करके मुझे तप्ती को देकर मेरे जीवन को कृतार्थ कीजिए|" सूर्यदेव ने प्रसन्नता की मुद्रा में उत्तर दिया, "सवरण, मैं सबकुछ जानता हूं| तप्ती भी तुमसे प्रेम करती है| तप्ती तुम्हारी है|" सूर्यदेव ने अपनी पुत्री तप्ती का सवरण के साथ विधिवत विवाह कर दिया| सवरण तप्ती को लेकर उसी पर्वत पर रहने लगा| और राग-रंग में अपनी प्रजा को भी भूल गया| उधर सवरण के राज्य में भीषण अकाल पैदा हुआ| धरती सूख गई, कुएं, तालाब और पेड़-पौधे भी सुख गए| प्रजा भूखों मरने लगी| लोग राज्य को छोड़कर दूसरे देशों में जाने लगे| किसी देश का राजा जब राग रंग में डूब जाता है, तो उसकी प्रजा का यही हाल होता है| सवरण का मंत्री बड़ा बुद्धिमान और उदार हृदय का था| वह सवरण का पता लगाने के लिए निकला| वह घूमता-घामता उसी पर्वत पर पहुंचा, जिस पर सवरण तप्ती के साथ निवास करता था| सवरण के साथ तप्ती को देखकर बुद्धिमान मंत्री समझ गया कि उसका राजा स्त्री के सौंदर्य जाल में फंसा हुआ है| मंत्री ने बड़ी ही बुद्धिमानी के साथ काम किया| उसने सवरण को वासना के जाल से छुड़ाने के लिए अकाल की आग में जलते हुए मनुष्यों के चित्र बनवाए| वह उन चित्रों को लेकर सवरण के सामने उपस्थित हुआ| उसने सवरण से कहा, "महाराज ! मैं आपको चित्रों की एक पुस्तक भेंट करना चाहता हूं|" मंत्री ने चित्रों की वह पुस्तक सवरण की ओर बढ़ा दी| सवरण पुस्तक के पन्ने उलट-पलट कर देखने लगा| किसी पन्ने में मनुष्य पेड़ों की पत्तियां खा रहे थे, किसी पन्ने में माताएं अपने बच्चों को कुएं में फेंक रही थीं| किसी पन्ने में भूखे मनुष्य जानवरों को कच्चा मांस खा रहे थे| और किसी पन्ने में प्यासे मनुष्य हाथों में कीचड़ लेकर चाट रहे थे| सवरण चित्रों को देखकर गंभीरता के साथ बोला, "यह किस राजा के राज्य की प्रजा का दृश्य है?" मंत्री ने बहुत ही धीमे और प्रभावपूर्वक स्वर में उत्तर दिया, "उस राजा का नाम सवरण है|" यह सुनकर सवरण चकित हो उठा| वह विस्मय भरी दृष्टि से मंत्री की ओर देखने लगा| मंत्री पुन: अपने ढंग से बोला, "मैं सच कह रहा हूं महाराज ! यह आपकी ही प्रजा का दृश्य है| प्रजा भूखों मर रही है| चारों ओर हाहाकार मचा है| राज्य में न अन्न है, न पानी है| धरती की छाती फट गई है| महाराज, वृक्ष भी आपको पुकारते-पुकारते सूख गए हैं|" यह सुनकर सवरण का हृदय कांप उठा| वह उठकर खड़ा हो गया और बोला, "मेरी प्रजा का यह हाल है और मैं यहां मद में पड़ा हुआ हूं| मुझे धिक्कार है| मंत्री जी ! मैं आपका कृतज्ञ हूं, आपने मुझे जगाकर बहुत अच्छा किया|" सवरण तप्ती के साथ अपनी राजधानी पहुंचा| उसके राजधानी में पहुंचते ही जोरों की वर्षा हुई| सूखी हुई पृथ्वी हरियाली से ढक गई| अकाल दूर हो गया| प्रजा सुख और शांति के साथ जीवन व्यतीत करने लगी| वह सवरण को परमात्मा और तप्ती को देवी मानकर दोनों की पूजा करने लगी| सवरण और तप्ती से ही कुरु का जन्म हुआ था| कुरु भी अपने माता-पिता के समान ही प्रतापी और पुण्यात्मा थे| युगों बीत गए हैं, किंतु आज भी घर-घर में कुरु का नाम गूंज रहा है| ©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey} कुरुवंश के प्रथम पुरुष का नाम कुरु था| कुरु बड़े प्रतापी और बड़े तेजस्वी थे| उन्हीं के नाम पर कुरुवंश की शाखाएं निकल
Vikas Sharma Shivaaya'
कुबेर लक्ष्मी मंत्र : ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥ पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु ऋषि का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या ख्याति से हुआ जिससे धाता,विधाता दो पुत्र व श्री नाम की कन्या का जन्म हुआ। भागवत पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के कवि नाम के पुत्र भी हुए जो कालान्तर में शुक्राचार्य नाम से प्रसिद्ध हुए। शुक्र -जिसका संस्कृत भाषा में एक अर्थ है शुद्ध, स्वच्छ, भृगु ऋषि के पुत्र एवं दैत्य-गुरु शुक्राचार्य का प्रतीक शुक्र ग्रह है। भारतीय ज्योतिष में इसकी नवग्रह में भी गिनती होती है। यह सप्तवारों में शुक्रवार का स्वामी होता है। यह श्वेत वर्णी, मध्यवयः, सहमति वाली मुखाकृति के होते हैं। इनको ऊंट, घोड़े या मगरमच्छ पर सवार दिखाया जाता है। ये हाथों में दण्ड, कमल, माला और कभी-कभार धनुष-बाण भी लिये रहते हैं। उषानस एक वैदिक ऋषि हुए हैं जिनका पारिवारिक उपनाम था काव्य (कवि के वंशज, अथर्व वेद अनुसार जिन्हें बाद में उषानस शुक्र कहा गया। शुक्र एकाक्षरी बीज मंत्र- 'ॐ शुं शुक्राय नम:। ' शुक्र तांत्रिक मंत्र- 'ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:। ' सो शिंगार वा चित्र में हतो , तैसोई वस्त्र आभूषन अपने श्रीहस्त में धारण किये ! गाय ग्वाल सखा सब साथ ले के आप पधारे !! इस दोहे में रसखान जी कहते है कि चित्र में जैसा श्रृंगार था ठीक उसी प्रकार का श्रृंगार करके श्री कृष्ण पीताम्बर रूप में अपने ग्वाल बाल गोपो के साथ वे रसखान से मिलने पहुँच जाते है जहाँ रसखान बैठकर कृष्ण के प्रेम में आंसू बहा रहे थे ! 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' कुबेर लक्ष्मी मंत्र : ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥ पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस प
Ƈђɇҭnᴀ Ðuвєɏ
Vikas Sharma Shivaaya'
नवरात्र के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है। इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। इनका वाहन सिंह है और दस हाथ हैं। इनके चार हाथों में कमल फूल, धनुष, जप माला और तीर है। पांचवा हाथ अभय मुद्रा में रहता है। वहीं, चार हाथों में त्रिशूल, गदा, कमंडल और तलवार है। पांचवा हाथ वरद मुद्रा में रहता है। मान्यता है कि भक्तों के लिए माता का यह स्वरू बेहद कल्याणकारी है। मां चंद्रघंटा के मंत्र: पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥ ध्यान मंत्र: वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्। सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥ मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्। खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥ 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 नवरात्रि के चौथे दिन मां के चौथे स्वरूप माता कूष्मांडा की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता कूष्मांडा ने ही ब्रहांड की रचना की थी। इन्हें सृष्टि की आदि- स्वरूप, आदिशक्ति माना जाता है। मां कूष्मांडा सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं। मां के शरीर की कांति भी सूर्य के समान ही है और इनका तेज और प्रकाश से सभी दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। मां को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में जपमाला है। मां सिंह का सवारी करती हैं। देवी कूष्मांडा मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ध्यान मंत्र: वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्. सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्॥ सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥ – दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्. जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥ – जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्. चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥ 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' नवरात्र के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है। इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा क
Vikas Sharma Shivaaya'
🚩🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🚩 🙌🚩🔱 मां जगदम्बे🔱 हमेशा हमारा -आपका मार्गदर्शन करती रहें..., 📖✒️जीवन की पाठशाला 📙 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 मां दुर्गा का स्वरूप: कुष्माण्डा नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कुष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है-इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित होता है..., जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी- अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं, इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है-वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है- इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं..., इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं,ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है,माँ की आठ भुजाएँ हैं,अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं..., इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है-आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है,इनका वाहन सिंह है..., मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।' माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं- इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है-माँ कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है..., श्लोक: सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥ Affirmations: 66.मेरे जीवन में इस दशा की जरूरत को में जाने देता हूं..., 67. मैं भी किसी योग्य हूं ..., 68. मै अपने जीवन के लिए धनाढयता घोषित करता हूं..., 69.मैं अपनी आंतरिक बुद्धि पर भरोसा करता हूँ ..., 70.मेरा प्रेम असीम है..., बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गई की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ....सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ....! 🙏सुप्रभात 🌹 आपका दिन शुभ हो विकास शर्मा'"शिवाया" 🔱जयपुर -राजस्थान 🔱 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🚩🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🚩 🙌🚩🔱 मां जगदम्बे🔱 हमेशा हमारा -आपका मार्गदर्शन करती रहें..., 📖✒️जीवन की पाठशाला 📙 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल
Vikas Sharma Shivaaya'
🚩🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🚩 🙌🚩🔱 मां जगदम्बे🔱 हमेशा हमारा -आपका मार्गदर्शन करती रहें..., 📖✒️जीवन की पाठशाला 📙 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 मां दुर्गा का स्वरूप: कुष्माण्डा नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कुष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है-इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित होता है..., जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी- अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं, इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है-वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है- इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं..., इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं,ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है,माँ की आठ भुजाएँ हैं,अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं..., इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है-आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है,इनका वाहन सिंह है..., मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।' माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं- इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है-माँ कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है..., श्लोक: सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥ Affirmations: 66.मेरे जीवन में इस दशा की जरूरत को में जाने देता हूं..., 67. मैं भी किसी योग्य हूं ..., 68. मै अपने जीवन के लिए धनाढयता घोषित करता हूं..., 69.मैं अपनी आंतरिक बुद्धि पर भरोसा करता हूँ ..., 70.मेरा प्रेम असीम है..., बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गई की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ....सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ....! 🙏सुप्रभात 🌹 आपका दिन शुभ हो विकास शर्मा'"शिवाया" 🔱जयपुर -राजस्थान 🔱 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🚩🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🚩 🙌🚩🔱 मां जगदम्बे🔱 हमेशा हमारा -आपका मार्गदर्शन करती रहें..., 📖✒️जीवन की पाठशाला 📙 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल