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हर स्त्री में, मां ढूंढते,बहन ढूंढते, बेटी भी ढूंढते और ढूंढते है उसमें अपनी अर्धागिनी का रूप, इतने रूप रखने वाली औरत आखिर है इतनी मजबूर क्यूं? होती जो सम्मान की मूर्त, समझा जाता उसे बस महज समान क्यूं? जन्मा जिस इंसानों को उसने, आज उनसे ही बचने को करती वो प्रयत्न, काली अंधेरी रातों से ज्यादा, सड़को पे डरती वो अपनी ही अविष्कार( पुरुष) से, कभी जला दी जाती, तो कभी होती वो बलात्कार का शिकार अपने ही अंदर से निकले इंसान से , एक दिन पूजो,बाकी दिन करो अपमान , फिर गर्व से बोलो नारी है हमारी सम्मान। Women's day:- नारी तू दुर्गा, तू सर्वशक्ति। Other days :- वो देखो item (लड़की) जा रही है एकदम माल लग रही है,पटाखा। Hypocrisy of the people
Vandana
नटखट शरारती,, है मनचली दिल की है नादान..बातें बड़ी-बड़ी नटखट शरारती,,है मनचली दिल की है नादान..बातें बड़ी-बड़ी,,, अक्ल की थोड़ी कच्ची है पर बातें इसकी सच्ची है,,,, खुशियां बांटती है गम ले लेती
Swatantra Yadav
नियंत्रण रेखा पार कर गया है तुझे तेरा यूं महंगें रिसार्ट शिफ्ट करना क्यों ना अब द्विपक्षीय वार्ता कर ,गोलमेज सम्मेलन करा लें बस एक तुम समर्थन कर दो मेरे दावेदारी का आओ ख़रीद फरोख्त कर मिलीजुली सरकार बना लें। कोई किसान अपने खेत में हल चला रहा था। बरसात के बाद का मौसम था ,हल के पीछे जमीन से बहुत से कीड़े मकोड़े निकल रहे थे.... उन कीड़े मकोड़ों को खान
स्वतन्त्र यादव
नियंत्रण रेखा पार कर गया है तुझे तेरा यूं महंगें रिसार्ट शिफ्ट करना क्यों ना अब द्विपक्षीय वार्ता कर ,गोलमेज सम्मेलन करा लें बस एक तुम समर्थन कर दो मेरे दावेदारी का आओ ख़रीद फरोख्त कर मिलीजुली सरकार बना लें। कोई किसान अपने खेत में हल चला रहा था। बरसात के बाद का मौसम था ,हल के पीछे जमीन से बहुत से कीड़े मकोड़े निकल रहे थे.... उन कीड़े मकोड़ों को खान
Krishna Bhoi
अगर पटाखा और फुलझड़ी! ये दो शब्द सुनकर आपके दिमाग में पहली इमेज दीपावली की आती है तो सच में… आप एक अच्छे इंसान है! 😂😂😂😂 ©Krishna Bhoi अगर पटाखा
Akshit Ojha
इंसानियत कितनी शर्मसार हो चुकी है ? ये पहली बार नहीं है कई बार हो चुकी है ! क्या कसूर था उस बेज़बान हथनी का कोई बताओ मुझे ?😑 आखिर किसी की मौत ,किसी के लिए क्यों त्यौहार हो चुकी है ? 😑 क्या बीती होगी उस पर जरा सोच कर देखो, अब तो यकीन हो गया ,मानवता तार-तार हो चुकी है ।। अगर आप लोग अवगत ना हो तो बताना चाहूंगा एक गर्भवती हथनी गांव में प्रवेश करती है तो वहां के लोग उसको पपीते में पटाखा भर के खिला देते हैं जिसस
Arsh Ansari
अच्छा! लगता है आज दिवाली है। सुनों ऐ! पटाखा रुपी पैसों में आग लगाने वालों, उसका भी सोंचो जिसके दोनों हाथ ख़ाली हैं। अपने पैरों को ज़मीं पर रखों, न छुओ आसमानों को, कुछ खुशियाँ बांटो उससे, रसोई में ख़ाली पड़ी जिसके थाली है। एक दिया भी रौशन न हुआ उस ग़रीब की चौखट पर, परसों से फर्श पर पड़ी उसकी तेल की बॉटल जो ख़ाली है। अपने मन से कुछ हिस्सा ही डाल, दो उसकी झोली में, ज़रा देखो तो, उसके कुर्ते में कितनी सारी जाली हैं।। जब पटाखों का शोर, पड़ता है उसके कानों में, सहम जाता है वो देख बच्चे की आंखें कितनी सवाली हैं। तुम्हारी महफ़िल से लौटते, हमने आंसुओं संग गला घूँटते देखा उसका, वह भी उन ख़ुशियों में शामिल होना चाहता था, पर लोगो ने देकर धक्का दी उसे साथ में चार गाली हैं।। आज फ़िर से किसी की हैप्पी तो किसी की सिर्फ दिवाली है।। अगर हमारा पड़ोसी ही खुश नहीं तो केसी यह हैप्पी दिवाली है।। अच्छा! लगता है आज दिवाली है। सुनों ऐ! पटाखा रुपी पैसों में आग लगाने वालों, उसका
Aprasil mishra
"वर्तमान समाज में मित्रता स्थापित करना और उसे निभा पाना हमारे जीवन का एक असफल अध्याय, कारण एकमात्र हमारे आदर्शवाद, अर्जित संस्कार और अपशब्द रहित अभिव्यक्ति। " यह पूर्वोत्तर की क्षेत्रीय भाषी निजी दर्शन पर आधारित प्रथम रचना (अनुशीर्षक उपलब्ध) # हम विशुद्ध भाषा के प्रयोगकर्ता हमेशा रहे, अतः भाव केन्द्रित ही रहें लेखन त्रुटियाँ संभाव्य हैं। ************************** "अद्यसमाज की नवयुवा मैत्री संरचना व चरित्र, हमारा व्यक्तिगत अलगाव व स्वयं से वार्ता। "------- ===================