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Praveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी ख्वाव जमी पर उतरते नही चाँद और मंगल पर जीवन की दुहाई देते है कितने भटकाव पैदा, अवरुद्ध जिंदगी हुयी है राष्ट्रवाद जनता की भलाई और तरक्की का सौपान है मगर आज सियासत की आड़ में कौनसा राष्ट्रवाद पनप रहा है हक सबका मार कर भी कर्जदार देश हो रहा है नैतिकता के अभाव में ,सियासी झुंड लूट में बदल रहा है शक्ति पाकर सत्ता की गुमराह देश को कर रहा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #alone_quotes हक सबका मारकर भी देश कर्जदार हो रहा है #nojotohindi
#alone_quotes हक सबका मारकर भी देश कर्जदार हो रहा है #nojotohindi #कविता
read morePoet Kuldeep Singh Ruhela
बड़ी मुद्दत से थी तमन्ना मेरी एक मोटर कार लेने की अपना रुतबा देखा तो अपनी खुशी को मारकर वापस आ गया यारो ©Poet Kuldeep Singh Ruhela बड़ी मुद्दत से थी तमन्ना मेरी एक मोटर कार लेने की अपना रुतबा देखा तो अपनी खुशी को मारकर वापस आ गया यारो
बड़ी मुद्दत से थी तमन्ना मेरी एक मोटर कार लेने की अपना रुतबा देखा तो अपनी खुशी को मारकर वापस आ गया यारो #शायरी
read moreAJAY NAYAK
पुराने दिनों के विद्यालय उन दिनों की बात ही न कीजिए जब झोला उठाए, पहुंच गए विद्यालय जब झोला उठाए, पहुंच गए घर बस रास्ते होते थे अलग अलग बस बहाने होते थे अलग अलग जाते थे तो एक बड़े से गेट से निकलते थे अलग अलग रास्तों से कहीं दिवाल फान कर तो कहीं कटीले तारों के बीच से कभी खुद का पेट दुख रहा है के बहाने से कभी दोस्त का दुख रहा है के बहाने से हद तो तब कर देते थे जब पापा मम्मी बीमार ही हो जाते थे उससे भी ज्यादा हद तब करके निकल जाते थे जब अपनी नाना नानी दादा दादी को ही मार देते थे आधे दिन की छुट्टी के लिए मार भी मिलती थी मास्टर से बहुत जब मौका मिलता था मौका फिर से कोई बहाना तरकीब निकाल निकल लेते थे वो दिन बड़े सुहाने थे न बोझ था न तनाव था जितनी हरियाली खेतो में थी उतनी हरियाली हमारे मनो में थी एक दूसरे के घर वालों को हर रोज मारकर हम सभी दोस्त एक ही रिक्शा में सवार हो घर जाते थे –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #पुरानेदिनकेविद्यालय पुराने दिनों के विद्यालय उन दिनों की बात ही न कीजिए जब झोला उठाए, पहुंच गए विद्यालय जब झोला उठाए, पहुंच गए घर बस
#पुरानेदिनकेविद्यालय पुराने दिनों के विद्यालय उन दिनों की बात ही न कीजिए जब झोला उठाए, पहुंच गए विद्यालय जब झोला उठाए, पहुंच गए घर बस #कविता
read moreN S Yadav GoldMine
White {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व पत्र्चदश अध्याय: श्लोक 1-18 📜 भीमसेन का गान्धारी को अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा मॉंगना, युधिष्ठिर का अपना अपराध स्वीकार करना, गान्धारी के दृष्टिपात से युधिष्ठिर के पैरों के नखों का काला पड़ जाना, अर्जुन का भयभीत होकर श्रीकृष्ण के पीछे छिप जाना, पाण्डवों का अपनी माता से मिलना, द्रौपदी का विलाप, कुन्ती का आश्वासन तथा गान्धारी का उन दोनोंको धीरज बँधाना. 📜 वैशम्पायन उवाच वैशम्पायन जी कहते हैं-जनमेजय ! गान्धारी की यह बात सुनकर भीमसेन नें डरे हुए की भॉंति विनय पूर्वक उनकी बात का उत्तर देते हुए कहा। माताजी ! यह अधर्म हो या धर्म मैंने दुर्योधन से डरकर अपने प्राण बचाने के लिये ही वहॉं ऐसा किया था अत: आप मेरे उस अपराध को क्षमा कर दें। 📜 आपके उस महाबली पुत्र को कोई भी धर्मानु कूल युद्ध करके मारने का साहस नहीं कर सकता था अत: मैंने विषमता पूर्ण बर्ताव किया। पहले उसने भी अधर्मसे ही राजा युघिष्ठिर को जीता था और हम लोगों के साथ सदा धोखा किया था, इसलिये मैंने भी उसके साथ विषम बर्ताव किया। कौरव सेना का एक मात्र बचा हुआ यह पराक्रमी वीर गदा युद्ध के द्वारा मुझे मारकर पुन: सारा राज्य हर न ले, 📜 इसी आशड्का़ से मैंने वह अयोग्य बर्ताव किया था। राजकुमारी द्रौपदी से, जो एक वस्त्र धारण किये रजस्वला अवस्था में थी, आपके पुत्र ने जो कुछ कहा था, वह सब आप जानती हैं। दुर्योधन का संहार किये बिना हम लोग निष्कण्टक प्रथ्वी का राज्य नहीं भोग सकते थे, इसलिये मैंने यह अयोग्य कार्य किया। 📜 आपक ेपुत्र ने तो हम सब लोगों का इससे भी बढ़कर अप्रिय किया था कि उसने भरी सभा में द्रौपदी को अपनी बॉंयी जॉंघ दिखायी। आपके उस दुराचारी पुत्र को तो हमें उसी समय मार डालना चाहिये था, परंतु धर्मराज की आज्ञा से हम लोग समय के बन्धन में बँधकर चुप रह गये। 📜 रानी ! आपके पुत्र ने उस महान् वैर की आग को और भी प्रज्वलित कर दिया और हमें वन में भेजकर सदा क्लेश पहुँचाया इसीलिये हमने उसके साथ ऐसा व्यवहार किया है। रणभूमि में दुर्योधन का वध करके हमलोग इस वैर से पार हो गये। राजा युधिष्ठिर को राज्य मिल गया और हम लोगों का क्रोध शान्त हो गया। 📜 गान्धार्युवाच गान्धारी बोलीं –तात ! तुम मेरे पुत्र की इतनी प्रशंसा कर रहे हो इसलिये यह उसका वध नहीं हुआ (वह अपने यशोमय शरीर से अमर है) और मेरे सामने तुम जो कुछ कह रहे हो, वह सारा अपराध दुर्योधनbने अवश्य किया है। भारत ! परंतु वृषसेन ने जब नकुल के घोड़ो को मारकर उसे रथहीन कर दिया था, 📜 उस समय तुमने युद्ध में दु:शासन -को मारकर जो उसका खून पी लिया, वह सत्पुरुषों द्वारा निन्दित और नीच पुरुषों द्वारा सेवित घोर क्रूरता पूर्ण कर्म है। वृकोदर ! तुमने वही क्रूर कार्य किया है, इसलिये तुम्हारे द्वारा सत्यन्त अयोग्य कर्म बन गया है। भीमसेन उवाच भीमसेन बोले—माताजी ! दूसरे का भी खून नहीं पीना चाहिये फिर अपना ही खून कोई कैसे पी सकता है ? 📜 जैसे अपना शरीर है, वैसे ही भाई का शरीर है।अपने में और भाई में कोई अन्तर नहीं है। मॉं ! आप शोक न करें। वह खून मेरे दॉंतो और ओठों को लॉंघकर आगे नहीं जा सका था। इस बात को सूर्य-पुत्र यमराज जानते हैं, कि केवल मेरे दोनों हाथ ही रक्त में सने हुए थे। 📜 युद्ध में वृषसेन के द्वारा नकुल के घोड़ो को मारा गया देख जो दु:शासन के सभी भाई हर्ष से उल्लसित हो उठे थे, उनके मनमें वैसा करके मैंने केवल त्रास उत्पन्न किया था। द्यतक्रीडा के समय जब द्रौपदी का केश खींचा गया, उस समय क्रोध में भरकर मैंने जो प्रतिज्ञा की थी, उसकी याद हमारे हृदय में बराबर बनी रहती थी। ©N S Yadav GoldMine #sad_shayari {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व पत्र्चदश अध्याय: श्लोक 1-18 📜 भीमसेन का गान्धारी को अपनी सफाई देते हुए उनसे क्
#sad_shayari {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व पत्र्चदश अध्याय: श्लोक 1-18 📜 भीमसेन का गान्धारी को अपनी सफाई देते हुए उनसे क् #कोट्स
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
उडियाना छन्द :- स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें । और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।। जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा । देखता हूँ फिर वहाँ , घेरकर सब खड़ा ।। मारकर सब डुबकियां , पाप धोने चले । मातु गंगा सोचती , तनय कैसे पले ।। पीर इनकी सब मिटे, और आगे बढ़े । राह जीवन की सभी , स्वयं चलकर गढ़े ।। कष्ट सारे झेलकर , चक्षु जिनके खुले । राम-सिय जपते रहे , श्वास जब तक चले ।। लौट जायें वो सभी, सुगम पथ पर कहीं । विनय करता यह प्रखर , आप ठहरे वहीं ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR उडियाना छन्द :- स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें । और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।। जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा । देखता ह
उडियाना छन्द :- स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें । और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।। जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा । देखता ह #कविता
read moreAJAY NAYAK
कुछ अलग तरह का बंदा हूं अँख से अँख मिलेगी तभी समझ आएगा तेरा किससे पड़ा है पाला अँख फोड़कर नही ये आज का वो बंदा है सिर्फ अँख मारकर निकल जाएगा –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #sadak #Eyes कुछ अलग तरह का बंदा हूं अँख से अँख मिलेगी तभी समझ आएगा तेरा किससे पड़ा है पाला
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