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Stories related to 'जागो फिर एक बार कविता का अर्थ'

Parasram Arora

अर्थ अनर्थ

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Unsplash मन अगर संवेदबमनाओ के संवेनद से भरा हो तों 
अनर्थ क़ी झड़ मे से भी अर्थ  डुंडा जा सकता है

©Parasram Arora अर्थ  अनर्थ

Raja Basumatary

जागो और जगाओ

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Matangi Upadhyay( चिंका )

एक बार महसूस हो जाए तो 🤔 #matangiupadhyay Life

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एक बार मुझे महसूस हो जाए 
की मेरी वजह से किसी को तकलीफ हो रही है, 
मेरे होने से किसी को असुविधा हो रही है, 
मेरा होना जरूरी नहीं है फिर भी मैं हूँ, 
जबरदस्ती कोई Attitude दिखा रहा है, 
सीधी बातों का गलत अर्थ निकाल रहा है,
 इनमें से कोई भी बात महसूस होते ही 
मै उस इंसान से हमेशा के लिए रिश्ता खत्म कर, 
दुबारा जीवन पर्यंत नहीं मिलूँगी..!

©Matangi Upadhyay( चिंका ) एक बार महसूस हो जाए तो 🤔
#matangiupadhyay #Nojoto #Life

SumitGaurav2005

अनुप्रास अलंकार वाली कविता। अलंकार का अर्थ है काव्य या भाषा को शोभा देने वाला मनोरंजक तरीका। जब किसी काव्य में एक या एक से अधिक वर्णों की प

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White मेरा मन मस्तिष्क मदहोश करती मतवाली अदा,
सनम तू मेरे लिए है हर पल ही ज़माने से जुदा। 

क्यों रहती गुपचुप गुमसुम गुम हो किन ख़्यालों में,
तुम ही बसी हो सनम मेरे हर इक सवालों में।

बड़ी बेचैनी बड़ी बेताबी खोया है बड़ा करार,
जब से तुमसे सनम हो गया है मुझको प्यार।

पहले प्यार की पहचान होनी बड़ी  है जरूरी,
फिर हमारे बीच सनम क्यों है इतनी ज्य़ादा दूरी।

चाह मेरी चाहना तुम्हें चाहत फिर भी है अधूरी, 
सनम अपना लो मुझे हर कमी हो जाए पूरी।

कर रहे कब से इंतज़ार इनकार या इकरार करो,
प्यार का इज़हार करने से किसी से  भी ना डरो।

या तो अपना लो मुझे या फिर साफ मना करो,
ऐसी भी क्या मज़बूरी थोड़ा तो इंसाफ करो।
✍🏻सुमित मानधना 'गौरव'😎

©SumitGaurav2005 अनुप्रास अलंकार वाली  कविता। अलंकार का अर्थ है काव्य या भाषा को शोभा देने वाला मनोरंजक तरीका। जब किसी काव्य में एक या एक से अधिक वर्णों की प

Baljeet Singh

उठो जागो।

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White उठो जागो और प्रयास करो तब तक करते रहो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए, बदलाव क्षणों में होता है।

©Baljeet Singh उठो जागो।

Manisha Keshav https://www.audible.in/pd/Jab-Tera-Zikr-Hota-Hai-When-You-Are-Mentioned-Audiobook/B0D94RCK97

#समझ सको तो अर्थ हूँ #कविता Love

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White https://www.amazon.in/dp/9363303624/ref=sr_1_1?crid=1BG7ESUNE99LA&dib=eyJ2IjoiMSJ9.u_X-ACLRxc3Bp_N1TlG0rQ.6Qiwd2Wla8gtRO9hqyOuf_aJyG0p-vE3cHJ7OViYmlY&dib_tag=se&keywords=9789363303621&qid=1730815253&sprefix=9789363306233%2Caps%2C378&sr=8-1

©Manisha Keshav https://www.audible.in/pd/Jab-Tera-Zikr-Hota-Hai-When-You-Are-Mentioned-Audiobook/B0D94RCK97 #समझ सको तो अर्थ हूँ #कविता #Love

Sumit Kumar

शादी का सही अर्थ..

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Parasram Arora

i एक नूई कविता का प्रजनन

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White उलझन वाले छंदो 
मे उलझ कर 
कविता मेरी थक
 कर हाफने लगी है

लगता है  अब एक
 नई कविता 
मन के केनवास पर 
कहीं जन्म न लें रहीं हो

©Parasram Arora i एक नूई कविता का प्रजनन

neelu

#good_night #आप #अपना एक शब्द बना सकते हैं और फिर दिन में उसे चार बार रिपीट #करेंगे तो #आपको याद रहेगा

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White सारे मामलों की, सारे समस्यों की 
सारे फसाद की जड़ है...........
बात  शुरू ...बात खत्म
ऐसी कोई एक वजह होती तो
 कितना अच्छा होता है..
आप अपना एक शब्द बना सकते हैं
 और 
फिर दिन में उसे चार बार रिपीट करेंगे 
तो आपको याद रहेगा..

©neelu #good_night #आप #अपना एक शब्द बना सकते हैं और फिर दिन में उसे चार बार रिपीट #करेंगे तो #आपको याद रहेगा

नवनीत ठाकुर

#प्रकृति का विलाप कविता

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जमीन पर आधिपत्य इंसान का,
पशुओं को आसपास से दूर भगाए।
हर जीव पर उसने डाला है बंधन,
ये कैसी है जिद्द, ये किसका  अधिकार है।।

जहां पेड़ों की छांव थी कभी,
अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी।
मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया,
ये कैसी रचना का निर्माण है।।

नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने,
पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है।
प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र,
बस खुद की चाहत का संसार है।
क्या सच में यही मानव का आविष्कार है?

फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है,
सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है।
बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है,
उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है।
 हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है,
किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है,
इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।।

हरियाली छूटी, जीवन रूठा,
सुख की खोज में सब कुछ छूटा।
जो संतुलन से भरी थी कभी,
बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।।
बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, 
विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है।
हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, 
ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है?
ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है?
क्या यही मानवता का सच्चा आकार है?

©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता
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