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Biikrmjet Sing
अमृत वेला सच नाओ वडिआई वीचार।। अर्थ:- जब हम सन्तो द्वारा हरिकथा जिसमे नाम ध्यान की विधि है ऐसी वडिआई सुनते व नाम ध्यान करते हैं यानी प्रकाश को देखते हैं नेत्रों से तो वह समय हमारे लिए अमृत वेला यानी वह पल हमारे मन के लिए अमृत तुल्य हो जाते है क्योंकि तब हमारे नेत्र अमृत को यानी प्रकाश रूप परमेश्वर को देख रहे होते हैं।। ©Biikrmjet Sing #अमृतवेला
vritaant naam hai
योग का मतलब है जोड़ना, खुद में ऊर्जा को समाहित करना शरीर, मन और आत्मा को मजबूत और खूबसूरत बनाना ©vritaant naam hai योग का मतलब #YogaGoodHealth
Manojkumar Srivastava
White विशाल से विशाल पत्थर सैकड़ों साल पड़ा रहता है तो उसमें कोई गतिविधि और हलचल नहीं होती! वह हिल- डुल नहीं सकता और न कोई क्रिया कर सकता क्योंकि वह अचेतन है,निष्क्रिय है! दूसरी ओर चींटी सबसे छोटा जीव है फिर भी चल,फिर सकता है,आगे- पीछे चल सकता है! खा पी सकता है,सो सकता है और वह जो चाहे वह क्रिया कर सकता है क्योंकि वह चेतन है,सजीव है! मनुष्य के अलावा अन्य जीवों में चेतना का स्तर न्यून होता है! चेतना जितनी अधिक होगी सृजनशीलता,चिन्तनशीलता- मननशीलता उतनी अधिक होगी जिससे नये- नये विचार उत्पन्न होंगे! मनुष्यों में भी चेतना का स्तर समान नहीं होता! मैंने इंटरमीडिएट में तर्कशास्त्र पढ़ा है! इसमें मनुष्य और पशु में अन्तर बताया गया है! मनुष्य= पशुता+ विवेकशीलता (Human beings=Animality + Rationality) चिन्तन- मनन करनेवाले प्राणी को मनुष्य कहा गया है और जो चिन्तन- मनन में दक्ष होता है उसे मुनि कहते हैं! अत: मुनियों को चिन्तन- मनन से भागना नहीं चाहिए! किसी भी विषय पर निष्पक्ष होकर तार्किक रूप से विचार करना चाहिए किन्तु यह घोर आश्चर्य का विषय है हर वर्ग- अनपढ़,शिक्षित,उच्च शिक्षित,गरीब,धनी से चिन्तन- मनन की प्रवृत्ति लुप्त हो रही है! मुनि समाज में स्थिति सुखद नहीं है! किसी विषय पर चर्चा नहीं करना और किसी पुस्तक में जो भी लिखा गया है उसे ही अन्तिम मान लेना मानसिकता बन गयी है जो मुनि समाज के विकास में बाधक बन सकता है! जय जय जीव मुनि/ मुनिमती जी!🙏🌺🌻🌹🌷 सद्गुरु योगेश्वर शिव मुनि महाराज की जय! ©Manojkumar Srivastava #nightthoughts #योग का महत्त्व#
mera krishna prem
योग तो मन का हो, ऐसी कसरत ,ऐसी कसरत की गोविंद मिल जाए🙏🙏 योग मन का होना चाहिए
Dr. Govind dhar Dwivedi
BRAHMRISHI SRIRAM
हमारे जीवन में मन का अहम स्थान है।मन आत्मा में निवास करने वाली महा शक्ति है। दुनिया में मन की गति का कोई माप नही है। कहा जाता है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत।। मन के संयम से परमात्मा तक पहुंचा जा सकता है।मन का नियन्त्रण ही योग है।मन के संयम से सर्वस्व का नियन्त्रण हो जाता है। ©BRAHMRISHI SRIRAM मन का नियन्त्रण ही योग है।