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राजेंद्रभोसले
राष्ट्रातील अस्पृश्यतेच्या निर्मूलनाचा सण की प्रगत जाती सत्ताकनिर्मितीचा वण।।धृ।। स्वराज्याला चोऱ्याहत्तर वर्ष जरी उलटली अजून विषारी नजरेची पिलावळ बाळगली माकडांची पिले आधुनिक माणूस झाली की माणसाचीच पिलावळ माकड जहाली घटनाशिल्पी बाबासाहेबांचं केवढं ऋण।।१।। स्वाभिमानाची चळवळ पेरली समाजात कायद्याची कलमं रक्षिते हक्काची वात समता बंधुतेचे नियम घटनेच्या ग्रंथात नेता, प्रशासक बेधुंद राज्य कारभारात ह्या सत्ताधीशाचे कधी पालटेलं मन।।२।। खंत भारत मातेची
Anuradha Priyadarshini
धरती माँ के गर्भ में,बहुत रत्न भंडार। जिसको पाने के लिये,मनुज का अत्याचार। ©Anuradha Priyadarshini #धरती
Anekanth B
धरती धँस गई धरती उनकी निवृत्ति की मेरी बात सुनकर किसकी धरती ? धरती किसीकी धँसी नहीं तुम भ्रम में हो धरती नहीं धँसती वह सिर्फ़ घूमती है इसे कोई रोककर रख नहीं सकता धरती स्थिर नहीं है घूमती है उसे घूमने दो क्यों उसे स्थिर रहने दो । कभी नहीं भरता जी जितना भरो उतना ही रीता रहता है जी हित इसीमें है इस सच को समझ लो । न धरती स्थिर , न आकाश स्थिर धरती और आकाश के बीच चर-अचर भी अस्थिर इस परम सत्य को जानकर चित्त को अपने में करो सुस्थिर वहीं है परम सुख और परम आनंद भी भरपूर । -बाहुबली भोसगे धरती
Anekanth Bahubali
धरती धँस गई धरती उनकी निवृत्ति की मेरी बात सुनकर किसकी धरती ? धरती किसीकी धँसी नहीं तुम भ्रम में हो धरती नहीं धँसती वह सिर्फ़ घूमती है इसे कोई रोककर रख नहीं सकता धरती स्थिर नहीं है घूमती है उसे घूमने दो क्यों उसे स्थिर रहने दो । कभी नहीं भरता जी जितना भरो उतना ही रीता रहता है जी हित इसीमें है इस सच को समझ लो । न धरती स्थिर , न आकाश स्थिर धरती और आकाश के बीच चर-अचर भी अस्थिर इस परम सत्य को जानकर चित्त को अपने में करो सुस्थिर वहीं है परम सुख और परम आनंद भी भरपूर । -बाहुबली भोसगे धरती
Anuradha Priyadarshini
सुनो धरा के लाल सुनो अब, जंगल को अब न कटने दो। धरा को वात्सल्य लुटाने दो, जीवन को मुस्कराने दो।। ©Anuradha Priyadarshini धरती
Anuradha Priyadarshini
धरती की बातें बड़ी ही निराली बदले मौसम की अपनी कहानी कभी जाड़े की धूप मन खिलाए वही धूप गर्मी में बहुत झुलसाती ©Anuradha Priyadarshini धरती
Asrahul
#5LinePoetry पानी की उठती तेज लहर, किरणों से घिरती देख पहर, कोयल की कू कू की सरगम, मध्यम चलती मनमोह पवन। पत्तो का ये इठलाता पन, घायल होता ये मेरा मन, फूलो की महक का इतराना, पानी में झलकता दीवाना, इन लफ्जो में क्यों जान पिरो, दिल का नजराना लिखता है, धरती को खुदको सौंप कर, ये शाम घराना लिखता है।। ©Asrahul धरती
Sangram Nikhil Singh
ख़तरा इमारतों से नही है धरा को, इक इंसान ही है जो इसका भार बढ़ा रहा है... #धरती
sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3
तुम जब दुनियामें नहीं थे... तब भी मैं मौज़ूद थी..। जब तुम नहीं रहोगे ... तब भी मेरा वज़ूद रहेगा..। ऎ इनसान.... तुम्हारॆ होने या ना होने से.. मेरा कुछ बिगड़ता नहीं..। अपने होने पे तुम्हें... ज्यादा इतराने की जरूरत नहीं..। धरती