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Bhanu Priya
दोपहर की तीखी धूप में , एक पागल छत को सुखा रही थी , जलते सूरज के साथ , खुद को उलझा रही थी । ©Bhanu Priya #दोपहर की तीखी धूप में , एक पागल छत को सुखा रही थी , जलते सूरज के साथ , खुद को उलझा रही थी । Dil E Nadan All in All Entertainment Rajdeep
Sarfaraj idrishi
अयोध्या एयरपोर्ट की छत गिरी..! राम को भी चूना लगा दिया गजब का रामराज्य 🤪🤣🤣 ©Sarfaraj idrishi अयोध्या एयरपोर्ट की छत गिरी..! राम को भी चूना लगा दिया -29 गजब का रामराज्यAnupriya Rakesh Srivastava Devrajsolanki h m alam s Dhanya Vais
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से , दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो सब मिलकर, करो मतदान को । ये तो सब लुटेरे हैं , करते हेरे-फेरे हैं पहचानते है हम , छुपे शैतान को । मतदान कर रहे , क्या बुराई कर रहे, रेंगता है मतदाता , देख के विधान को ।।१ वो भी तो है मतदाता, क्यों दे जान अन्नदाता , पूछने मैं आज आयी , सुनों सरकार से । मीठी-मीठी बात करे , दिल से लगाव करे, आते हाथ सत्ता यह , दिखता लाचार से । घर गली शौचालय, खोता गया विद्यालय, देखे जो हैं अस्पताल , लगते बीमार से। घर-घर रोग छाया , मिट रही यह काया , पूछने जो आज बैठा , कहतें व्यापार से ।।२ टीप-टिप वर्षा होती , छत से गिरते मोती , रात भर मियां बीवी , भरते बखार थे । नई-नई शादी हुई , घर में दाखिल हुई , पूछने वो लगी फिर , औ कितने यार थे । मैने कहा भाग्यवान , मत कर परेशान , कल भी तो तुमसे ही , करते दुलार थे । और नही पास कोई , तुम बिन आँख रोई, जब तेरी याद आई , सुन लो बीमार थे ।।३ २८/०३/२०२४ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से , दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१ हमारे सामने गिरधर खड़े हैं । सकल संसार के रहबर खड़े हैं ।।२ करें कैसे तुम्हारा मान अब हम । पलटकर देखिए झुककर खड़े हैं ।३ डरूँ क्यूँ आँधियों को देखकर मैं । अभी पीछे मेरे गुरुवर खड़े हैं ।।४ मसीहा जो बताते थे खुदी को । वही अब देख बुत बनकर खड़े हैं ।।५ अभी तुम बात मत करना कोई भी । हमारे साथ सब सहचर खड़े हैं ।।६ मिली है योग्यता से नौकरी यह । तभी तो सामने तन कर खड़े हैं ।।७ पकड़ लो हाथ तुम अब तो किसी का । तुम्हारे योग्य इतने वर खड़े हैं ।।८ निभाओ तो प्रखर वादा कभी अब । अभी तक देखिए छत पर खड़े हैं ।। २६/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१ हमारे सामने गिरधर खड़े हैं ।
Er Akhter Zawed
छत का सीना छलनी है ओले की बारिश से पानी के इन बूंदों से घबराएं क्यों ©Er Akhter Zawed छत का सीना छलनी है ओले की बारिश से पानी के इन बूंदों से घबराएं क्यों ? چھت کا سینہ چھلنی ہے اولے کی بارش سے پانی کی ان بوندوں سے گھبرائ
Amit Prem "AkR"
Shivkumar
Meri Mati Mera Desh { मेरी माटी मेरा देश } मेरी माटी , मेरा देश , मेरी शान है , मेरा देश तो मीठी बोली वाला है ।। नीली छत , सोनी धरती , ये काली मिट्टी इसके केश है ।। जितने मज़हब है उनके उतने रंग है , फुलवारी सा इसका वेश है ।। अपना ऊपर परचम हो , चाहे कोई प्रदेश हो ।। इंसानियत से भरा संदेश देते । गीता या क़ुरान , रामायण , हो ।। लोग तो इस भाईचारे का तोहफा , मिलजुल कर पेेश करते है ।। जिससे चांद यू बाते करता है , इस दुनिया में वह मेरा देश है ।। ©Shivkumar #MeriMatiMeraDesh #Nojoto #nojotohindi #कविता #हिन्दीलेखन #दिलकीबातशायरी143 { मेरी माटी मेरा #देश } मेरी #माटी , मेरा #देश , मेरी #
Ravendra