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Mularam Bana
समाज, दीपावली और पर्यावरण दीपावली विशेष भारतीय जन मानस की स्मृतियों में रचा-बसा है कि दीपावली के ही दिन भगवान राम लंका विजय कर अयोध्या लौ
Parul Sharma
प्रदूषण से विषैली हुई धरा श्मशान घाट पारुल शर्मा प्रदूषण से विषैली हुई धरा श्मशान घाट पारुल शर्मा
Disha Shantanu Sharma
रह जाती है गहरी छाप दिल पे और असर उनका बातों में दिखता है ये चुभती बहुत हैं.. तीक्षण होती हैं.. विषैली होती हैं.. #yqbaba #yqdidi #yqquotes #yqdada
Manjeet Sharma 'Meera'
Divya Joshi
#FourLinePoetry चाहे अंधेरी काली रातें हों पर,चांद तो फ़िर भी जगमगाया है। घूर-घूर नज़र लगाने की कोशिशें की सबने, हरदम उसने ख़ुद को रोशनी से सजाया है। देख देख जले, चाहे कितने ही दाग रोज़ ढूंढे दुनिया। पर सच यही है रोशनी और शीतलता ही उसका सरमाया है। ©Divya Joshi संदर्भ चाँद =स्त्री (या कोई भी सहृदय सच्चा व्यक्ति) बिल्ली= विषैली सोच के लोग (चाहे स्त्री हो या पुरूष) चाहे अंधेरी काली रातें हों पर,चांद
Nisheeth pandey
न जाने क्यों …. अब रिश्तों के दिल में संवेदना के फूल की खुशबुएँ नहीं आते हैं..... रिश्ते आज कागज के फूल बन गए हैं..…. हर तरफ आत्मकेंद्रित लोभ और स्वार्थी सा काटें चुभते रहें हैं...... प्रेम व स्नेह के मोहक रंग बिरंगी फूल नहीं..... सिक्कों का तोल मोल का गूंज है ..... एक दूसरे को जरूरत भरी सीढ़ी बनाकर लोग आगे भाग़ रहे हैं..... प्यार भरी फूल की बेल के अब पत्ते झर रहे हैं.... स्वंम को बड़ा कहलवाने की होड़ में हम जीवन दायनी वृक्ष को कत्ल कर रहे हैं.... दंगे -फसाद या कत्लेआम जैसे वारदातों को अंजाम देता इंसान दानव प्रवृति जन्म दे रहा है.... गन्ध विहीन और विषैली भावनाओं वाली फूलो को समाज में वह बो रहा है.... न अब सुर में ही सुरीली है.... न शब्दों में संवेदनाएं हर पल एक दूसरे को कोसता मानव है.... खुद अकेलेपन से जूझ रहा मन की भावना है ... न जाने कब बदलेंगा हवाओं का रुख..... कब छँटेगी द्वेष भरी काली घटाएँ.... प्रदर्शन दौलत का ज़हर हरामखोरी की भावनाएँ न जाने कब नष्ट करेगा ?? न जाने कब इंसान फूलों सा सुगंधित औऱ मनमोहक बनेगा..... 🤔#निशीथ🤔 ©Nisheeth pandey न जाने क्यों …. अब रिश्तों के दिल में संवेदना के फूल की खुशबुएँ नहीं आते हैं..... रिश्ते आज कागज के फूल बन गए हैं..…. हर तरफ आत्मकेंद्रित लो
Shivam Nahar
Odysseus
शहर (Mumbai) जंगलों सा घना, बयाबान सा खुश्क लावे सा गर्म, काजल सा स्याह नश्तरों सा तेज़, पत्थरों सा सख्त मौत सा निर्मम, वक्त सा बेरहम ये मेरा नगर, ख्वाबों का शहर वो संकरी गलियाँ, वो बौनी झुग्गियाँ वो तंग मुहल्ले, वो गंदी नालियाँ वो मजबूर रूहें, वो मायूस चेहरे वो लंबी कतारें, वो बेहाल सड़कें, वो ठेले, वो रेहड़ी, वो ऊँचीं दुकानें वो दफ्तर, वो माॅलें, वो कल-कारखाने (Extended in Caption #NojotoQuote शहर जंगलों सा घना, बयाबान सा खुश्क लावे सा गर्म, काजल सा स्याह नश्तरों सा तेज़, पत्थरों सा सख्त मौत सा निर्मम, वक्त सा बेरहम ये मेरा नगर,
कवि राहुल पाल 🔵
World Ozone Day पिंड दहन का सूर्य सौर में ,ज्वाला बनकर जलता है ! कुछ पराबैंगनी हानिकारक किरणें उत्सर्जित करता है !! ओज़ोन परत सीमा ऐसी जिसे पराबैंगनी भेद न पाये ! धन्य वह शीतल गोला है,जो धरा ,पृथ्वी माँ कहलाये !! ओजोन क्षरण की वजह CFC,halons ,TCE का तैश है ! ( CFC~क्लोरो फ्लोरो कार्बन ) एसी ,फ्रिज इलेक्ट्रॉनिक से निकली ये विषैली गैस है !! जब ओजोन छिद्र हो जाएगा,स्वास्थ्य रहेंगे तब न लोग ! ( TCE ~ट्राइ क्लोरो ऐथेन ) फिर फैले त्वचा ,कर्क ,चर्म और नेत्र के भयानक रोग !! तापमान भी ख़ूब बढ़ चुका है ,मौसम हमसे रूठ गये हैं ! बरखा होगी आज या कल ,किसान की आस टूट गए !! मोर,चकोर ,पपीहा ,सोन चिरैया ,न गौरैया अब गाती है ! तरुओं की हुई गोद है सूनी ,अब कोयल न इठलाती है !! वन ,जंगल ,पयोधर सूख चुके ,न आनाज है, न पानी है! कितनी नस्ले है विलुप्त हुई ,बाकी भी अब हो जानी है !! पेड़-पल्लव ,ठूठ, बेलड़ी ,झाड़ियां आज सभी कटते है ! अपने अपने रुतबे के माफ़िक ,रुपये ऊपर तक बटते है !! संतुलन सौर का है बिगड़ रहा,जो ये प्रदूषण है बढ़ रहा ! मानव अपनी मूढ़ता को आज ,दूसरो के सर मढ़ रहा !! 16 सितम्बर ओज़ोन दिवस पर चलो हम सपथ उठाये ! प्रदूषण को जड़ से मिटाने का हम "राहुल "बीड़ा उठाये !! ओज़ोन क्षरण का विषय आज विचारणीय ,चिंतनीय है ! गर सचेत हुए न हम अभी तो, विनाश दिशा में अग्रणीय है !! #WorldOzoneDay पिंड दहन का सूर्य सौर में ,ज्वाला बनकर जलता है ! कुछ पराबैंगनी हानिकारक किरणें उत्सर्जित करता है !! ओज़ोन परत सीमा ऐसी जिसे
एक इबादत
कण-कण जिसकी वीरता की गाथा रचे संस्कृति -संस्कार जिसके सामने सारी दुनिया झुके मैं वही वीर प्रताप का प्रतापी राजस्थान हूँ ..!! 🙏🙏 (read in caption) -💞कवि-एक काव्यप्रेमी💞✍️ हूँ मैं मरू-भूमि , हाँ मैं ही मरूस्थल ,कटीली,विषैली झाणियों से भरा खदान -प्रांत हूँ जिसकी नही समतल भू-भाग कही हाँ वही मैं उबाड़-खाबड़ राजस्थ