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Sushma
चाय कि पहली चुस्की कि गर्माहट सिर्फ जूबान को हि मन को भी सुकुन देती हैं... चाय तो कई तरह कि बनती पर जो बात हैं मसालेदार चाय कि वो कहाँ किसी चीज मे हैं , जब दुध में इलायची, लौंग, अदरक, दालचीनी डाल खौलाया जाता हैं तो उसकी खुशबू पूरे घर को आंगन में एक जगह ले आती हैं, फिर उसमें डालना हैं चायपत्ती और सबसे आखिर में स्वाद अनुसार चीनी, लाजवाब चाय बन कर हैं तैयार... बरसात में ये शाम कि चाय परिवार में प्यार कि गर्माहट को ताजा कर देती हैं.... ©Sushma #chai #चायप्रेमी #चाय_और_तुम #चाय_इश्क़_मेरा #चाय_लवर #चाय_के_दीवाने_हम #चाय☕ चाय कि पहली चुस्की कि गर्माहट सिर्फ जूबान को हि मन को भी सुकुन देती हैं... चाय तो कई तरह कि बनती पर जो बात हैं मसालेदार चाय कि वो कहाँ किसी चीज मे हैं , जब दुध में इलायची, लौंग, अदरक, दालचीनी डाल खौलाया जाता हैं तो उसकी खुशबू पूरे घर को आंगन में
#chai #चायप्रेमी #चाय_और_तुम #चाय_इश्क़_मेरा #चाय_लवर #चाय_के_दीवाने_हम चाय☕ चाय कि पहली चुस्की कि गर्माहट सिर्फ जूबान को हि मन को भी सुकुन देती हैं... चाय तो कई तरह कि बनती पर जो बात हैं मसालेदार चाय कि वो कहाँ किसी चीज मे हैं , जब दुध में इलायची, लौंग, अदरक, दालचीनी डाल खौलाया जाता हैं तो उसकी खुशबू पूरे घर को आंगन में
read moreमुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
❤️ मैं और मेरी चाय❤️ सड़क के उस नुक्कड़ पर , टपरी के नीचे होकर खड़े। जाड़े में या बरसात में, जब मैं उतारता हूं, इसको घूंट घूंट अपने हलक से नीचे तो जैसे सुकून उतरता है। मेरी रग-रग में गर्माहट उतर आती है। मेरे पोर पोर में। और मेरी तरह तुमको भी, ऐसा ही लगता है क्या कि गर्मियों में इसकी तासीर बदल जाती है। और यह देती है मुझे बेइंतहा ठंडक। मेरे सर दर्द मेरी थकान मेरी चिंताएं मेरे अवसाद सबका यह इलाज है। कोई शख्स चाय को बुरा कहता है तो मुझे वो बहुत बुरा लगता है। चाहे कोई इसकी लाख बुराइयां करे इसकी खुशबू खींच ही लेती है मुझे अपनी ओर । और मैं लगा ही लेता हूं इसको होंठों से। रिमझिम बरसती बूंदों में राह भुलाते कोहरे में, सड़क के नुक्कड़ की टपरी पर खड़े होकर चाय पीने का मजा कुछ और ही है सच सच बताना तुमको भी ऐसा ही लगता है क्या सब मुझे कहते हैं कि मैं चाय का दीवाना हूं मुझे भी ऐसा ही लगता है। आपका क्या ख्याल है। डियरCOMRADE ©Ankur Mishra ❤️ मैं और मेरी चाय❤️ सड़क के उस नुक्कड़ पर , टपरी के नीचे होकर खड़े। जाड़े में या बरसात में, जब मैं उतारता हूं, इसको घूंट घूंट अपने हलक से नीचे तो जैसे सुकून उतरता है। मेरी रग-रग में गर्माहट उतर आती है। मेरे पोर पोर में। और मेरी तरह तुमको भी, ऐसा ही लगता है क्या कि गर्मियों में इसकी तासीर बदल जाती है। और यह देती है मुझे बेइंतहा ठंडक।
❤️ मैं और मेरी चाय❤️ सड़क के उस नुक्कड़ पर , टपरी के नीचे होकर खड़े। जाड़े में या बरसात में, जब मैं उतारता हूं, इसको घूंट घूंट अपने हलक से नीचे तो जैसे सुकून उतरता है। मेरी रग-रग में गर्माहट उतर आती है। मेरे पोर पोर में। और मेरी तरह तुमको भी, ऐसा ही लगता है क्या कि गर्मियों में इसकी तासीर बदल जाती है। और यह देती है मुझे बेइंतहा ठंडक।
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