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R K Mishra " सूर्य "
बहुत कठिन काम है समीक्षा करना शब्दों के तलहटी में सात्विक उतरना कितना मिलेगा ये विद्वता की बात है फिर सारमय होकर अपना पक्ष रखना बहुत कठिन काम....... सोचिए समीक्षा लेखक,लेखनी किसकी या केवल खानापूर्ति का ही रंग भरना उंगलियां तो बराबर हाथों की भी नहीं हैं किस आधार पर भावों का हो परखना बहुत कठिन काम....... लेखनी तो दर्पण है विषय के चरित्र की आसान नहीं होता इस राह में उछलना समीक्षक के विद्वता की भी परख होती है वैसे आसान है "सूर्य"भटकाना भटकना बहुत कठिन काम.….... ©R K Mishra " सूर्य " #समीक्षा Babita Kumari Mili Saha shashi kala mahto Utkrisht Kalakaari Kanchan Pathak
Anita Saini
हमने मोहबत की है हुजूर कोई रोजगार नहीं हर बात का तब्सिरा करते हो आख़िर चाहते क्या हो..? Urdu_Word_Collab_Challenge_ Collab करें मेरे साथ 👉 Urdu_Hindi Poetry आज का लफ्ज़ है "तब्सिरा" अब पहले की तरह एक विजेता नहीं बल्कि 3 विजेता चुना जाएगा,, जो सबसे पहला विजेता होगा उनको testimonial किया जाएगा ! और दूसरे और तीसरे नंबर वाले विजेता को 'हाइलाइट' किया जाएगा। Example:
समीक्षा "एक प्रारम्भ"
नित हार के माथे नवल मैं जीत लिखती हूँ, आंसूँ को पोंछ मधुरमय संगीत लिखती हूँ ...|| रण-भूमि से भागूँ ? सुनो,कायर नहीं हूँ मैं, निज-राष्ट्र की अपने हृदय में प्रीत लिखती हूँ ...|| भू-खण्ड-खण्ड भाग का फिर एक अंग हो, शत्रुघ्न बनके अरि का अब मुण्ड-मण्ड हो, हो उदित हिम केसरी, मन-प्रण प्रचण्ड हो, सीमा परे कुकृत्य पर अविस्मर्ण्य दण्ड हो , जीवन्त हों निर्मोही मन ये अपेक्षा रखकर , मस्तक-पटल पर केसरी मनमीत लिखती हूँ ...|| निज राष्ट्र की अपने हृदय में प्रीत लिखती हूँ ...|| हम उन वीरों के अनुज, कबन्ध जिनके लड़ते थे, बरछी-बाण-कोदंड-कटारी से ना तनिक डरते थे , रण में धड़ ही दुश्मन को कर चीर अलग करते थे, लिए एक-लिंग शपथ स्व-जननी पर मर-मिटते थे, धन-यश लोलुपता को त्यागो राष्ट्र-उदय हो लक्ष्य, यूँ एकीकृत भारत की नव-विजय रीत लिखती हूँ ...|| निज राष्ट्र की अपने हृदय में प्रीत लिखती हूँ ...|| उठो वीर ! अब सजग बनो, वरना संताप करोगे , समर-भूमि से यदि डरे फिर पश्चाताप करोगे , प्रतिदिन कुछभी खोने का कब तक आलाप करोगे, अभी रहे यदि सुप्त-अस्थिर फिर से पाप करोगे, हम हों विजित प्रति ग्रीष्म-वर्षा-शीत लिखती हूँ , हृय बंधुत्त्व संजोये कर्त्तव्य - गीत लिखती हूँ ...|| निज राष्ट्र की अपने हृदय में प्रीत लिखती हूँ ...|| #समीक्षा"एक प्रारम्भ" ©® नाथ-नगरी , बरेली,उ.प्र., भारतवर्ष नित हार के माथे नवल मैं जीत लिखती हूँ, आंसूँ को पोंछ मधुरमय संगीत लिखती हूँ ...|| रण-भूमि से भागूँ ? सुनो,कायर नहीं हूँ मैं, निज-राष्ट्र की अपने हृदय में प्रीत लिखती हूँ ...|| भू-खण्ड-खण्ड भाग का फिर एक अंग हो, शत्रुघ्न बनके अरि का अब मुण्ड-मण्ड हो, हो उदित हिम केसरी, मन-प्रण प्रचण्ड हो,
Miraay ravi
#OpenPoetry परीक्षा संसार की प्रतीक्षा परमात्मा की और समीक्षा अपनी करनी चाहिए। लेकिन हम परीक्षा परमात्मा की प्रतीक्षा सुख की और समीक्षा दूसरों की करते हैं उम्मीदों का दामन थाम रहे हो जब नाकामियां चरम पर हो तो कामयाबी बेहद करीब होती है
KK Mishra
ज़न्नत *परीक्षा संसार की।* *प्रतीक्षा परमात्मा की।* *और समीक्षा अपनी करनी चाहिए।* *लेकिन हम* *परीक्षा परमात्मा की।* *प्रतीक्षा सुख की।* *और समीक्षा दूसरों की करते हैं।*
Ravi Thakur Kundral
🙏🌹जय श्री राम*🌹🙏 परीक्षा संसार की करो., प्रतीक्षा परमात्मा की और समीक्षा अपनी करो. पर हम परीक्षा परमात्मा की करते हैं, प्रतीक्षा सुख की और समीक्षा दूसरों की करते हैं. 🙏🏻🌞सुप्रभात🌞🙏🏻 आपका दिन शुभ मंगलमय हो
'Bharat' Sachin
#समीक्षा #समीक्षा #हिंदी_हैं_हम_हिंदी_से_हम #NojotoPhoto
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