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ગુજ્જુ ની નોલેજ

ગાયત્રી મંત્રની રચના કેવી રીતે થઈ હતી...#shortvideo #shortsviral #Shorts #gaytrimantra #ગુજરાતી #nikunjjoshi #gujjuniknowledge #પૌરાણિક

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#गायत्री_मंत्र     

 गायत्री मंत्र का जप किसी भी देव प्रतिमा के सामने अथवा निराकार ईश्वर का बोध कराने वाले किसी भी पवित्र स्थल पर किया जा सकता है। इसके जप से युगशक्ति की समर्थ धाराओं के प्रवाह का लाभ साधक को प्राप्त होने लगता है।

 #गायत्री_महामंत्र के विभिन्न चरण ब्रह्मविद्या के विभिन्न पक्षों और प्रमाणों का साक्षात्कार साधक को करा सकते हैं। जैसे -

  #ॐ :- परमात्म सत्ता के लिए नाम, रूप से परे स्वरपरक सम्बोधन, जो परमात्मा में विश्व के उद्भव, विकास और समाहरण की सामर्थ्य का बोधक है।

 #भूर्भुवः #स्वः :- वह परमात्मा पृथ्वी, अन्तरिक्ष एवं आकाश तीनों लोकों में संव्याप्त है। वह प्राणरूप, दुःखनाशक, सुख स्वरूप है, अर्थात वह सर्वव्यापी और गुणागार है।

#तत्सवितुर्वरेण्यं :- वह सबका उत्पादक, सविता स्वरूप दिव्य ऊर्जा का स्रोत होने के कारण सभी के लिए वरणीय, आत्मसात करने योग्य है।

#भर्गो_देवस्य_धीमहि :- हम उसे अपने अन्तःकरण में धारण करें, चूँकि वह विकारों के विनाश तथा देवत्व के विकास में समर्थ है।

#धियो_यो_नःप्रचोदयात् :- हमारे अन्तःकरण में स्थापित होकर वह हम सबकी बुद्धि को सन्मार्ग पर चला दे।

#महामंत्र के यह विभिन्न चरण साधकों को क्रमशः परमात्म सत्ता के #सार्वभौम_स्वरूप का बोध कराते हैं, उसके साथ साधक का सहज सम्पर्क जोड़ते हैं, साधक के जीवन को शोधित और विकसित बनाते हैं और उनमें एक साथ श्रेय पथ पर बढ़ने की #शक्ति संचरित करते हैं।

जय गुरुदेव 🙏🏻🙏🏻

http://gouravshaligurukul.blogspot.com

©manohar patidar #Gaytrimantra

manohar patidar

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चौबीस अक्षरों का गायत्री महामंत्र भारतीय संस्कृति के वाङ्मय का नाभिक कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी। यह संसार का सबसे छोटा एवं एक समग्र धर्मशास्त्र है। यदि कभी भारत जगद्गुरु- चक्रवर्ती रहा है तो उसके मूल में इसी की भूमिका रही है। गायत्री मंत्र का तत्त्वज्ञान कुछ ऐसी उत्कृष्टता अपने अन्दर समाए है कि उसे हृदयंगम कर जीवनचर्या में समाविष्ट कर लेने से जीवन परिष्कृत होता चला जाता है। वेद, जो हमारे आदिग्रन्थ हैं, उनका सारतत्त्व गायत्री मंत्र की व्याख्या में पाया जा सकता है।

गायत्री त्रिपदा है। उद्गम एक होते हुए भी उसके साथ तीन दिशाधाराएँ जुड़ती हैं- (१) सविता के भर्ग- तेजस् का वरण, परिष्कृत प्रतिभा- शौर्य व साहस। (२) देवत्व का वरण, देव व्यक्तित्व से जुड़ने वाली गौरव- गरिमा को अंतराल में धारण करना। (३) मात्र अपनी ही नहीं, सारे समूह, समाज व संसार में वृद्धि की प्रेरणा उभरना।

गायत्री की पूजा- उपासना और जीवन- साधना यदि सच्चे अर्थों में की गई हो तो उसकी ऋद्धि- सिद्धियाँ स्वर्ग और मुक्ति के रूप में निरंतर साधक के अंतराल में उभरती रहती हैं। ऐसा साधक जहाँ भी रहता है, वहाँ अपनी विशिष्टताओं के बलबूते स्वर्गीय वातावरण बना लेता है। जहाँ शिखा- सूत्र का गायत्री से अविच्छिन्न संबंध है, वहीं गायत्री का पूरक है- यज्ञ। दोनों ही संस्कृति के आधारस्तंभ हैं। अपौरुषेय स्तर पर अवतरित गायत्री मंत्र नूतन सृष्टिनिर्माण में सक्षम है एवं उसी का सामूहिक जप- उच्चारण प्रयोग हो पाया है। गायत्री परिवार द्वारा संचालित इस महापुरुषार्थ की पूर्णाहुति २००० में संपन्न । विशिष्ट उपासना हेतु सभी को युगतीर्थ शान्तिकुञ्ज का आमंत्रण है।

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