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Pradyumn awsthi
इंसान का स्वाभाव और मन समय के साथ इतना ज्यादा बदलते जा रहें हैं की जिसकी कोई सीमा ही नहीं है और अब प्रेम तो केवल बेचारे जानवरों तक ही सीमित हो गया है क्योंकि इंसान ने तो कुछ ज्यादा ही विकास कर लिया है इसलिए अब इंसान के अंदर से प्रेम नाम का भाव धीरे धीरे विलुप्त होता जा रहा है ©"pradyuman awasthi" #विलुप्त होता जा रहा हैं
नेहा उदय भान गुप्ता
ऐ मेरे सत्ता के शासक मेरे रखवाले, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो, जनता मांग रही है अब अपना हक, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो। हे न्यायमूर्ति, हे न्याय प्रिय, आज लोकतंत्र यहां पर हुआ विलुप्त, संकट में है सबके प्राण यहां, तुम अब तक ख़ामोश यहां पर क्यों हो।। मंदिर मस्ज़िद का खेल खेलकर, तुम आपस में लोगों को बांट रहे हो, जाति वाद, धर्म का नारा देकर, लोगों को तुम आपस में छांट रहे हो। नव चेतना,नव जागृति नही, और ना ही हो रहा है नव निर्माण यहां, अपनी विषैली, कटु, विषाक्त शब्दों से हर उम्मीदों को तुम कांट रहे हो।। मूक बने है यहां पर सब दर्शक, बन गई है ये तो अन्धों की नगरी, पोथी में दबकर रह गया संविधान, चल रहे सब अपनी अपनी डगरी। नही है कोई महफूज यहां पर, अपने ही अपनों कर करते चीरहरण, चीत्कार की है बस आवाज़ यहां, विलुप्त हुआ अब गीत और कजरी।। #लोकतंत्र #लोकतंत्रभारत #लोकतंत्र_ख़तरे_में_है #विलुप्त होता लोकतंत्र @लोकतंत्र
नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
ऐ मेरे सत्ता के शासक मेरे रखवाले, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो, जनता मांग रही है अब अपना हक, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो। हे न्यायमूर्ति, हे न्याय प्रिय, आज लोकतंत्र यहां पर हुआ विलुप्त, संकट में है सबके प्राण यहां, तुम अब तक ख़ामोश यहां पर क्यों हो।। मंदिर मस्ज़िद का खेल खेलकर, तुम आपस में लोगों को बांट रहे हो, जाति वाद, धर्म का नारा देकर, लोगों को तुम आपस में छांट रहे हो। नव चेतना,नव जागृति नही, और ना ही हो रहा है नव निर्माण यहां, अपनी विषैली, कटु, विषाक्त शब्दों से हर उम्मीदों को तुम कांट रहे हो।। मूक बने है यहां पर सब दर्शक, बन गई है ये तो अन्धों की नगरी, पोथी में दबकर रह गया संविधान, चल रहे सब अपनी अपनी डगरी। नही है कोई महफूज यहां पर, अपने ही अपनों कर करते चीरहरण, चीत्कार की है बस आवाज़ यहां, विलुप्त हुआ अब गीत और कजरी।। #लोकतंत्र #लोकतंत्रभारत #लोकतंत्र_ख़तरे_में_है #विलुप्त होता लोकतंत्र @लोकतंत्र
Sangeeta Patidar
जबसे मिले कैलेंडर बन गये, रिश्ते जैसे अवसर बन गये। एक पहलु पे सुना फ़ैसला, वो अपने जैसे पत्थर बन गये। कैसे अचानक से विलुप्त हो गया है आपसी मेल-मिलाप, ज़रा से मतभेद पर जान छिड़कने वाले ख़ुद-सर बन गये। पल में समझे बोझ उन्हें जिन्होंने झेले नखरे ज़िन्दगी-भर, साथ-साथ हँसने-मुस्काने वाले दिल यूँ खण्डहर बन गये। उँगली उठाने से पहले ज़रा झाँक लेना अपना भी गिरेबाँ, क्यों और कैसे, हाथ थामने वाले लोग ही ठोकर बन गये। ना पूछे कोई हाल 'धुन', देख कर मुस्कुराना ही काफ़ी है, पूरा का पूरा खर्च होने के बावजूद हम कम-तर बन गये। ख़ुद-सर- Rude Rest Zone आज का शब्द- 'विलुप्त' #rzmph #rzmph162 #विलुप्त #sangeetapatidar #ehsaasdilsedilkibaat #yqdidi #rzhindi #bestyqhindiquotes
Anjaan
बचपन में हमने गांव में #साइकिल तीन चरणों में सीखी थी , पहला चरण - कैंची दूसरा चरण - डंडा तीसरा चरण - गद्दी ... तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था। #कैंची वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे। और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना #सीना_तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और क्लींङ क्लींङ करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है। आज की पीढ़ी इस "#एडवेंचर" से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "#जहाज" उड़ाने जैसा होता था। हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तुड़वाए है और गज़ब की बात ये है कि तब #दर्द भी नही होता था, गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए। अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में। मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर #संतुलन बनाना जीवन की पहली #सीख होती थी! #जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप #गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं। इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए। और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी। और ये भी सच है की हमारे बाद "कैंची" प्रथा #विलुप्त हो गयी । हम लोग की दुनिया की #आखिरी_ पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा ! पहला चरण कैंची दूसरा चरण डंडा तीसरा चरण गद्दी। ● हम वो आखरी पीढ़ी हैं, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की #कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, #प्लेट_में_चाय पी है। ● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, #गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं..🩺 😊😊 ©Anjaan YAADEN #Drown #village #Love #motivate
Dr Manju Juneja
मैंने रात पूछा था अपने दिल से क्या शब्द दिल की हर बात बयाँ कर सकते हैं तो जबाब था ना में शब्दो की भी एक सीमित परिभाषा होती है सिर्फ उतना ही उतार सकते हैं उन्हें पन्नो पर जितनी शब्दो की जरूरत होती है कुछ छुपा कर रख लेते हैं शब्द सीने में तो कुछ लिखते समय विलुप्त हो जाते है कभी लिखना कुछ चाहते हैं और लिख कुछ जाते है ©Dr Manju Juneja #दिलसे #शब्द #हरबात #बयाँ#सीमित #परिभाषा #विलुप्त #कविता #जरूरत #wordsbyheart
ROHAN KUMAR SINGH
#सच_सच बताओ.... #डायनासोर_ख़ुद ही #विलुप्त हो गए या #उनको भी #तुमलोग खा गए #सलाद बनाकर.......#सालो 😂😂😂😂😂😄😄😄
Pratyush Saxena
दिसंबर की सर्द रात , घना कोहरा , और उसको चीरता वो रिक्शा । वो सड़क बहुत सुनसान हो गयी थी , शायद इस पहर कोई लौटता नहीं । अब वो भी नहीं लौटेगा , आज आखिरी दफा छोड़ने आया है बस । सड़क पर अचानक एक गड्ढा आया , और निधि ने उसका हाथ कस के पकड़ लिया । उसे मह्सूस हुआ निधि की हथेली बिलकुल ठंडी पड़ी थी । उसने अपने गले से लिपटा मफलर निकाला , और उसके हाथों के इर्द गिर्द लपेट दिए । निधि एक तक उसे देखती रही , कुछ कह नहीं पायी । रिक्शा चलता रहा । ये सफर भी ख़त्म हुआ , उसका हॉस्टल आ गया ! वो उसकी तरफ देखकर बस इतना बोली " साथ न भी रहूँ , ये मफलर जो तुमने मेरे हाथों पर बाँधा है , मेरे लिए किसी कंगन से कम नहीं है , सदा अपने साथ रखूंगी । " वो कुछ कह न सका , बस देखता रहा , और उस हॉस्टल के गेट के अंदर जाकर धुंध में निधि कहीं विलुप्त हो गयी , हाँ विलुप्त हो गयी । #NojotoQuote Aakhiri Mulakaat ! #PS #Nojoto #NojotoHindi #AakhiriMulakaat #ShortStory
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