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Prashant Shakun "कातिब"

"मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है" ह्म्म्म.... अब तो आश्चर्य का ग्राफ भी नीचे आने लग रहा है ऐसी न्यूज़ पढ़, सुन कर। और अगर अभी ना संभले तो बहुत जल्दी ही ऐसी न्यूज़ आम हो जाएंगी जैसे आम हो गईं हैं किसी के मर्डर की न्यूज़ अब। *ये क्या सीख रही है नई पीढ़ी? *ये कौन सिखा रहा है?

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Prashant Shakun "कातिब"

लड़की का मन समझना मुश्किल है क्यूंकि 
वह एक ही समय में लड़ रही होती है
कई लड़ाईयां।

कभी मनचलों की फब्तियों और उनकी नज़रों से,
कभी एक गृहिणी होने की जिम्मेदारियों से,
तो कभी बेटी होने की जिम्मेदारियों से,
कभी इस समाज की उनके प्रति कुरीतियों से,
तो कभी पीरियड्स से हुए मूड स्विंग्स से,
कभी अपने सपनों से,
तो कभी अपनों के सपनों से,
और
कभी सिर्फ़ लड़की होने से।

©Prashant Shakun "कातिब" #Ladki 

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#2_45am_26_march_2023

Prashant Shakun "कातिब"

मैं उनमें से नहीं हूँ जो सामने किसी जोड़े को लाठी दिखाता है और पीछे से अपनी प्रेमिका या पत्नी भाई बहन माँ को आज के दिन गुलाब देकर अपना प्यार भी जताता है😊 राधा-कृष्ण को पूजने वाले देश में प्रेम ही प्रतिबंधित है😊 सीता-राम के जैसी जोड़ी हो तुम्हारी जैसे आशीर्वाद देने वाले देश में प्रेम प्रतिबंधित है😊 पार्वती-शिव, अर्धनारीश्वर वाले इस देश में प्रेम प्रतिबंधित है😊 मेरी बहन Dr. Nidhi Singh का कॉमेंट इस पोस्ट पर :-

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©Prashant Shakun "कातिब" मैं उनमें से नहीं हूँ जो सामने किसी जोड़े को लाठी दिखाता है और पीछे से अपनी प्रेमिका या पत्नी भाई बहन माँ को आज के दिन गुलाब देकर अपना प्यार भी जताता है😊


राधा-कृष्ण को पूजने वाले देश में प्रेम ही प्रतिबंधित है😊
सीता-राम के जैसी जोड़ी हो तुम्हारी जैसे आशीर्वाद देने वाले देश में प्रेम प्रतिबंधित है😊
पार्वती-शिव, अर्धनारीश्वर वाले इस देश में प्रेम प्रतिबंधित है😊

मेरी बहन Dr. Nidhi Singh का कॉमेंट इस पोस्ट पर :-

Prashant Shakun "कातिब"

हरसू ----- हर ओर, सब तरफ़ #फरवरी_ख़ुमार #इश्क़ #इश्क़_वाले_सात_दिन #भिखारियों_का_महीना (मेरे अनुसार), क्यूँकि हर कोई माँगता रहता जैसे गुलाब दे, चॉकलेट दे, hug दे, टेडी दे, चुम्मा दे, लेकिन सीरियसली कोई प्यार नहीं माँगता (और जो माँगता है उसे मिलता नहीं 99% regardless of gender) #आशिक़ों_के_नवरात्रे (मेरी बहन Dr.NIDHI SINGH के अनुसार)

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Prashant Shakun "कातिब"

उस दिन इतवार था मेरी ऑफिस की छुट्टी थी मैं अपनी मर्ज़ी से उठा 11 बजे और मुझे नाश्ते में मिले आलू के पराठे जिन्हें बनाने के लिए वो उठी थी सुबह छः बजे और खाकर मैं निकल गया पूरे दिन के लिए दोस्तों के साथ क्यूँकि आज संडे है, शाम को घर आकर फरमाइश की कि आज संडे है तो कुछ स्पेशल बनाया जाए फ़रमाइश पूरी हुई रात के खाने में तीन तरह की सब्ज़ी रोटी दाल चावल और खीर मिली कमरे में गया तो सुबह के लिए पैंट शर्ट इस्त्री किये हुये हैंगर में लटके मिले, घड़ी, रुमाल, जूते सब तरतीब से अपनी अपनी जगह मिले। और सारा काम निपट

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Prashant Shakun "कातिब"

जूड़ा हर सुबह वो उठती है सुबह के साथ और हर सुबह,सुबह को बांध लेती है जूड़े में और जीती है उस सुबह को पूरे दिन

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©Prashant Shakun "कातिब" जूड़ा

हर सुबह वो उठती है 
सुबह के साथ और 
हर सुबह,सुबह को
बांध लेती है जूड़े में
और जीती है 
उस सुबह को पूरे दिन

Prashant Shakun "कातिब"

और हर दिन दोनों पर बोझ बस बढ़ता ही जाता है और हम इन सबसे बेखबर, उन पर पड़े गड्ढों को नज़रअंदाज़ कर बस बढ़ते ही रहते हैं अपनी मंज़िलों की तरफ इस अपेक्षा में कि सरकार मरम्मत कर देगी सड़क की क्यूँकि सड़क तो सरकार ने ही बनाई है लेकिन हम जो सड़क का प्रयोग कर रहे हैं क्या हमारी उसके प्रति कोई ज़िम्मेदार नहीं…?

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सड़क के बीचों बीच 
सड़क को बाँटती वो पीली सफेद पट्टी
संभाले रखती है उस ट्रैफिक को 
जो इस तरफ आ रहा है और 
उस तरफ को जा रहा है 

एक स्त्री भी 
जब मांग भरती है तो 
दो परिवार रूपी ट्रैफिक के 
वाद-विवादों को अलग अलग 
रखती है और 
समानता बनाये रखती है कि 
दोनों तरफ का ट्रैफिक 
एक ही धरातल पर 
बिना टकराये चलता रहे 
भले ही दोनों की मंज़िलें अलग अलग हों

©Prashant Shakun "कातिब" और हर दिन दोनों पर बोझ बस बढ़ता ही जाता है
और हम इन सबसे बेखबर, उन पर पड़े गड्ढों को 
नज़रअंदाज़ कर बस बढ़ते ही रहते हैं अपनी
मंज़िलों की तरफ इस अपेक्षा में कि सरकार
मरम्मत कर देगी सड़क की क्यूँकि 
सड़क तो सरकार ने ही बनाई है
लेकिन हम जो सड़क का प्रयोग कर रहे हैं
क्या हमारी उसके प्रति कोई ज़िम्मेदार नहीं…?

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