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Divya Joshi
आने वाला प्रोजेक्ट -मेरा क्या कसूर एक झलक "हर वक्त कहां खो जाती हो प्रेरणा!? ना तुम बिना टकराए चल पाती हो, ना बिना कुछ गिराए रसोई में काम कर पाती हो। कभी गैस पर दाल रखकर कर भूल जाती हो, कभी चाय रखकर!" "कितनी आवाज़ें दी तुम्हें तुमने जवाब भी नहीं दिया!" वो मेरा अवचेतन म...! न! न! ये तुम्हारी साइकोलॉजी की क्लास बाद में... चलो खाना खा लो पहले मुझे बहुत भूख लगी है। मैं उन्हें अपने मन की कोई थ्योरी समझा पाती उसके पहले ही उन्होंने मेरे अंदर की मनोविज्ञान प्रेमिका को भगा कर अपनी पत्नि को तुरन्त खाना खाने का आदेश दे डाला। ©Divya Joshi radio mirchi पर प्रसारित होने वाली मेरी अगली कहानी 'मेरा क्या कसूर' जल्द ही सभी पाठकों के लिए प्रतिलिपि और ब्लॉग पर उपलब्ध होगी। "हर वक्त कहां खो जाती हो प्रेरणा!? ना तुम बिना टकराए चल पाती हो, ना बिना कुछ गिराए रसोई में काम कर पाती हो। कभी गैस पर दाल रखकर कर भूल जाती हो, कभी चाय रखकर!" "कितनी आवाज़ें दी तुम्हें तुमने जवाब भी नहीं दिया!" वो मेरा अवचेतन म...!
Divya Joshi
पुलिस को जानकारी देने के बाद वे रायचंद जी को कहते हैं कि अपने वो गिफ्ट बॉक्सेस फेंक कर बड़ी गलती की। उस स्थान पर जाने पर वहाँ उन्हें कुछ नही मिलता। ऑफिसर रायचंद जी को फटकार लगाकर कहते हैं कि अब किसी भी तरह की घटना होने पर सबसे पहले जानकारी और उससे जुड़ी चीजें वह पुलिस को देंगे।पुलिस स्टेशन वापस आकर वे रायचंद जी से कुछ जरूरी सवाल पूछते हैं। जिनमें एक सवाल यह भी होता है कि जिस कमरे में उनके गिफ्ट्स रखे थे उसकी चाबी कहाँ, किसके पास थी? रायचंद जी को इसकी अधिक जानकारी नहीं होती। अतः वह उन्हें पता करके बताने को कहते हैं। रायचंद जी इसके बाद फैक्टरी से मूलचंद को फोन लगाते हैं और उन्हें इस घटना की जानकारी देते हैं। और चाबी के बारे में पूछते हैं।मूलचंद जी आश्चर्यचकित और चिंतिंत होकर कहते हैं भैया मुझे तो इस बारे में कुछ नहीं पता और गिफ्ट की बात है तो कमरे की चाबी शुरू से सुरेश के पास थी। ©Divya Joshi पूरी कहानी पढ़ने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें https://lekhaniblog.blogspot.com/2022/05/6_30.html पुलिस को जानकारी देने के बाद वे रायचंद जी को कहते हैं कि अपने वो गिफ्ट बॉक्सेस फेंक कर बड़ी गलती की। उस स्थान पर जाने पर वहाँ उन्हें कुछ नही मिलता। ऑफिसर रायचंद जी को फटकार लगाकर कहते हैं कि अब किसी भी तरह की घटना होने पर सबसे पहले जानकारी और उससे जुड़ी चीजें वह पुलिस को देंगे। पुलिस स्टेशन वापस आकर वे रायचंद जी से कुछ जरूरी सवाल पूछते हैं। जिनमें एक सवाल यह भी होता है कि जिस कमरे में उनके गिफ्ट्स र
Divya Joshi
अनुभवी दादी महसूस कर लेती है कि किशोरवय से परिपक्वता की ओर जाती दहलीज़ पर खड़ी, इस बच्ची के मन में अब अमर के प्रति प्रेम बीज का अंकुरण होना शुरू हो चुका है। जिसका भान शायद दोनों को अब तक नहीं है। तृषा उसके घर पहुंच जाती है। हमेशा वह धड़धड़ाती हुई उसके कमरे में घुस जाया करती थी, मगर इस दफा उसने दरवाजा बजाया। अमर अपने कमरे में बैठकर कुछ लिख रहा है। "आ जाओ।" दरवाजे की खटखटाहट को सुनकर बिना देखे ही वह कह देता है । तृषा को अंदर आते देख वह आश्चर्य से कहता है "तुमने कब से मेरे कमरे में नॉक करके आना शुरू कर दिया!?" "क्यों!? मजाक उड़ा रहे हो मेरा!?" अरे मेरी बेस्ट फ्रेंड इतनी समझदार हो गई है, दरवाजा नॉक करके आती है और कोई मज़ाक उड़ाए तो तुरंत समझ भी जाती है!? अमर ने व्यंग कसा। "क्यों!? पहले क्या बेवकूफ थी मैं!?"अमर को हंसी आ जाती है…। "हंसते रहना तुम बस। जाओ अब कभी तुमसे बात करूंगी ही नहीं।" अमर हंसते गए बोला "छब्बीस." "क्या छब्बीस?" ©Divya Joshi अनुभवी दादी महसूस कर लेती है कि किशोरवय से परिपक्वता की ओर जाती दहलीज़ पर खड़ी, इस बच्ची के मन में अब अमर के प्रति प्रेम बीज का अंकुरण होना शुरू हो चुका है। जिसका भान शायद दोनों को अब तक नहीं है। तृषा उसके घर पहुंच जाती है। हमेशा वह धड़धड़ाती हुई उसके कमरे में घुस जाया करती थी, मगर इस दफा उसने दरवाजा बजाया। अमर अपने कमरे में बैठकर कुछ लिख रहा है। "आ जाओ।" दरवाजे की खटखटाहट को सुनकर बिना देखे ही वह कह देता है । तृषा को अंदर आते देख वह आश्चर्य से कहता है तुमने कब से मेरे कमरे में नॉक करके आना शुरू
Divya Joshi
read in caption ©Divya Joshi सुरेश को यह बताते ही वह जोर से ठहाका लगा कर हंस पड़ा। 21वीं सदी में जी रहे हैं हम तुम इन अंधविश्वासों में कैसे यकीन करने लगे? यकीन तो मैंने कभी नहीं किया दोस्त! लेकिन यह सब मेरे साथ हो रहा है। मैं इसे महसूस कर रहा हूं। इसीलिए तो मैं बता रहा हूँ। ऐसा कुछ नहीं है तुम बेकार ही चिंता कर रहे हो। अच्छा तुमने कहा यही सब मोनू भैया को भी मिला था उनके बैंगलौर की फैक्ट्री के आफिस में.? क्या तुमने उनसे पूछा क्या उन्हें भी वहां ऐसी आवाज़ें आ रही हैं? नहीं ये तो नहीं पूछा। रायचंद जी बोले।
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