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Raju Mandloi

#_हमारे_प्राचीन_धनुष

कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक मैसेज प्रसारित हो रहा है जिसमें महर्षि दधिची की अस्थियों से तीन धनुष पिनाक, शांर्डग्य (शारंग) और गांडिव के बनने की बात कही जा रही है.
इस भ्रामक पोस्ट को पढ़कर ही विचार आया कि हमारे पौराणिक आयुधों पर लिखा जाए.

महर्षि दधिची की अस्थियों से केवल #_वज्र का निर्माण हुआ था जिसे देवराज इंद्र को दिया गया था.
#_पिनाक, #_शांर्डग्य और #_गाण्डीव का निर्माण समाधिस्थ #_महर्षि_कण्व की मूर्धा पर उगे बांस से हुआ भगवान विश्वकर्मा ने किया था. जिन्हे क्रमशः आदिधनुर्धर महादेव, पालनकर्ता भगवान विष्णु और सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा को अर्पण किया गया. कालांतर में यह तीनों धनुष अलग अलग योद्धाओं द्वारा प्रयोग किये गए. 

सोशल मीडिया पर प्रसारित उस लेख में भीमपुत्र #_घटोत्कच का वध कर्ण द्वारा इंद्र से प्राप्त वज्र से होना बताया गया है, जो कि असत्य है.
दानवीर कर्ण ने इंद्रदेव की आराधना कर उनसे #_अमोघ_अस्त्र प्राप्त किया था ना कि वज्र.
घटोत्कच के वध का प्रसंग पढ़ने पर जानकारी मिलती है कि घटोत्कच जब कौरव सेना का संहार कर रहा था तब दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने इसी अमोघ अस्त्र से घटोत्कच का वध किया था.

सोशल मीडिया पर ऐसे भ्रामक लेख प्रसारित होना कोई नई बात नहीं है. कुछ अज्ञानी अथवा अल्पज्ञानी लोग आधी अधूरी बातें पढ़कर आधी बात मन से जोड़कर लेख लिख देते हैं. कर्ण के अमोघ अस्त्र, कर्ण के धनुष विजय और इंद्रदेव के वज्र तीनों का संबंध देवराज इंद्र से था, शायद इसी की आधी अधूरी जानकारी के साथ वह लेख तैय्यार कर दिया गया.
वज्र #_शस्त्र श्रेणी का आयुध है जबकि धनुष से #_अस्त्र श्रेणी के आयुध छोड़े जाते हैं. इन दोनों में सामान्य सा अंतर है अस्त्र किसी यंत्र के द्वारा चलाए जाते हैं जैसे धनुष से बाण चलाया जाता है. जबकि शस्त्र को तलवार की तरह हाथ में पकड़कर या हाथ से फेंककर वार किया जाता है. 

इस लेख में हमारे दिव्य धनुषों के बार में लिखता हूँ, किस योद्धा के पास कौनसा धनुष था. 

1:- भगवान शिव:- पिनाक धनुष शिव जी को अर्पित किया गया था. पिनाक को अजगव भी कहा गया है. शिव जी के पास और भी कई धनुष थे. त्रिपुरांतक धनुष से उन्होंने मयासुर द्वारा बनाए त्रिपुर को नष्ट किया था. शिव जी के पास रुद्र नामक एक और धनुष का उल्लेख मिलता है जिसे बाद में भगवान बलराम ने प्राप्त किया था. 

2:- भगवान विष्णु:- शांर्डग्य (शारंग) धनुष विष्णु जी को अर्पित किया गया था जिसे उन्होंने धारण किया. इसे शर्ख के नाम से भी जाना गया. यह धनुष भगवान परशुराम और योगेश्वर श्री कृष्ण ने प्राप्त किया था. 

3:- भगवान ब्रह्मा :- भगवान ब्रह्मा को गांडिव धनुष अर्पित किया गया था. जिसे अग्निदेव, दैत्यराज वृषपर्वा और अंत में सव्यसांची अर्जुन ने प्राप्त किया. 

4:- भगवान परशुराम :- भगवान परशुराम के पास अनेक धनुष थे. उन्होंने अपने गुरु महादेव से पिनाक, भगवान विष्णु से शांर्डग्य (शारंग) और देवराज इंद्र से विजय नामक धनुष प्राप्त किया था. यह विजय धनुष उन्होंने अपने शिष्य कर्ण को दिया था. 

5:- प्रभु श्री राम:- भगवान राम जिस धनुष को धारण करते थे उसका नाम कोदण्ड था. रामचरित मानस में प्रभु के धनुष को सारंग भी कहा गया है, परंतु वह धनुष शब्द का पर्यायवाची शब्द सारंग है ना कि विष्णु जी का धनुष शांर्डग्य. 

6:- लंकापति रावण:- रावण के पास पौलत्स्य नामक धनुष था. जिसे द्वापर युग में घटोत्कच ने प्राप्त किया था. एक समय पर रावण ने शिव जी से पिनाक भी प्राप्त किया था, परंतु उसे धारण नहीं कर पाया. 

7:- श्री कृष्ण :- योगेश्वर श्री कृष्ण का मुख्य आयुध सुदर्शन चक्र था परंतु उन्होंने भी शांर्डग्य (शारंग) धनुष को धारण किया था. 

8:- भगवान बलराम:- बल दऊ के धनुष का नाम रुद्र था जो उन्होने भगवान शिव से प्राप्त किया था. 

9:- भगवान कार्तिकेय :- इन्होंने अपने पिता भगवान शिव के धनुष पिनाक को धारण किया था. 

10:- देवराज इंद्र:- इंद्रदेव ने विजय नामक धनुष को धारण किया जिसे उन्होंने भगवान परशुराम जी को दे दिया. 

11:- कामदेव:- कामदेव ने ईख (गन्ने) की छड़ी पर मधुमक्खी के तार से बनी प्रत्यंचा से तैय्यार पुष्पधनु नामक धनुष को धारण किया था. 

12:- युधिष्ठिर :- युधिष्ठिर जी ने महेंद्र नामक धनुष को धारण किया था. 

13:- भीम:- भीमसेन ने वायुदेव से प्राप्त वायव्य धनुष को धारण किया था. 

14:- कौन्तेय अर्जुन:- अर्जुन ने ब्रह्मा जी के धनुष गांडिव को धारण किया था. जिसे उसने खांडवप्रस्थ में मयदानव से प्राप्त किया था. 

15:- नकुल:- नकुल ने भगवान विष्णु से प्राप्त वैष्णव धनुष को धारण किया था. 

16:- सहदेव:- सहदेव ने अश्विनी कुमारों से प्राप्त अश्विनी नामक धनुष को धारण किया था. 

17:- कर्ण:- कर्ण ने अपने गुरु भगवान परशुराम से देवराज इंद्र का विजय धनुष प्राप्त किया था. इंद्रदेव की उपासना कर कर्ण ने अमोघास्त्र भी प्राप्त किया था. 

18:- अभिमन्यु:- अभिमन्यु ने अपने गुरु और मामा भगवान बलराम से भगवान शिव का धनुष रुद्र प्राप्त किया था. 

19:- घटोत्कच :- घटोत्कच ने लंकापति रावण का धनुष पौलत्स्य प्राप्त किया. 

(उप पाण्डव:- पाण्डवों और द्रौपदी से उत्पन्न पुत्रों को उप पाण्डव कहा गया) 
20:- प्रतिविंध्य:- युधिष्ठिर के इस पुत्र ने रौद्र नामक धनुष का प्रयोग किया. 

21:- सूतसोम:- भीमसेन के इस पुत्र ने आग्नेय नामक धनुष प्राप्त किया. 

22:- श्रुतकर्मा:- अर्जुन के इस पुत्र ने कावेरी नामक धनुष का प्रयोग किया.
 
23:- शतनिक:- नकुल के इस पुत्र को यम्या नामक धनुष प्राप्त हुआ. 

24:- श्रुतसेन:- सहदेव के पुत्र ने गिरिषा नामक धनुष का प्रयोग किया. 

कुरुवंश के कुल गुरु
25:- द्रोणाचार्य :- आचार्य द्रोण ने महर्षि अंगिरस से प्राप्त आंगिरस धनुष का प्रयोग किया. 

हमारे सनातन इतिहास में कई दिव्य अस्त्र-शस्त्र हुए हैं, यहां मैंने केवल धनुषों के नाम लिखे हैं. आगे अन्य अस्त्र शस्त्रों के विषय में भी लिखूँगा. 

#_जय_सत्य_सनातन_धर्म_की
© Madhav Mishra
---#_राज_सिंह---

©Raju Mandloi #महर्षि  #हिंदूसंस्कृति

Raju Mandloi

#_जानें_अपने_वेदों_को

नोट:- यह पोस्ट मैं वेदों को औपचारिक परिचय हेतु ऐसे सनातनी बंधुओं को ध्यान में रखकर लिख रहा हूँ जिन्हें वेदों का किसी भी तरह का ज्ञान नहीं है, अतः न्यूनाधिक जानने वाले बंधु आक्रमण की मुद्रा में ना आएं. 🙏

हमारी सनातन संस्कृति की धूरी हैं चार वेद. इन वेदों का क्रम बहुत सुव्यवस्थित है. कहा जाता है सृष्टि की रचना के पश्चात जगतपिता ब्रह्मा जी के मुख से यह वेद निकले थे, यह वेद सबसे पहले जिन चार महर्षि ने सुने उनके नाम अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा हैं. इन्हे क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान दिया गया, तत्पश्चात इन्ही चारों ने वेदों का मौखिक प्रचार किया. आगे चलकर अनेकों ऋषियों, मुनियों, महर्षियों और विदुषीयों ने वेदों को लिखा.

चारों वेद में सर्वप्रथम #_ऋग्वेद का नाम आता है:-
इसे विद्वानों ने ज्ञानकाण्ड भी कहा है. ऋग्वेद में प्रकृत्ति प्रदत्त पदार्थो (जिनमें जीव जन्तु भी हैं) के गुण और कर्म की व्याख्या की गई है, तथा किन पदार्थों का संबंध किन देवताओं से है इसे भी बताया गया है. ऋग्वेद में दर्शनशास्त्र, लौकिक ज्ञान, पर्यावरण तथा विज्ञान के विषय समाहित हैं. ऋग्वेद के कुछ सुक्त दो विद्वानों की चर्चा के रूप में प्रस्तुत किये गए हैं जैसे:-
पुरुवा - उर्वशी संवाद
यम - यमी संवाद
सरमा - पाणि संवाद
विश्वामित्र - नदि संवाद
वशिष्ठ - सुदास संवाद
अगस्त्य - लोपामुद्रा संवाद
यह संवाद सुक्त नाटकों के मंचन का आधार माने जाते हैं.

द्वितीय वेद है #_यजुर्वेद
जब हम ऋग्वेद के द्वारा प्रकृति प्रदत्त पदार्थों के रूप, गुण व कर्मों को जान चुके होते हैं, उसे सामान्य जीवन में प्रयोग करने का क्रम आता है. अर्थात थ्योरी का ज्ञान लेने के बाद हमें प्रेक्टिकल करना होता है.
इसलिये यजुर्वेद #_कर्मकाण्ड प्रधान ग्रंथ है.
यजुर्वेद में दो शाखाएं हैं.
1:- कृष्ण यजुर्वेद
2:- शुक्ल यजुर्वेद
इस वेद में यज्ञ करने की अनेक विधियों का वर्णन है. श्राद्ध, सेवा, तर्पण की महिमा यजुर्वेद ही बताता है.
अग्निहोत्र, अश्वमेध, वाजपेय, सोमयज्ञ, राजसूय, अग्निचयन आदि यज्ञ के मुख्य स्वरूप हैं.
कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ साथ तंत्रियोजक और ब्राह्मण ग्रंथों का भी सम्मिश्रण है. (यहां ब्राह्मण शब्द का अर्थ ब्राह्मण वर्ण से ना लें, यह ग्रंथ का प्रकार है).
परंतु शुक्ल यजुर्वेद का स्वरूप विशुद्ध तथा अमिश्रित है.

तृतिय वेद है #_सामवेद
ऋग्वेद के ज्ञानयोग और यजुर्वेद के कर्मयोग के द्वारा हमें ईश्वर की मूल प्रकृति का बोध होता है. तब मन में भक्ति जागृत होती है. इस वेद में ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग की अद्भुत त्रिवेणी है. इसलिये इसे चारों वेदों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है.
श्रीमद्भगवद्गीता में योगेश्वर श्री कृष्ण सामवेद की महत्ता बताते हुए कहते हैं
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासव
अर्थात :- मैं वेदों में सामवेद हूँ, और देवताओं में देवराज इंद्र हूँ.
सामवेद संगीत प्रधान है. समस्त स्वर, ताल, छंद, लय, गति, मंत्र, राग, नृत्य, मुद्रा तथा भाव आदि सामवेद से ही निकले हैं.
सामवेद से ही संगीत के सात स्वर
1:- षडज् - सा
2:- ऋषभ - रे
3:- गांधार - गा
4:- मध्यम - मा
5:- पंचम - पा
6:- धैवत - धा
7:- निषाद - नि
मिलते हैं.
सामवेद में मात्र 99 मूलमंत्र हैं, बाकी मंत्र अन्य वेदों से आए हैं.
सामवेद का उपनिषद छन्दोग्य उपनिषद सभी उपनिषद ग्रंथों में सबसे बड़ा है.
ऐसा माना जाता है स्वयं भागवान शंकर ने रावण द्वारा विरचित शिव ताण्डव स्त्रोत को सुनकर उसे सामवेद को संगीतबद्ध करने का काम सौंपा था.

वेदों के क्रम में चतुर्थ स्थान पर है #_अथर्ववेद
ज्ञान, कर्म और भक्ति योग के अभ्यास से हमें विशिष्ट ज्ञान मिलता है जिसे विज्ञान कहा गया है.
अथर्ववेद इस विषय विज्ञान का वर्णन करता है.
यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शांतिपारगः
निवसत्यपि तद्राराष्ट्रं वर्धतेनिरुपद्रव्यम्
अर्थात :- जिस राजा के राज्य में अथर्ववेद को जानने वाले विद्वान शांतिस्थापन के कर्म रहते हैं, वह राष्ट्र उपद्रवित (परिपूर्ण) होकर निरंतर उन्नति करता है.

अथर्ववेद में
भूगोल शास्त्र:- Geography 
वनस्पति शास्त्र:- Botany
आयुर्वेद:- Medical Science 
राजनीति शास्त्र:- Political Science 
अर्थशास्त्र:- Economics 
राष्ट्रभाषा:- Linguistics
शल्यक्रिया:- Surgery 
प्रजनन विज्ञान:- Genetics 
बाल चिकित्सा:- Pediatric
कृमियों से उत्पन्न रोगों का विवेचन
मृत्यु को दूर रखने के उपाय आदि वैज्ञानिक विषयों की व्याख्या है. अथर्ववेद की नौ शाखाएं हैं:-
1:- पैपल
2:- दान्त (दांत नहीं) 
3:- प्रदान्त
4:- स्नात
5:- सौल
6:- ब्रह्मदाबल
7:- शौनक
8:- देवदर्शत
तथा 9:- चरणविद्या
इस तरह अथर्ववेद विज्ञान विषय ग्रंथ है.

जब हम वेदों की बात करते हैं तो एक व्यक्ति का नाम वेदों से जुड़ा देखकर कई लोग आश्चर्य करेंगे. यहाँ उसका उल्लेख उसके महिमामंडन के लिये नहीं बल्कि सत्य लिखने के लिये कर रहा हूँ. रावण के सभी गुणों पर उसके अवगुण ज्यादा बड़े थे, इसलिये उसे महिमामंडित तो किसी भी सूरत में नहीं किया जा सकता. 
#_रावण एक ऐसा व्यक्ति था जिसने ना ही ऋषि मुनि महर्षि पद प्राप्त किया था और ना ही वह शुद्ध रक्त का मनुष्य था (वह ब्राह्मण पिता और असुर माता की संतान था), फिर भी वेदों के प्रति उसका कार्य अमूल्य है. कहा जाता है ऋग्वेद का प्रथम भाष्य लिखित रूप में रावण ने ही तैय्यार किया था. सामवेद को संगीतबद्ध करने का कार्य तो स्वयं महादेव नो रावण को दिया था. अथर्ववेद से संबंधित आयुर्वेद में रावण विरचित कई ग्रंथों को मान्यता दी गई है.
यहां रावण विरचित कुछ ग्रंथों के बारे में लिख रहा हूँ जिन्हे मान्यता दी गई है.
1:- #_उड्डीशतंत्र:- उड्डीशतंत्र का उपदेश भगवान शंकर ने रावण को ही दिया था. जिसे उसने लिपिबद्ध कर उड्डीशतंत्र ग्रंथ की रचना की. इस ग्रंथ में औषधियों के साथ मंत्रों द्वारा रोगी का उपचार करने का वर्णन है.
2:- #_कुमार_तंत्र:- इस ग्रंथ में रावण मंदोदरी को शिशुरोग संबंधि जानकारी दे रहा है. यह ग्रंथ बालचिकित्सा (Pediatrics) विषय का विलक्षण ग्रंथ है.
3:- #_अर्क_प्रकाश :- (यह ग्रंथ मैं बचपन से अपने घर में देख रहा हूँ, दादाजी एक विख्यात वैद्य रहे हैं उन्ही के द्वारा लाया गया था) अर्क प्रकाश में 100-100 श्लोकों के 10 अध्याय में विभिन्न वनस्पतियों से अर्क निकालने की विधि वर्णित है. किस वनस्पति का अर्क उसकी किस दशा में निकाला जाना चाहिए और किस वनस्पति का अर्क किस पात्र में निकाला जाना चाहिये इसका विस्तृत विवरण इस ग्रंथ में है.
4:- #_नाड़ी_परीक्षा:- आप लोगों ने कभी ना कभी सुना होगा कि वैद्य केवल नाड़ी (नब्ज़) को पकड़कर शरीर के सभी रोग बता देते हैं, और उनका सटीक उपचार भी करते हैं. उसी विधा का ज्ञान यह ग्रंथ देता है. इस विधा में किसी भी तरह के पैथोलॉजी डायग्नॉस्टिक के बिना पूरे शरीर की जांच कर ली जाती है.
5:- #_अरूण_संहिता:- (यह ग्रंथ में मैं वर्षों से अपने घर में देख रहा हूँ, यह ग्रंथ मेरे पिताजी के कार्य ज्योतिष से संबंधित है)
यह ग्रंथ लाल किताब के नाम से भी विख्यात है, सूर्य के सारथी अरूण द्वारा रावण को दिये गए उपदेश पर आधारित यह ग्रंथ ज्योतिष शास्त्र में विशेष स्थान रखता है. जन्म कुण्डली, हस्तरेखा तथा सामुद्रिक शास्त्र का अद्भूत मिश्रण लिये यह ग्रंथ अद्वितीय है.

यह हमारे सनातन संस्कृति का सौन्दर्य है कि यहां किसी नकारात्मक व्यक्तित्व से भी सकारात्मक विषय ग्रहण किये जाते हैं.

#_जय_सत्य_सनातन_धर्म_की
लेखन - माधव मिश्रा जी
दिनांक - ०५.११.२०२२
---#_राज_सिंह_---

©Raju Mandloi


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