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Mukesh
ज़िन्दगी तेरा हिसाब गड़बड़ है जिंदगी तेरा हिसाब गड़बड़ है हर हाल में तुने मुझे रुलाया है पर कैसे हार जाऊँ मैं इन तकलीफ़ों के आगे मेरी तरक्की की आस में माँ कब से दहलीज़ पर बैठी है..! #तनु #बज़्म ©Mukesh mukesh
Anjali Singhal
Sameer Kaul 'Sagar'
ख़्वाहिशमंद / wishful आग़ोश में न ले चाहे, तस्वीर से बहला दे मुझको, ज़ुल्फ़ का साया न सही, फ़क़त अहसास से सुला दे मुझको । माना कि तेरे दुपट्टे की हवा का हूँ ख़्वाहिशमंद, करीब से न सही, दूर से इसकी, कुछ तो हवा दे मुझको । चाहा था नरगिस-ए-मख़्मूर के समंदर में डूबना, ज़िन्दगी चल, साहिल-ए-बादा-ओ-जाम तक पहुंचा दे मुझको । तेरी राहों से जुदा कर लूँगा ता-उम्र राहें अपनी खुद से दूर होने की कुछ तो वजह-ए-इताब दे मुझको । वाक़िफ़ हूँ, क़रीब बहुत है मंज़िल-ए-फना मेरी, ऐ खुदा सर-ए-राह कोई साया-ए-शजर-ए-ख़्वाब दे मुझको । ©Sameer Kaul 'Sagar' #urdu #Poetry #ghazal #Love #pyaar #बज़्म #rekhta #लेखनी #urdupoetry #hindipoetry
Anjali Singhal
Rishi
Rabindra Kumar Ram
" कोई महज़ ख़्याल ही हैं कि ख़्याल का तसव्वुर रखें हैं , इस बज़्म में भी कुछ ख़ुद को सम्हाल रखें हैं , हसरतों का क्या करें अब ऐसे में ये हैं भी की नहीं , कहीं मिलोगी तुम फिर इस फ़राज़ में कहीं ये सवाल मुमकिन हैं भी की नहीं . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " कोई महज़ ख़्याल ही हैं कि ख़्याल का तसव्वुर रखें हैं , इस बज़्म में भी कुछ ख़ुद को सम्हाल रखें हैं , हसरतों का क्या करें अब ऐसे में ये हैं भी की नहीं , कहीं मिलोगी तुम फिर इस फ़राज़ में कहीं ये सवाल मुमकिन हैं भी की नहीं . " --- रबिन्द्र राम #ख़्याल #तसव्वुर #बज़्म #सम्हाल
Rabindra Kumar Ram
" कोई महज़ ख़्याल ही हैं कि ख़्याल का तसव्वुर रखें हैं , इस बज़्म में भी कुछ ख़ुद को सम्हाल रखें हैं , हसरतों का क्या करें अब ऐसे में ये हैं भी की नहीं , कहीं मिलोगी तुम फिर इस फ़राज़ में कहीं ये सवाल मुमकिन हैं भी की नहीं . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " कोई महज़ ख़्याल ही हैं कि ख़्याल का तसव्वुर रखें हैं , इस बज़्म में भी कुछ ख़ुद को सम्हाल रखें हैं , हसरतों का क्या करें अब ऐसे में ये हैं भी की नहीं , कहीं मिलोगी तुम फिर इस फ़राज़ में कहीं ये सवाल मुमकिन हैं भी की नहीं . " --- रबिन्द्र राम #ख़्याल #तसव्वुर #बज़्म #सम्हाल
Rabindra Kumar Ram
" मैं तुझे बेहिसाब सा लिखुं तहरीर पे मेरे , कभी दुर कभी और पास सा लिखुं अल्फाज़ मेरे , बज़्म ख़्यालो का अब जो भी हो जैसे भी हो , मैं मुन्तजिर रहुगा तेरा ये बात कुछ जायज ठहरा मेरे . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " मैं तुझे बेहिसाब सा लिखुं तहरीर पे मेरे , कभी दुर कभी और पास सा लिखुं अल्फाज़ मेरे , बज़्म ख़्यालो का अब जो भी हो जैसे भी हो , मैं मुन्तजिर रहुगा तेरा ये बात कुछ जायज ठहरा मेरे . " --- रबिन्द्र राम #बेहिसाब #तहरीर #अल्फाज़ #बज़्म #ख़्यालो #मुन्तजिर #जायज