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Insprational Qoute
पग पग पर रुढ़ियों का बखान होता है संकुचित सोच का मान होता है, आज संकुल समाज कालग्रास के मुख में जा रहा है,ऐसा अंत होता हैं, ऐसा यह समाज है परिवर्तन इनको बिल्कुल भी न भाये, एक रीत है पूर्वजों की बस उन पर चल यह जीना चाहे, नित्य नियम नियमित करते कर्मकांड, अंधविश्वास की डगर अपनाये, समाज और इनकी सोच में आज देखो भारत विकासशील ही कहलाये, कभी भेदभाव,जातिप्रथा, छुआछूत,यह प्राचीन से लेकर आज आधुनिक समय के उपनाम है, आज इन आयामों पर घात प्रतिघात कर शिक्षा का दीप जला युवाओं को जगाना मेरा काम है। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 23. है, आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..! 👉 आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों (8) में लिखें..! 👉Collab करने के बाद Comment box में Done जरूर लिखें,और Comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..! 👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!
DR. SANJU TRIPATHI
समाज और इनकी सोच खोखले, दकियानूसी और दोगले विचारों से भरी पड़ी है। हर कदम पर अंधविश्वास, मान-सम्मान और संकीर्ण मानसिकता मुंह बाए खड़ी है। आधुनिकता का जामा पहनने का दिखावा करते, पर अपनी सोच बदलने से डरते हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण के नारे लगाते और उन्हें ही हमेशा दोयम दर्जे पर रखते हैं। बेटा- बेटी को बराबर बताते हैं, पर भ्रूण परीक्षण कराकर बेटी का अस्तित्व मिटाते हैं। मान- मर्यादा और संस्कारों के नाम पर आज भी, लोग ऑनर किलिंग करवाते रहते हैं। रूढ़िवादी सोच को मिटाने की बातें करके, कुरीतियों और कुप्रथाओं को निभाते रहते हैं। महिलाओं और बच्चों को बढ़ाने की बातें करते, नए-नए नियम और कानून बनाते रहते हैं। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 23. है, आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..! 👉 आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों (8) में लिखें..! 👉Collab करने के बाद Comment box में Done जरूर लिखें,और Comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..! 👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
समाज और इनकी सोच, संकीर्ण मानसिकता को दर्शाते हैं, इक्कीसवीं सदी के लोग हैं सभी, रूढ़िवादी सोच दिखाते हैं। एक तरफ तो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, नारा ये लगाते हैं, कुंठित समाज के लोग अभी भी, भ्रूण परीक्षण करवाते हैं। दहेज प्रथा अभिशाप कहकर, समाज के ठेकेदार बन जाते हैं, लोलुपता बढ़ जाती इनकी, जब ख़ुद बेटे का ब्याह रचाते हैं। ऐसे समाज के लोगों की, हमें मानसिकता बदलनी होगी, मन घृणित होता यह सोचकर, हम किस समाज से आते हैं। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 23. है, आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..! 👉 आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों (8) में लिखें..! 👉Collab करने के बाद Comment box में Done जरूर लिखें,और Comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..! 👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!
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