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Biikrmjet Sing
जह महां उद्यान में मार्ग पावै तेओ साधु संग मिल जोत प्रगटावै।। तिन सन्तन की बांछों धूड़ नानक की हर लोचा पूर।। अर्थ:- जहां महा भूल-भुलैया में, महा अंधकार में निराकार प्रकाश को देखने का मार्ग मन को मिलता है ऐसे ही सच्चे साधु-खालसे के संग से (जिसने नेत्रों को एकदृष्ट करना सीख लिया है) मिल सर सर्वत्र रव रहा निराकार प्रकाश यानी जोत प्रगट हो जाती है।। ऐसे सन्त जनों के बचनों रूपी धूड़ को मेरा मन लोचता है और हे निराकार परमेश्वर! अपने नानक की यह प्रबल इच्छा को पूर्ण करो! ©Biikrmjet Sing #सन्त
Tara Chandra
रचना- १३: संत नहीं तन, मन होता है, ऐसा जीवन, धन होता है। काम, क्रोध, मद, लोभ लुप्त सब, पल- पल एक हवन होता है।। जल, भोजन और हवा जगत में, काया को करती पोषित है। इंसानियत ओढ़नी ले लो, सुंदर अंत कफ़न होता है।। मीरा बनी श्याम की जोगन, सूर भये वैरागी। तुलसी भजें राम धुन क्षण-क्षण, भक्त विजय, जब रण होता है।। धारो मन में शान्ति सागर, व्यभिचारण 'विक्षोभ' ना हो। सदाचार का स्रोत 'हृदय' जब, प्यासा पथिक तृप्त होता है।। सदा सुमंगल दायक जीवन, समरसता आधार बने। त्यागी और तपस्वी का हर, अंतर्द्वंद दमन होता है।। ©Tara Chandra #सन्त
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