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नेहा उदय भान गुप्ता

उदय दुलारी नेह आज लिखेगी, द्रुपद की सुता द्रोपदी के वनवास की करुण कहानी। अग्नि कुंड से जो उत्पन्न हुई, पांडवों के संग ब्याही गई, इंद्रप्रस्थ की थी वो पटरानी।। एक बार की बात है, जब सम्राट युधिष्ठिर हस्तिनापुर में खेलने लगे जब वो चौसर। मामा शकुनि की कपट चाल से, हार गए सब जो मिला था इनको अंतिम अवसर।। कपटी भ्राता दुर्योधन ने छल के द्वारा, दिया पांडवों को फ़िर बारह बरस का वनवास। एक वर्ष के अज्ञातवास में, लिए गए जो पहचान तो पुनः मिलेगी 12 बरस वनवास।। पतिव्रता थी वो सत्यवती अखण्ड सौभाग्य, अग्नि सा समत #yqbaba #yqdidi #myquote #YourQuoteAndMine #yqquotes #openforcollab #collabwithmitali #द्रौपदी_वनवास

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उदय दुलारी नेह आज लिखेगी, द्रुपद की सुता द्रोपदी के वनवास की करुण कहानी।
अग्नि कुंड से जो उत्पन्न हुई, पांडवों के संग ब्याही गई, इंद्रप्रस्थ की थी वो पटरानी।।
एक बार की बात है, जब सम्राट युधिष्ठिर हस्तिनापुर में खेलने लगे जब वो चौसर।
मामा शकुनि की कपट चाल से, हार गए सब जो मिला था इनको अंतिम अवसर।।
कपटी भ्राता दुर्योधन ने छल के द्वारा, दिया पांडवों को फ़िर बारह बरस का वनवास।
एक वर्ष के अज्ञातवास में, लिए गए जो पहचान तो पुनः मिलेगी 12 बरस वनवास।।
पतिव्रता थी वो सत्यवती अखण्ड सौभाग्य, अग्नि सा समता तेज़ था उसके मुख पे।
निकल पड़ी वो भी अपना पत्नी धर्म निभाने, जहां रहते पति वहीं पत्नी रहती सुख में।
राहों में आएं कितने भी कांटे और पत्थर, वो तो बस कान्हा का ही नाम जपती रही।
कांटे भी लगे कृष्णे को पुष्प सम, पर अपने अपमान की क्रोधाग्नि में वो जलती रही।
पांचाल राज की थी वो राजकुमारी, इंद्रप्रस्थ की बनी पटरानी, पर वन वन में भटके।
पांच पांडवों की थी वो पत्नी, पांचों शुर वीर महारथी बलवान, पर ना उसके अश्रु रुके।
बारह बरस का उन्होंने वनवास काटा, फ़िर अज्ञातवास को काटने की अाई अब बारी।
उदय दुलारी नेह की आंखों से भी अश्रु छलक पड़े लिखते लिखते करुण कहानी सारी।
अज्ञातवास की खातिर वो, लिए विराट राज्य की शरण, अपना भेष बदल - बदल कर।
महारानी, पटरानी बन गई शैलेंद्री,  दुःखी हुआ हर कोई वनवास की कथा सुनकर।। 
उदय दुलारी नेह आज लिखेगी, द्रुपद की सुता द्रोपदी के वनवास की करुण कहानी।
अग्नि कुंड से जो उत्पन्न हुई, पांडवों के संग ब्याही गई, इंद्रप्रस्थ की थी वो पटरानी।।
एक बार की बात है, जब सम्राट युधिष्ठिर हस्तिनापुर में खेलने लगे जब वो चौसर।
मामा शकुनि की कपट चाल से, हार गए सब जो मिला था इनको अंतिम अवसर।।
कपटी भ्राता दुर्योधन ने छल के द्वारा, दिया पांडवों को फ़िर बारह बरस का वनवास।
एक वर्ष के अज्ञातवास में, लिए गए जो पहचान तो पुनः मिलेगी 12 बरस वनवास।।
पतिव्रता थी वो सत्यवती अखण्ड सौभाग्य, अग्नि सा समत

DR. SANJU TRIPATHI

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द्रौपदी यज्ञ से उत्पन्न पांचाल नरेश द्रुपद की पुत्री और धृष्ठद्युम्न की बहन थी।
कृष्ण की सबसे प्यारी सखा थी इसलिए उनको कृष्णा भी कहा जाता है।

लक्ष्य जैसे बस निकलने के बाद पांचों पांडवों ने अपना भेष बदल लिया था।
अर्जुन ने मछली की आंख का लक्ष्य भेद कर द्रौपदी से स्वयंवर किया था।

मां कुंती ने बिना देखे ही द्रौपदी को आपस में बांट लेने की बात कही थी।
तभी से द्रोपदी हस्तिनापुर की रानी और पांच पांडव की पत्नी बनी थी।

कौरवों से द्युत क्रीड़ा में हारने के बाद पांडवों को वनवास मिला था।
बारह वर्ष के वनवास के साथ ही एक वर्ष का अज्ञातवास मिला था।

द्रोपदी वनवास में पांडवों के साथ सफेद वस्त्र धारण करके गई थी।
द्रोपदी ने कहा जब वनवास से लौटेंगे तब सारे कौरवों के शवों पर रोयेंगी।

अपने सारे केस खुले रखे दु:शासन की जंघा के रक्त से धोने के लिए।
पूरे वनवास के समय उन्होंने अपने केस खुले रखे और सफेद वस्त्र पहने।

अज्ञातवास में द्रौपदी राजा विराट के यहां उनकी रानी की दासी बनी।
रानी सुदेष्णा के सौंदर्य की देखरेख करने के लिए सेरंध्री नाम रखा।

सेरंध्री के रूप गुण और सौन्दर्य से प्रभावित होकर मुख्य दासी बनाया।
पांडवों ने अपनी योग्यता के अनुसार राजा के यहां भिन्न कार्यों को संभाला।
-"Ek Soch"



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नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹

उदय दुलारी नेह आज लिखेगी, द्रुपद की सुता द्रोपदी के वनवास की करुण कहानी। अग्नि कुंड से जो उत्पन्न हुई, पांडवों के संग ब्याही गई, इंद्रप्रस्थ की थी वो पटरानी।। एक बार की बात है, जब सम्राट युधिष्ठिर हस्तिनापुर में खेलने लगे जब वो चौसर। मामा शकुनि की कपट चाल से, हार गए सब जो मिला था इनको अंतिम अवसर।। कपटी भ्राता दुर्योधन ने छल के द्वारा, दिया पांडवों को फ़िर बारह बरस का वनवास। एक वर्ष के अज्ञातवास में, लिए गए जो पहचान तो पुनः मिलेगी 12 बरस वनवास।। पतिव्रता थी वो सत्यवती अखण्ड सौभाग्य, अग्नि सा समत #yqbaba #yqdidi #myquote #YourQuoteAndMine #yqquotes #openforcollab #collabwithmitali #द्रौपदी_वनवास

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उदय दुलारी नेह आज लिखेगी, द्रुपद की सुता द्रोपदी के वनवास की करुण कहानी।
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मामा शकुनि की कपट चाल से, हार गए सब जो मिला था इनको अंतिम अवसर।।
कपटी भ्राता दुर्योधन ने छल के द्वारा, दिया पांडवों को फ़िर बारह बरस का वनवास।
एक वर्ष के अज्ञातवास में, लिए गए जो पहचान तो पुनः मिलेगी 12 बरस वनवास।।
पतिव्रता थी वो सत्यवती अखण्ड सौभाग्य, अग्नि सा समता तेज़ था उसके मुख पे।
निकल पड़ी वो भी अपना पत्नी धर्म निभाने, जहां रहते पति वहीं पत्नी रहती सुख में।
राहों में आएं कितने भी कांटे और पत्थर, वो तो बस कान्हा का ही नाम जपती रही।
कांटे भी लगे कृष्णे को पुष्प सम, पर अपने अपमान की क्रोधाग्नि में वो जलती रही।
पांचाल राज की थी वो राजकुमारी, इंद्रप्रस्थ की बनी पटरानी, पर वन वन में भटके।
पांच पांडवों की थी वो पत्नी, पांचों शुर वीर महारथी बलवान, पर ना उसके अश्रु रुके।
बारह बरस का उन्होंने वनवास काटा, फ़िर अज्ञातवास को काटने की अाई अब बारी।
उदय दुलारी नेह की आंखों से भी अश्रु छलक पड़े लिखते लिखते करुण कहानी सारी।
अज्ञातवास की खातिर वो, लिए विराट राज्य की शरण, अपना भेष बदल - बदल कर।
महारानी, पटरानी बन गई शैलेंद्री,  दुःखी हुआ हर कोई वनवास की कथा सुनकर।। 
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कपटी भ्राता दुर्योधन ने छल के द्वारा, दिया पांडवों को फ़िर बारह बरस का वनवास।
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