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Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part - I Ch - 16 Finale झींगुर की आवाज़ के बीच नीम की पत्तियों की उस झुरमुट निकल कर हवा ने खिड़की के पल्लों पर दस्तक दी तो जैसे यादों का ज्वार वापस समय के उस काले समुद्र की ओर वापस जाने लगी.. "नेहा मेमसाब.... नेहा मेमसाब..." शांति का स्वर मेरे कानों में ऐसा गूंजा जैसे वह मुझसे कहीं दूर शुन्य में खड़ी हो... फिर एक बच्चे की रोने की आवाज़ मेरे कानों से टकराई जो मुझे वर्तमान में खींच लाई...। मैं ने तुरंत घड़ी की ओर देखा, शाम के सात बज रहे थे, समय कैसे बीता ये पता ही नहीं चला; अवनि को भूख लगी होगी, मैं पलटी तो देखा शा
Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part - I Ch- 15 इधर दीदी के जाने का सत्य हम अभी तक स्वीकार भी नहीं कर पाए थे कि अस्पताल से मां के मृत्यु का समाचार मिला; यह परिस्थिति कुछ ऐसी थी जैसे झंझावात और भूकंप एक साथ आ जाएं। मैं हताश सी वहीं बैठ गई, कुछ समझ नहीं आ रहा था, पापा को क्या बताऊं, स्वयं को कैसे संभालूं, मेरा मानसिक संतुलन इस बवंडर में हिल सा गया था। आमिर भाई ने मेरा हाथ पकड़ लिया, तब मुझे आभास हुआ कि मेरे जीवन को छोड़कर सृष्टि में सबकुछ सही था; मैं ने उनकी ओर देखा, मुझे नहीं याद उस समय मेरे नेत्रों से अश्रु धार बहे या नहीं...या मैं ने क्या
Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part - I Ch - 14 लाजपत नगर पुलिस स्टेशन के मुर्दा घर में मैं आमिर के साथ खड़ा था । मि. अवस्थी भी अपनी बेटी के साथ वहां आए थे। चेहरा ऐसा था जैसे किसी ने उनके बदन का सारा ख़ून निचोड़ लिया हो । उस दिन पहली बार मुझे इतना ज़्यादा बुरा लग रहा था कि मैं इज़हार भी नहीं कर सकता ; अब आप अगर ये सोच रहे हैं कि मैं तो एक पुलिस आॅफिसर हूं मुझे तो इन सबकी आदत होनी चाहिए तो जनाब मौत की आदत किसी को भी नहीं हो सकती , और हर लाश को देखकर इंसान को एक बार अपनी भूली हुई मौत याद आ ही जाती है। मैंने आमिर की तरफ़ देखा, वो एकटक तनु
Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part - I Ch- 13 "तनु ने मुझे बताया था कि जब वो अमन और उसके दोस्तों के साथ शिमला गई थी तब वहां अमन के दोस्तों ने शराब के नशे में उसके साथ बदतमीज़ी की थी।" "कैसी बदतमीज़ी...?" "सर बदतमीज़ी ...सर मैं आपको कैसे समझाऊं... वो...।" "आगे बोलो... अमन को पता है सब...?"
Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part - I Ch - 11&12 "मैं ने उसको नहीं उठाया साहेब... हां मैं तीन दिन तक उसका पीछा किया था... और चौथे दिन जब मैं उधर उसको उठाने के वास्ते गया तो मेरे को सुनने में आया कि लड़की गायब है, अपुन ने सोचा कि अच्छा ही है कि मेरा काम किसी और ने कर दिया... मैं आधा पैसा ले चूका था और आधा बचा हुआ था... तो मैं ने सोचा कि काम भी हो ही गया है तो मैं वो आधे पैसे रख लेगा... बाकी नहीं मांगेगा... वो मिसेज. अरोरा बहुत टेढ़ी औरत है साहब... बहुत कच-कच करती है...." जॉन ऐलन बोलता जा रहा था। इन लोगों को इस दुनिया का इतना तजुर्बा होता है
Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part - I Ch- 10 "मैं यह रिस्क नहीं उठा सकती थी और न ही मुझे उस बंसल पर ज़रा सा भी भरोसा था इसलिए मैंने यह फ़ैसला किया कि मैं चीज़ें अपने हाथ में लूंगी, इससे पहले की बात बिगड़ जाए।" इंसान की फ़ितरत भी बहुत अजीब सी है, वह हर गलत काम करते हैं, लेकिन सब की नज़रों से छुप कर, वो अलग बात है कि दूसरों की ख़ामीयां छुपाना उतना ही मुश्किल है जितना बिना सांस के जीना। बहरहाल हमलोग मुद्दे पर आते हैं। अपने केबिन में बैठा मैं मिसेज़. अरोरा के बयान की रिकॉर्डिंग सुन रहा था, वो आगे बोलीं.... "मुझे प्रोफ़ेसर.बंसल ने जब ये
Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part - I Ch-9 "मैं ने तनु को धमकाया ज़रुर था पर मैं ने सच में कुछ नहीं किया। वो तो उस दिन के बाद कॉलेज भी नहीं आई; और चूंकि मेरे खिलाफ कोई वैसी विडियो भी रिलीज़ नहीं हुई तो मैं संतुष्ट हो गया क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि मेरी धमकी काम कर गई थी।" प्रोफ़ेसर एक सुर में सारी दास्तां सुनाए जा रहे थे। अब आप ये हरगिज़ मत सोच लिजिए कि शरीफ़ लोगों का दिल रुई सा नाज़ुक होता है, जो एक थप्पड़ में ही लाइन पर आ जाए, और जो अगर होता भी हो तो प्रोफ़ेसर के मुतल्लिक़ ये बात थोड़ी ग़लत थी। पुलिस स्टेशन लाने के बाद अंगुलियों पर जो
Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part - I Ch-8 मैं लाजपत नगर में त्रिवेणी अपार्टमेंट के सामने लाजपतनगर की पुलिस टुकड़ी के साथ , प्रो.बंसल के बिल्डिंग के ठीक नीचे खड़ा था और मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरी खोज को अब उसकी अंतिम कड़ी मिल जाएगी। अब आप सोच रहे होंगे कि भला मुझे उस फुटेज में ऐसा क्या मिला जो मेरा आत्मविश्वास इतना बढ़ा हुआ था। तो हुआ यूं कि "मैं फुटेज देख रहा था और अपना पूरा ध्यान मैंने उस नक़ाबपोश इंसान पर लगाया हुआ था, तभी मैंने देखा कि शाम 6:00 की फुटेज में वह इंसान तनु का बैग वहां रखकर कालका जी मंदिर जाने वाली मेट्रो पर चढ़ा; मै
Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part I Ch- 7 पापा हॉल में टहल रहे थे और मैं दीदी के रुम में उनके सामानों के बीच उस काले रंग की पेनड्राइव ढूंढने में लगी हुई थी, पुलिस के हिसाब से जिसके तार दीदी के गुमशुदगी से जुड़े थे.... आज दीदी को लापता हुए चार दिन हो चुके थे और अभी तक उनसे जुड़ा कोई ठोस सूराग नहीं मिला था। मां का स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा था और साथ ही बढ़ रही थी पापा की चिंता। कोई सुबह के दस बजे थे कि दरवाज़े की घंटी बजी। मैं ने दरवाज़ा खोला, सामने देखा तो एक कांस्टेबल खड़ा था। उसने पूछा "क्या ये मि. आदित्य अवस्थी का घर है...?"
Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part - I Chapter - 6 "आप अनु हैं" "जी हां" "आपसे तनु के बारे में कुछ पूछना है" "अंदर आइए"