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Best दिनेशपांडेय Shayari, Status, Quotes, Stories

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दि कु पां

राधा मैं तो भूखा हूं प्रेम का मेरे भक्त कहते हैं मैं प्रेमी तेरा.. पर राधा तू अलग ही कहां है मुझसे.. कोई क्या जीवित रह सकता है बिन ह्रदय के... ये तो लीला थी मायावी कृष्ण की अपने ही सोच की एक राधा बना जग को जो प्रेम रीत सिखनी थी... #Krishna #Instagram #RadhaKrishna #YourQuoteAndMine #radhekrishna #wallpaperzone #दिनेशपांडेय

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राधेय राधा...












                           कृपया अनुशीर्षक में पढ़े.... राधा मैं तो भूखा हूं प्रेम का
मेरे भक्त कहते हैं मैं प्रेमी तेरा..
पर राधा तू अलग ही कहां है मुझसे..
कोई क्या जीवित रह सकता है 
बिन ह्रदय के...
ये तो लीला थी मायावी कृष्ण की
अपने ही सोच की एक राधा बना
जग को जो प्रेम रीत सिखनी थी...

दि कु पां

करती क्या हो तुम दिन भर...?? क्रोंध गया था ये सवाल... अस्तीत्व पर प्रशन चिन्ह सा.. हिल गई थी अंदर तक सोचती रही रात भर.. आंखों से अश्रु रुकने का नाम ही ना ले रहे थे.. दिल में अपने लिए नकारात्मक सोच #lovequotes #yourquote #YourQuoteAndMine #deep_thoughts #yqdeep #Collabwithdeepthoughts #दिनेशपांडेय

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अगर बरस जायेगी तो
वरना मेरे अश्क ही काफी है मुझे भिगोने को..

करती क्या हो तुम दिन भर...??
क्रोंध गया था ये सवाल...
अस्तीत्व पर प्रशन चिन्ह सा..

हम हाउसवाइफ बेरोजगार हैं.. 
इसलिए आराम से तुम सब रोजगार करते हो.. 
आगे से पूछना कभी.. तो बतलाऊंगी.. 
पूरा हिसाब अपनी बेरोजगारी का...

शेष अनुशीर्षक में पढ़े.... करती क्या हो तुम दिन भर...??
क्रोंध गया था ये सवाल...
अस्तीत्व पर प्रशन चिन्ह सा..

हिल गई थी अंदर तक
सोचती रही रात भर.. 
आंखों से अश्रु रुकने का नाम ही ना ले रहे थे..
दिल में अपने लिए नकारात्मक सोच

दि कु पां

अपनो के लिए जीता रहा वो उम्र भर पर वो कंजूस था हर शौक से मरहूम था ऐसा बचपन से ना था.. तब बड़ा शौकीन था रेस्त्रां कपड़े कार इधर उधर घूमना उसके लिए आम था पर ना जानें क्या हुआ.. उसमे ये बदलाव हुआ पिता का रिटायरमेंट हुआ वो अचानक बड़ा हुआ शौक उसका बदलने लगा वो गंभीर सा रहने लगा #yqdidi #YourQuoteAndMine #yqrestzone #collabwithrestzone #rzhindi #rzअपनोंकेलिए #दिनेशपांडेय

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अपनो के लिए जीता रहा वो उम्र भर
पर वो कंजूस था हर शौक से मरहूम था
लोग कहते है कभी कोई शौक ही ना रहा




शेष अनुशीर्षक में पढ़े
पढ़े ज़रूर.... अपनो के लिए जीता रहा वो उम्र भर
पर वो कंजूस था हर शौक से मरहूम था
ऐसा बचपन से ना था.. तब बड़ा शौकीन था
रेस्त्रां कपड़े कार इधर उधर घूमना उसके लिए आम था
पर ना जानें क्या हुआ.. उसमे ये बदलाव हुआ

पिता का रिटायरमेंट हुआ वो अचानक बड़ा हुआ
शौक उसका बदलने लगा वो गंभीर सा रहने लगा

दि कु पां

प्रेम सिर्फ़ वसन नही वासना का....
प्रेम समुन्दर है जज्बातों का...
प्रेम सागर है अरमानों का..
प्रेम दरिया है भावों का..
प्रेम अग्नि है विरह का.. प्रेम संयोग है मिलन का.. 
प्रेम आकर्षण है सम्मोहन है चाहतों का ..
प्रेम अंतरंगता है समर्पण है दो दिलों के रिश्तों का.. 
प्रेम लगाव है.. भाव है.. स्पर्श है.. जिस्मों का
प्रेम मुक है.. निशब्द है.. त्याग है.. आस है रूहों का
प्रेम सेवा है.. संघर्ष है.. प्रतिबद्धता है अनुराग का..
प्रेम भय है.. प्रेम अनिश्चिता है.. 
प्रेम असुरक्षा का भाव है बिछूड़ने का..
प्रेम जोश है.. प्रेम उत्साह है.. प्रेम आनंद है.. प्रेम परमानंद है..
प्रेम जीवन का सार है.. प्रेम जीवन का आधार है..
प्रेम पूर्णता है..  प्रेम पुर्ण विराम है जिंदगी का... #दिनेशपांडेय

दि कु पां

शब्द दे इस संज्ञा को सीमित करूं तो मैं कैसे वो जान हथेली पर रख.. ना जानें सीमा पर खड़ा है कैसे हम सब जैसा ही वो भी किसी मां का लाल है ना जानें क्या खा माएं जनतीं है ये वतन पर मर मिटने वाले सपने हमारी तरह वो भी बुनता है आंखों में फिर भी सीना तान खड़ा रहता है वो सीमा पर ना जानें कैसे बहन राखी ले इन्तजार करती है उसकी भी दिल पर पत्थर रख करने को रक्षा वतन की ना जानें सीमा पर खड़ा वो रहता है कैसे #Hindi #hindiquotes #हिंदी #yqdidi #YourQuoteAndMine #फौजी #hindicollab #दिनेशपांडेय

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हर वेदना को सह वो सीमाओं की रक्षार्थ प्राण हथेली पर गोलियों के बौछारों बिच ना जानें वो खड़ा रहता है कैसे..
इस संज्ञा को शब्द दे सीमित न करना चाहता पर थोड़ी वेदनाओं पर इनके गौर करें अनुशीर्षक में... शब्द दे इस संज्ञा को सीमित करूं तो मैं कैसे
वो जान हथेली पर रख.. ना जानें सीमा पर खड़ा है कैसे 
हम सब जैसा ही वो भी किसी मां का लाल है
ना जानें क्या खा माएं जनतीं है ये वतन पर मर मिटने वाले
सपने हमारी तरह वो भी बुनता है आंखों में
फिर भी सीना तान खड़ा रहता है वो सीमा पर ना जानें कैसे
बहन राखी ले इन्तजार करती है उसकी भी
दिल पर पत्थर रख करने को रक्षा वतन की ना जानें सीमा पर खड़ा वो रहता है कैसे

दि कु पां

खा ठोकरों को बहुत कुछ मैने वक्त से सीखा था कुछ बहुत अपने थे उनका अपनापन वक्त पर दिखा था.. जब भी वक्त कि ठोकर खा मैं लड़खड़ाया बेगानों ने साथ दिया अपनो का कभी पास न पाया वो रात काली थी हर रात के भांति बैठा सड़क किनारे अकेला कभी झुझता जज़्बातों से.. तो कभी हालातों से.. #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #क़लम_ए_हयात #yqurduhindipoetry #ठोकर_Qeh #कविताQeh_17 #दिनेशपांडेय

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खा ठोकरों को बहुत कुछ मैने वक्त से सीखा था
कुछ बहुत अपने थे उनका अपनापन वक्त पर दिखा था..

जब भी वक्त कि ठोकर खा मैं लड़खड़ाया
बेगानों ने साथ दिया अपनो का कभी पास न पाया

वो रात काली थी हर रात के भांति 
बैठा सड़क किनारे अकेला कभी झुझता जज़्बातों से.. तो कभी हालातों से..

कहने को अपनो के शहर में था 
पर रात उस.. सड़कें अनजानी सी लगती थीं 

मजबूर खड़ा मैं मौन आत्मावलोकन करता रहा
अपरचित चेहरे उस वक्त अपनो से ज्यादा अपने थे.. खा ठोकरों को बहुत कुछ मैने वक्त से सीखा था
कुछ बहुत अपने थे उनका अपनापन वक्त पर दिखा था..

जब भी वक्त कि ठोकर खा मैं लड़खड़ाया
बेगानों ने साथ दिया अपनो का कभी पास न पाया

वो रात काली थी हर रात के भांति 
बैठा सड़क किनारे अकेला कभी झुझता जज़्बातों से.. तो कभी हालातों से..

दि कु पां

       🚩अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
       🚩देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है-
🔱 अनायासेन मरणम्...... अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।

🔱 बिना देन्येन जीवनम्......... अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।

🔱 देहांते तव सानिध्यम ........अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।

🔱 देहि में परमेशवरम्..... हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।
                                     संकलन; दिनेश कुमार पाण्डेय  #दिनेशपांडेय

दि कु पां

बात जो सिर्फ गुलाब तक होती 
तो दे तुम्हे मैने भी रस्म अदायगी कर दी होती..
बगावत तुम्हारे लिए शायद मैने भी विस्वास से कर दी होती,
मगर यहां सवाल तो ये है की जैसा मैं हूं वैसा क्या तुम मुझे स्वीकार कर पाओगी...??
जबकि उसके दिए गुलाब आज भी मेरी किताबों बीच वैसे ही महकते हैं..— % & #दिनेशपांडेय

दि कु पां

#दिनेशपांडेय "क्या शादी इसलिए ही होती है.." आईं थी बड़े अरमानों से आंखों में ढेरों सपने संजोए ससुराल है, सखियों ने बहुत समझाया था, पर शायद उल्टा समझ गई थी मैं, मैने दिल जिगर से उसे अपनाया था,

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शेष अनुशीर्षक में पढ़े.... #दिनेशपांडेय

"क्या शादी इसलिए ही होती है.."

आईं थी बड़े अरमानों से आंखों में ढेरों सपने संजोए
ससुराल है, सखियों ने बहुत समझाया था,
पर शायद उल्टा समझ गई थी मैं, 
मैने दिल जिगर से उसे अपनाया था,

दि कु पां

wow! क्या मस्त 
combination है...
एक ही कमी रह गई थी, 
लिखा होता.. जो.. कि..
सर्द रात... खुली खिड़कियों से
आती सर्द हवा के मस्त झोकें..
अनायास ही कड़कती बिजली 
की तेज़ चमक.. में... 
मैं और तुम सिहरते हुए.. 
चाय के कपों को थरथराते
हुए उसे अपने अधारो से लगा
अंतिम घुंट तक जिस्म को गर्म
करने का एक विफल प्रयास करते हुऐ...  
आओ एक दूजे के बाहों में समा 
जिस्म से जिस्म को कुछ गर्मी दे..
इन सर्द रातों का मुकाबला करें.. #दिनेशपांडेय
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