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Abundance

#उची जातियाँ
#ब्राह्मण #राजपूत#वैश्य #शूद्र
विभाजन इतना ही नहीं है जातियों का
इन चारो में भी कितने विभाजन शामिल है
सवाल उठा ब्राह्मण में ऊंचा कौन
क्षत्रिय में ऊंचा कौन...... वैश्य.. शूद्र में ऊंचा कौन
हर जाति के अंदर विभाजन....
#4भाई चारो में संपत्ति बटवारा
#चाँद (हिन्दू का अलग (करवाचौथ ), मुस्लिम का अलग (ईद का चाँद ))
#ग़ज़ल ओर कविता का बटवारा
इन्ही बटवारो पर.........
कमरा, आँगन, बर्तन बाट लिया
ये कोर्ट कचहरी में सब लोग भटक गए
जज ने कहाँ वाह भाई आप सभी इतने हिस्सों में बट गए 
फैसला :------ इंसानियत जिसके हिस्से आयी
वही जीत गया बटवारा...

©Mallika #बटवारा#विभाजन quotes 

#fog

Snehi Uks

शुद्र नहीं हम शुद्ध हैं,
क्योंकि रग-रग
 में मेरे बुद्ध है,
नही मानता मैं ऊंच-नीच 
ढोंग पाखंड को 
क्योंकि यह मानवता
 के विरुद्ध है... #Buddha_purnima #शूद्र #मानव #शुद्ध #वीर #बुद्ध #नही #मानता #क्यों #की

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

कारुरहं ततो भिषगुपलप्रक्षिणी नना ।
 नानाधियो वसूयवोऽनु गा इव तस्थिमेन्द्रायेन्दो परि स्रव ॥

पद पाठ
का॒रुः । अ॒हम् । त॒तः । भि॒षक् । उ॒प॒ल॒ऽप्र॒क्षिणी॑ । न॒ना । नाना॑ऽधियः । व॒सु॒ऽयवः॑ । अनु॑ । गाःऽइ॑व । त॒स्थि॒म॒ । इन्द्रा॑य । इ॒न्दो॒ इति॑ । परि॑ । स्र॒व॒ ॥ 

(कारुः, अहं) मैं शिल्पविद्या की शक्ति रखता (ततः) पुनः (भिषक्) वैद्य भी बन सकता हूँ, (नना) मेरी बुद्धि नम्र है अर्थात् मैं अपनी बुद्धि को जिधर लगाना चाहूँ, लगा सकता हूँ, (उपलप्रक्षिणी) पाषाणों का संस्कार करनेवाली मेरी बुद्धि मुझे मन्दिरों का निर्माता भी बना सकती है, इस प्रकार (नानाधियः) नाना कर्मोंवाले मेरे भाव (वसुयवः) जो ऐश्वर्य्य को चाहते हैं, वे विद्यमान हैं। हम लोग (अनु, गाः) इन्द्रियों की वृत्तियों के समान ऊँच-नीच की ओर जानेवाले (तस्थिम) हैं, इसलिये (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! हमारी वृत्तियों को (इन्द्राय) उच्चैश्वर्य्य के लिये (परि,स्रव) प्रवाहित करें ॥

(Karuh, ego) I have the power of craftsmanship (sic). I can also become a (practitioner) Vaidya again, (Nana) My intellect is meek, that is, I want to direct my intellect, I can plant, (Upalakshrini) who performs the rituals of the stones.  My intellect can also make me the creator of temples, thus (Nanadhiyah), those of my deeds with great deeds (Vasuyaivah), who want to have the greatness, exist.  We (anu, ga:) are (tasthim) going towards high and low as the instincts of the senses, so (Indo) O God of light!  Make our vrittis (sense) flow (pariva, sravana) to the Supreme Being.

( ऋग्वेद ९.११२.३ ) #ऋग्वेद #वेद #कर्मफल_व्यवस्था #कर्मफल #वर्ण #ब्राह्मण #क्षत्रिय #वैश्य #शूद्र

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

तपसे शुद्रम

बहुत परिश्रमी ,कठिन कार्य करने वाला ,साहसी और परम उद्योगों अर्थात तप को करने वाले आदि

Very hard working, hard working, courageous and ultimate industries ie those who do penance etc.

( यजुर्वेद ३०.५ ) #यजुर्वेद #वेद #मंत्र #शूद्र #तप #sudras #वर्ण #वर्ण_व्यवस्था

✒ ℘Ʀıŋc£ Sʀɩvʌstʌvʌ🔥

ज्ञान में #ब्राह्मण हूँ...
रणभूमि में #क्षत्रिय...
व्यवस्था में #वैश्य...
सेवा में #शूद्र हूँ...
अतः मैं #हिन्दू हूँ...
 🔥जय श्री राम🔥

Vinni Gharami

नमस्कार मेरे प्रिय पाठकों🙏🙏 भारत में काफी सारे लोग हैं जो हिंदू धर्म के वर्ण व्यवस्था पर लांछन लगाते हैं दुख की बात यह है इसमें अधिकतर हिंदू भी शामिल है। इस रचना में मैंने वर्ण व्यवस्था का संक्षिप्त और सकारात्मक उल्लेख किया है आशा है कुछ नासमझ व्यक्ति समझेंगे। वर्ण व्यवस्था नहीं, ये ब्रह्म अवस्था है। ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र में बांटा कर्म, यह उस ईश्वर की श्रेष्ठता है।

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 नमस्कार मेरे प्रिय पाठकों🙏🙏
भारत में काफी सारे लोग हैं जो हिंदू धर्म के वर्ण व्यवस्था पर लांछन लगाते हैं दुख की बात यह है इसमें अधिकतर हिंदू भी शामिल है। इस रचना में मैंने वर्ण व्यवस्था का संक्षिप्त और सकारात्मक उल्लेख किया है आशा है कुछ नासमझ व्यक्ति समझेंगे।

वर्ण व्यवस्था नहीं,
ये ब्रह्म अवस्था है।
ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र में बांटा कर्म,
यह उस ईश्वर की श्रेष्ठता है।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 7 - शरीर अनित्य है लोग पागल कहते हैं वैद्यराज चिन्तामणिजी को, यद्यपि सबको यह स्वीकार है कि उनके हाथ में यश है। नाड़ीज्ञान में अद्वितीय हैं और उनके निदान में भूल नहीं हुआ करती। वे जब चिकित्सा करते हैं, मरते को जीवन दे देते हैं; किंतु अपने पागलपन से उन्हें जब अवकाश मिले चिकित्सा करने का। इतना निपुण चिकित्सक - उसके हाथ में लोहे को सोना करने वाली विद्या थी। वह अपना व्यवसाय किये जाता - तो लक्ष्मी पैर तोड़ उसके घर में बैठने को प्रस्तुत कब नहीं थ

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
7 - शरीर अनित्य है

लोग पागल कहते हैं वैद्यराज चिन्तामणिजी को, यद्यपि सबको यह स्वीकार है कि उनके हाथ में यश है। नाड़ीज्ञान में अद्वितीय हैं और उनके निदान में भूल नहीं हुआ करती। वे जब चिकित्सा करते हैं, मरते को जीवन दे देते हैं; किंतु अपने पागलपन से उन्हें जब अवकाश मिले चिकित्सा करने का।

इतना निपुण चिकित्सक - उसके हाथ में लोहे को सोना करने वाली विद्या थी। वह अपना व्यवसाय किये जाता - तो लक्ष्मी पैर तोड़ उसके घर में बैठने को प्रस्तुत कब नहीं थ


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