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Pratibha Pandey
#दिनांक:-26/12/2023 #शीर्षक:-मसल कर कली को। चाँद का दाग अब अदृश्य होने लगा है, बेकरार सजन, फिर क्यूँ दम्भ भरने लगा है ? लाली बिखेर प्यार की सांझ से, अब काली रात से क्यूँ डरने लगा है ? खूबी बेकरार होकर करार मांगता है , प्रेम में आलिंगन आर-पार मांगता है, कोर से गिरते अश्क-धार , लोचन मींचते कर बार-बार कांपता है । यौवन की मनमोहक कली, अधूरी महक को, अब पूरा चाहने लगा है, चाँद का दाग अब अदृश्य होने लगा है, बेकरार सजन फिर क्यूँ दम्भ भरने लगा है?।1। कहों कैसे विस्मृत करूँ दिलदार को, पहली चुम्बन पहले प्यार को! सिहरन अब भी बाकी रोम-रोम में , सुहाने मौसम हुए गुलजार को। नटखट मन प्रिय से, प्रथम प्रेम तारुण्य चाहने लगा है , चाँद का दाग अब अदृश्य होने लगा है, बेकरार सजन फिर क्यूँ दम्भ भरने लगा है ?।2। श्रृंगार कर ख्वाब हसीन बुन रही ख्वाहिश, नेह सुमन से आँचल भरने की कर रही फरमाइश, उर के अंदर हर कंप को दृग करो प्रिय, छोड़ो बचपना ना करो अब नुमाइश । बेकरारी की हद पार हो रही, पोर-पोर में अब उष्णता फैलने लगा है, चाँद का दाग अब अदृश्य होने लगा है, बेकरार सजन फिर क्यूँ दम्भ भरने लगा है।?3। मसल कर कली को, फूल गुलाब कर दो, सूखे कुएँ में आब भर दो, हरियाली देखे बरस बीत गए , बंजर धरती पर हरित की दाब कर दो । अज्ञात सुखद एहसास की मदिरा! सजनी के साथ साजन पीने लगा है , चाँद का दाग अब अदृश्य होने लगा है, बेकरार सजन फिर क्यूँ दम्भ भरने लगा है ?।4। (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई ©Pratibha Pandey #ballet
कृष्णा वाघमारे, जालना , महाराष्ट्र,431211
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Deepak verma
🌹 शोहरत 🌹 #दिनांक - 29 जनवरी 2023 रविवार #शोहरत से जो कमाया तूने, क्या खोना क्या पाना है। क्या जाएंगे साथ तुम्हारे, कर्मों का लेखा जोखा है।। आएगा जब कयामत दिन, क्या पड़ेगा तुझे पछताना है। सद्कर्मों का संचयन तेरा,फिर मौत से क्या घबराना है।। ©Deepak verma