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Ekta Singh

#कौशल्या के राम #विचार

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Pravin sinha

*कौशल्या*
कभी कैद था तुझमें,फिर भी आजाद था,
उस प्यारे से आशियाने में हुआ मेरा आगाज था।
तेरी हर सांस से मेरी हर सांस जुड़ी थी
ममता और प्यार की वह पहली कड़ी थी।
छिपा खुद के दर्द को तू मुस्कुरा रही थी
छोड़ सब ख्वाहिशें
 तू मुझको सजा रही थी।
वजूद है तुझसे मेरा,
 तुम मुझे इस जहां में लाई है
जड़ें मेरी तुझमें है
तू ही मेरी परछाईं है
महकते मीठे पलों की तलाश में,
अब भी वैसे ही  फुसला रही हो
अपनी जागी आंखों से मेरी
 रातों को उजला रही हो।
हमें तराशने में क्या कुछ नहीं खोया तुमने
उत्तम संस्कारों को इस माटी 
में "कौशल्या" बोया तुमने।
उस मां पर क्या लिखूं जिसने खुद मुझे लिखा है
सरस्वती का वास है तुझमें,तुमने ही तो सींचा है।
शब्द होते हुए भी शब्दों का अभाव पा रहा हूं,
तुम्हारे ही आशीर्वाद से आज कलम चला रहा हूं।
🙏🙏

©Pravin Kumar Sinha #कौशल्या#मदर्स डे#

#PARENTS

Rakhee ki kalam se

धरती त्रहिमान हुई राक्षसों का था आतंक बड़ा त्रेता युग न रहा आसान धरती को था कष्ट बड़ा गाय रूप धर पहुंची धारा तब ब्रह्मा जी के द्वार ब्रह्मा जी के कहने पर विष्णु जी #राम #कौशल्या #NojotoRamleela

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धरती त्रहिमान हुई
 राक्षसों का था आतंक बड़ा
त्रेता युग न रहा आसान
धरती को था कष्ट बड़ा

गाय रूप धर पहुंची धरा तब
ब्रह्मा जी के द्वार
ब्रह्मा जी के कहने पर विष्णु जी
ने फिर एक अवतार गढ़ा

राम रूप धरकर फिर उनको
धरती पर आना ही पड़ा
तरस रहे थे राजा दशरथ
पुत्रप्राप्ति बिन था संताप बड़ा

(कैप्शन में पूरा जरूर पढ़ें)
बोलो कौशल्या नंदन श्री राम चंद्र की जय🙏

©Rakhee ki kalam se धरती त्रहिमान हुई
 राक्षसों का था आतंक बड़ा
त्रेता युग न रहा आसान
धरती को था कष्ट बड़ा

गाय रूप धर पहुंची धारा तब
ब्रह्मा जी के द्वार
ब्रह्मा जी के कहने पर विष्णु जी

Rose Ratan

#OpenPoetry

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#OpenPoetry कलयुग    के    इस    भाग    दौड़    में।
चल  करते  हैं  त्रेता  वाले  कुछ  काम।

मां  तुम  बन  जाओ  कौशल्या  माई।
मैं      बन     जाता     हूं     श्री   राम।

पास     यहीं    पर     लगी    है   मंडी,
मां    ला     दो    ना    तीर  -  कमान।

वन    में    जाकर    मैं   भी    मारूंगा।
राक्षस   खर   दूषण , ताड़का   समान।

बनकर       तुम        कैकई        माता ।
दे    दो    वन    जाने    का     फरमान।

रखकर       परमपिता       का      मान।
वन   को  जाऊंगा  मैं  , श्रीराम‌  समान।

मां   लेकिन   वो   त्रेता    चिंगारी   थी।
ये     कलयुग     है   ,  आग    समाज।

अब   हैं  , हर   इंसान   में  एक  रावण।
कैसे   करूं   मैं   रावण  की   पहचान।

मां  तुम  बन  जाओ   कौशल्या   माई।
मैं      बन      जाता     हूं  , श्री   राम । #OpenPoetry


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