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Divyanshu Pathak
😊गुरुजी की ड्यूटी😊 कैप्शन पढ़े👇 #9_मिनट_दीपक_जलाओ आज रात 9 बजे सभी #21_दिन_का_लॉक_डाउन चल रहा है। इसी बीच आओ थोड़ी मौज भी लेलो......... हमारे सर् की कहानी उन्ही की जुबानी.... : प्राणेश्वरी ने सुबह 5 बजे जगा दिया और 6 बजे तक लंच टिपिन पैक कर गेट पर मुस्कान भरी टाटा बाय बाय करके ऐसे विदा कर रही मानो बौर्डर पर जा रहा हूं। करोना की ड्यूटी से पहले एक सप्ताह घर पर पडा रहा तब तो इतना लाड दुलार नहीं दिखाया था फिर अब क्या हुआ! कहीं ये डर से उत्पन्न अंतिम प्रेम तो नहीं ? "हे प्रिये ! अचानक से इतना प्रेम, कोई खास बजह ?" हमने भी भावविभोर
#9_मिनट_दीपक_जलाओ आज रात 9 बजे सभी #21_दिन_का_लॉक_डाउन चल रहा है। इसी बीच आओ थोड़ी मौज भी लेलो......... हमारे सर् की कहानी उन्ही की जुबानी.... : प्राणेश्वरी ने सुबह 5 बजे जगा दिया और 6 बजे तक लंच टिपिन पैक कर गेट पर मुस्कान भरी टाटा बाय बाय करके ऐसे विदा कर रही मानो बौर्डर पर जा रहा हूं। करोना की ड्यूटी से पहले एक सप्ताह घर पर पडा रहा तब तो इतना लाड दुलार नहीं दिखाया था फिर अब क्या हुआ! कहीं ये डर से उत्पन्न अंतिम प्रेम तो नहीं ? "हे प्रिये ! अचानक से इतना प्रेम, कोई खास बजह ?" हमने भी भावविभोर
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यह चर्चा भी विश्व में बराबर बनी रहती है कि हम प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं, उसका अमर्यादित दोहन कर रहे हैं। पर्यावरण दूषित हो रहा है, पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। इसके बावजूद प्रकृति के स्वरूप एवं कार्य की चर्चा नहीं होती। #21_दिन_का_लॉक_डाउन चल ही रहा है और #विज्ञान_का_ताण्डव सब देख ही रहे हैं। आज तो मैं बस यही कहना चाहूँगा कि मोदी जी द्वारा जो #9_मिनट_दीपक_जलाओ की बात कही गई है उसे सब लोग सहर्ष स्वीकार करें और जलाएं। यह भी प्रकृति की उपासना ही है। : सृष्टि के आरंभ काल में कृषि का विकास नहीं हुआ था। चारों ओर जल था, समुद्र थे, रेगिस्तान थे। जहां जो उपलब्ध हुआ, लोग उसी से जीवन यापन करते थे। जब कृषि का ज्ञान हुआ, सभ्यता आगे बढ़ी, अन्न का मानवीय स्वरूप विकसित होने लगा। मनुष्य की प्रकृति बदलने लगी। उसी के साथ आकृति औ
#21_दिन_का_लॉक_डाउन चल ही रहा है और #विज्ञान_का_ताण्डव सब देख ही रहे हैं। आज तो मैं बस यही कहना चाहूँगा कि मोदी जी द्वारा जो #9_मिनट_दीपक_जलाओ की बात कही गई है उसे सब लोग सहर्ष स्वीकार करें और जलाएं। यह भी प्रकृति की उपासना ही है। : सृष्टि के आरंभ काल में कृषि का विकास नहीं हुआ था। चारों ओर जल था, समुद्र थे, रेगिस्तान थे। जहां जो उपलब्ध हुआ, लोग उसी से जीवन यापन करते थे। जब कृषि का ज्ञान हुआ, सभ्यता आगे बढ़ी, अन्न का मानवीय स्वरूप विकसित होने लगा। मनुष्य की प्रकृति बदलने लगी। उसी के साथ आकृति औ
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