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Divyanshu Pathak
शोर मचा बिन सोचे समझे, अक्रांत हृदय करते हो। क्यों?आख़िर किसलिए? दिलों में तुम नफ़रत भरते हो। कटुता के बिरवा बो कर, सौहार्द राष्ट्र का खण्डित कर! मानवता के दुश्मन बन तुम, क्यों धर्म द्वेष से धोते हो। पिछली 70 सालों का अध्ययन किया जाए तो हम समझ सकते है कि देश को यहाँ तक पहुँचाने में किसका हाथ है। जी अधिकतर लोग कांग्रेस या नेताओं को गरियाते हुए सिस्टम को दोषी ठहरा देते है। कुछ उदारवादी विचारक इसे स्वयं पर ही टेप देते है। किन्तु मुझे तो यह सब सिर्फ अपनी शिक्षा व्यवस्था की कमी लगी। : बाहर का ज्ञान थोपकर सभी को एक जैसा बनाने की कोशिश। यह "अंग्रेजियत" बनकर छा गई अब शरीर से ऊपर कुछ रहा ही नही। पश्चिम की भोगवादी संस्कृति के साथ बड़े होते बच्चे पेट आगे कुछ सीख ही नही पाते।#नौकरी_का_नशा उनको बस जुआरे क
Divyanshu Pathak
मैंने जब ईश्वर के बारे में जानने की कोशिश की तो, कभी पिता, कभी माँ का स्वरूप सामने आ खड़ा होता। चिकित्सक,शिक्षक,सैनिक हों या पुलिस, सब एक जैसे। भामाशाह हों या पत्रकार जो राष्ट्रहित के साथ, मानव जीवन को बचाने की के लिए जो ढाल बने हैं, सभी में ईश्वर दिखाई दिया। मैं जब "अन्नदाता" को देखता हूँ तो, ईश्वर के साक्षात दर्शन पाता हूँ। "किसान" मुझे ईश्वर का प्रतिरूप मालूम हुआ। बाकी सब उसके अंश, तुम्हें नही लगता क्या ? उसी की उपज खा खा कर ही तो, सब इतने योग्य हुए हैं। अपनी भूमि को कड़ी मेहनत से उपजाऊ बनाकर बीजता है किसान बिल्कुल ईश्वर की तरह और पूरे मन से तन से धन से जुट जाता है पूरी दुनिया की भूख मिटाने की चाह में। सहता है आँधी ओले बरसात बे-मौसम की आह! करता हुआ पर उम्मीद नही छोड़ता। लेकिन बीजे गए सभी बीज कभी भी एक जैसे पौधे नही बन पाते। कोई पतला, कोई मरा सा किसी को कीड़ी लग गई तो कोई जंगली जानवरों या पशुओं की भेंट चढ़ गया "किसान" दोष किसे दे। अपना ही माथा ठोक फिर जुट जाता है अगली पैदावार को सुरक्षित और मन मुताबिक़ पाने की कोशिश में। ईश्वर भी करता है ठीक किसान की
Divyanshu Pathak
देश में हिंसात्मक गतिविधियों का बढ़ना चिंताजनक है। अपराध,भ्रष्टाचार,दुराचार के बीज बढ़कर दरख़्त हो चुके हैं। आजादी के बाद जिस भारत की कल्पना की थी। मुझे तो नही लगता वह ऐसा होगा। संविधान बना,क़ानून भी बने, किन्तु न संविधान को व्यवहार में उतारा, न ही क़ानून को। धर्मनिरपेक्षता बस बयानबाजी तक ही सीमित रही। जातिवाद, धार्मिक उन्माद, और कट्टरता बढ़ती गई। हम भले ही कहते फिरते हों कि हम नही मानते जातिवाद, हम सभी धर्मों का समान सम्मान करते है। मुझे तो लगता है यह सब बातें स्कूल तक ही सीमित रह गईं। धर्म निरपेक्षता और जातिवाद न मानने वालों की पोल तो इसी बात से खुल जाती है कि ... देश मे प्रत्येक जाति का या समाज का अपना एक संगठन है। अब जो लोग अपनी जाति को ही बस समाज मानते हों उनके लिए "जातिवाद" को नकारने की हिम्मत कहाँ से आएगी। क्या ऐसा नही है--- है तो जाती वाद कैसे ख़त्म करोगे? : धर्म निरपेक्षता- विचार अच्छा है किंतु है कहाँ ? सबके अपने अखाड़े अपने संघटन अपने क़ानून। संविधान तो दूर की बात है। साथ में रहने वाले लोग भी आपस में आत्मसात करते नही दिखते। कैसे साबित करोगे सेक्युलरटी ? नही करोगे तो ये
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