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Rabindra Kumar Ram

" क्या बताऊं की जाहिर करु जो दस्तरस रहा हूं मैं , ये माएल ही है तेरा जो क़दर तेरे जुस्तुजू रहा हूं मैं , बेशक तु बेखबर रहीं हाले-ए-दिल से तु वाकिफ हुआ करती थी , आज भी तेरे मुंतज़िर का अब ताबीर बना बैठा सा हूं कभी हलाते-ए-हिज्र और हुआ करती थी " --- रबिन्द्र राम #जाहिर #दस्तरस #माएल #जुस्तुजू #हाले-ए-दिल #हलाते-ए-हिज्र #मुंतज़िर #ताबीर

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" क्या बताऊं की जाहिर करु जो दस्तरस रहा हूं मैं ,
ये माएल ही है तेरा जो क़दर तेरे जुस्तुजू रहा हूं मैं ,
बेशक तु बेखबर रहीं हाले-ए-दिल से तु वाकिफ हुआ करती थी ,
आज भी तेरे मुंतज़िर का अब ताबीर बना बैठा सा हूं कभी हलाते-ए-हिज्र और हुआ करती थी  "

                               --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram " क्या बताऊं की जाहिर करु जो दस्तरस रहा हूं मैं ,
ये माएल ही है तेरा जो क़दर तेरे जुस्तुजू रहा हूं मैं ,
बेशक तु बेखबर रहीं हाले-ए-दिल से तु वाकिफ हुआ करती थी ,
आज भी तेरे मुंतज़िर का अब ताबीर बना बैठा सा हूं कभी हलाते-ए-हिज्र और हुआ करती थी  "

                               --- रबिन्द्र राम 

 #जाहिर #दस्तरस #माएल #जुस्तुजू #हाले-ए-दिल #हलाते-ए-हिज्र #मुंतज़िर #ताबीर

Rabindra Kumar Ram

" तु बेशक रहे वेख़बर कोई और बात नहीं , मुहब्बत की बात ऐसी हैं इसकी इश्क़ कोई जात नहीं, मिल रहा हु बिछड़ रहा हूं तुझसे इसी हलाते-ए-हिज़्र से , अब कौन सा ग़म पालें हम अब मेरे हमनवाई में हैं कौन . " --- रबिन्द्र राम #वेख़बर #मुहब्बत #हलाते-ए-हिज़्र #ग़म #हमनवाई

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"  तु बेशक रहे वेख़बर कोई और बात नहीं ,
मुहब्बत की बात ऐसी हैं इसकी इश्क़ कोई जात नहीं,
मिल रहा हु बिछड़ रहा हूं तुझसे इसी हलाते-ए-हिज़्र से ,
अब कौन सा ग़म पालें हम अब मेरे हमनवाई में हैं कौन . "

                       --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram "  तु बेशक रहे वेख़बर कोई और बात नहीं ,
मुहब्बत की बात ऐसी हैं इसकी इश्क़ कोई जात नहीं,
मिल रहा हु बिछड़ रहा हूं तुझसे इसी हलाते-ए-हिज़्र से ,
अब कौन सा ग़म पालें हम अब मेरे हमनवाई में हैं कौन . "

                       --- रबिन्द्र राम

#वेख़बर #मुहब्बत #हलाते-ए-हिज़्र #ग़म #हमनवाई

Rabindra Kumar Ram

" संवरते एहसासों का कुछ बात मुमकिन हो नहीं रही की जदं बात हो , हलाते हिज्र-ए-मौसम का जिक्र क्या उल्फते के दिन अभी कुछ वाकी हैं . " --- रबिन्द्र राम #संवरते #एहसासों #मुमकिन #जदं #हलाते #हिज्र-ए-मौसम #जिक्र #उल्फते

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" संवरते एहसासों का कुछ बात मुमकिन हो नहीं रही की जदं बात हो ,
हलाते हिज्र-ए-मौसम का जिक्र क्या उल्फते के दिन अभी कुछ वाकी हैं  . " 

                         --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram " संवरते एहसासों का कुछ बात मुमकिन हो नहीं रही की जदं बात हो ,
हलाते हिज्र-ए-मौसम का जिक्र क्या उल्फते के दिन अभी कुछ वाकी हैं  . " 

                         --- रबिन्द्र राम 

#संवरते #एहसासों #मुमकिन #जदं
#हलाते #हिज्र-ए-मौसम #जिक्र #उल्फते

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