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निस्वार्थ प्रेम सांस लेने के लिए निस्वार्थ भाव से हवा दे रही हूं। सहारा देने के लिए सुर्य-चन्द्रमा का निस्वार्थ प्रेम है । खुद प्रमात्मा अंश मानकर हमारे से भी निस्वार्थ प्रेम है। खुद हंसते देखा पांच शताब्दी पहले भी अब खुद को । रोते हुए भी देखकर भी मेरे ह्रदय में फिर भी निस्वार्थ प्रेम है। आज रुला रहे होअपने स्वार्थ के लिए इस जग हंसायांनें में कभी रोते थे तुम भी एक अन्न के दाने को खानें के लिए। हे तुच्छ कर्म करने वाले मेरे पास तेरे अनेक जन्मों का राज है। इतिहास को संजोएं हुं व रो कर बेठी हूं फिर भी कुछ । एक आशा है मेरी तुमसे इसलिए मेरा तुमसे निस्वार्थ प्रेम है। हे परमतत्व अंश निस्वार्थ भाव ही हमारी प्रकृति का प्रथम गुण था , प्रथम गुण हैं, प्रथम गुण रहेगा। निस्वार्थ भाव था,निस्वार्थ भाव है,निस्वार्थ प्रेमहीरहेगा। आज आपको है परमतत्त्व अंश हमारी प्रकति जवाब दे रही ही की कल से स्वार्थ हो गया,आज भी स्वार्थ है। मुझे उम्मीद नहीं थी तुमसे समस्त पृथ्वी के वैज्ञानिकों, डाक्टरों,नेताओं,समस्त संसार के समस्त प्राणियों, अब हर नज़र मेरी तरफ स्वार्थ भरी क्यु आ रही है आपकी। रो रही हुं फुटकर फुटकर........... रो रही हुं फुटकर फुटकर........ तुम्हारे को रोने की आवाज क्यूं नहीं आ रही है ..... इतना सहने पर भी तुम्हारे प्रति मेरा निस्वार्थ भाव से प्रेम है। नोट हे परमतत्व अंश निस्वार्थ भाव ही हमारी प्रकृति का प्रथम गुण है। इस प्रेम स्वरूप दर्द भरे दर्शन से देखा ही इन पंक्तियों में। All right reserved Grhc tech tricks Not is copyright ©GRHC~TECH~TRICKS #lonelynight #grhctechtricks #U #sanjaysheoran #poem #myheart_mythoughts #myhelthstory #Trading
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