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@Sushilkumar_Sushil
रचनाकार : दुष्यंत कुमार मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ, वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ। एक जंगल है तेरी आँखों में, मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ। तू किसी रेल-सी गुज़रती है, मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ। हर तरफ़ एतराज़ होता है, मैं अगर रोशनी में आता हूँ। एक बाज़ू उखड़ गया जब से, और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ। मैं तुझे भूलने की कोशिश में, आज कितने क़रीब पाता हूँ। कौन ये फ़ासला निभाएगा, मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ। ©@Sushilkumar_Sushil #दुष्यंत_कुमार #साये_में_धूप से मैं जिसे उड़ता बिछाता हूँ।
Ganesh Singh Jadaun
वह आदमी नहीं है एक मुकम्मल बयान है माथे पर उसके चोट का गहरा निशान है ~ दुष्यंत कुमार ©Ganesh Singh Jadaun #दुष्यंत_कुमार
motivation
पुण्यतिथि #दुष्यंत कुमार दुकानदार तो मेले में लूट गए यारो! तमाशबीन दुकानें लगाकर बैठ गए। लहू-लुहान नजरों का जिक्र आया तो , शरीफ लोग उठे दूर जाके बैठ गए। ©sunil chaudhary #दुष्यंत #दुष्यंत_कुमार #पुण्यतिथि🙏
Samant Kumar Jha Samant
ऐसे थे दुष्यंत कुमार ************************************ एक-एक शेर में इतनी धार, हर ग़ज़ल जैसे की तलवार। ग़ज़ल का रूप बदलकर के, दिया क्रांति का नया आकार। सारी ग़ज़लें सरल भाषा मे, और ग़ज़लें सभी असरदार। ग़ज़ल लिखकर के जिसने, हिला डाली सारी ही सरकार। न डरे, वो लिखते थे बेबाक, ऐसे थे महाकवि दुष्यंत कुमार। ************************************ ✍🏽 सामंत कुमार झा 'साहित्य' 🏡 मधुबनी, बिहार ©Samant Kumar Jha Samant #दुष्यंत_कुमार #गजलें #क्रांति #MereKhayaal
Purohit Nishant