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Anuradha T Gautam 6280
बिटिया को कटहल की सब्जी बेहद पसंद है। अपने घर नॉनवेज तो पकता नहीं, सो यह कटहल ही उसका शाकाहारी विकल्प बनता है। ज्यादातर उत्तर भारतीय शाकाहारी परिवारों में ऐसा ही है। आपको 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' का वह संवाद याद है जिसमें कटहल की पहचान बताने के लिए एक पात्र इसे 'पंडितों का मटन' कहता है। पश्चिमी देशों में भी जब मांसाहार त्यागने की सोच पनपी तो उसे परवान चढ़ाने में यही कटहल मददगार बना। सब्जी के अलावा पिज्जा, बर्गर और पास्ता में भी चिकन और मांस के अन्य विकल्पों की जगह वहां कटहल का प्रयोग शुरू हुआ। इसलिए जब भी श्रीमती जी से कटहल बनाने का आग्रह करता हूं, कह उठती हैं- आपकी तामसी प्रवृत्ति फिर-फिर जाग उठती है न! आपको नेटफ्लिक्स पर कुछ दिनों पहले रिलीज हुई व्यंग्यात्मक कमेडी फ़िल्म 'कटहल' तो याद होगी। उस फिल्म में विधायक जी के बगीचे से दो कटहल गायब हो जाते हैं और उन्हें बरामद करने के लिए पूरा पुलिस महकमा लगा दिया जाता है। विधायक जी बार-बार कहते हैं, वो कोई आम कटहल नहीं थे, मलेशियन अंकल हॉन्ग प्रजाति के थे। यानी देसी से कहीं ज्यादा उत्कृष्ट। यह थोड़ा हैरान करने वाला है क्योंकि कटहल मूल रूप में भारतीय फल है। सबसे पहले यह अपने ही देश में उगा। शास्त्रों के मुताबिक करीब 6000 वर्ष पहले इसका पहला पेड़ केरल में पल्लवित हुआ। फिर पड़ोसी देशों से होता हुआ ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्राजील तक पहुंचा। कालांतर में श्रीलंका, बांग्लादेश, बर्मा (म्यांमार), मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस और पश्चिमी अफ्रीका इसके बड़े उत्पादक बने। श्रीलंका और बांग्लादेश ने इसे राष्ट्रीय फल का दर्जा दिया जबकि केरल और तमिलनाडु ने इसे अपना राज्य फल बनाया। अपने यहां इसकी व्यावसायिक खेती मूल रूप से केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में होती है, लेकिन इसकी सब्जी उत्तर भारत में ही लोकप्रिय है। दक्षिण भारतीयों को इसका मीठा फल ही पसंद है और इस आधार पर हमारे यहां इसे मूलतः चार प्रजातियों- खजवा, सिंगापुरी, गुलाबी और रुद्राक्षी में श्रेणीबद्ध किया जाता है। खास रेशेदार गूदे की वजह से खजवा सबसे पसंदीदा प्रजाति है। बचपन में हमने भी इस प्रजाति के खूब मजे लिए हैं, लेकिन अंकल हॉन्ग से कभी मुलाकात नहीं हुई। हमारे शास्त्रों में कटहल का उल्लेख पनस नाम से मिलता है। संस्कृत में इसे पनसम कहा गया। इसके औषधीय गुणों की लंबी सूची है, लेकिन तुलसीदास जी मानव चरित्र के तुलनात्मक संदर्भ में इसकी एक विशिष्ट विशिष्टता का उल्लेख करते हैं। रामचरित मानस में वे लिखते हैं- "जनि कल्पना करि सुजसु नासहि नीति सुनहि करहि छमा । संसार महं पुरुष त्रिबिध पाटल, रसाल पनस समा ।। एक सुमनप्रद एक सुमन फल एक फलइ केवल लागहिं। एक कहहिं कहहिं करहिं अपर एक करहिं कहन न बागहीं।।" हिंदी में कहें तो रावण की हुंकार सुनकर राम जी कहते हैं- सुनो दशानन! संसार में तीन तरह के मनुष्य होते हैं। पटल यानी गुलाब की तरह, रसाल यानी आम की तरह और पनस यानी कटहल की तरह। गुलाब किस्म के लोग सिर्फ बात करते हैं यानी इनमें सिर्फ फूल होता है। दूसरे आम की तरह होते हैं जिनमें फल भी होता है और फूल भी। यानी ये कहते भी हैं और करते भी हैं। तीसरे होते हैं कटहल की तरह जिनमें सिर्फ फल होता है। यानी वह कहते कुछ नहीं, सिर्फ करते हैं। इसलिए कटहल जैसे बनो। बोलो मत, सिर्फ करो। अब यह गुण अंकल हॉन्ग कहां समझने वाले! ©riddhi anuradha gautam #jackfruit..👍
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