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hirpara amit

धुंधली आँखों में रौशनी 
सी किसीकी आने की 
उम्म्मीद लिए आज भी 
इंतजार में Pc: Dharmik Photography 

#इंतजार #शहीदजवान #बूढी #आँखें #माँ #yqdidi  #yqquotes   #YourQuoteAndMine
Collaborating with Krupali Raval

Mamta Raj

##बूढी आँखे तलाशती हैं हर पल की जिनको ख़्वाबो की तरह पाला वो बच्चे ही एक दिन बूढ़े माँ बाप को छोड़कर उने बेसहारा कर् के चले जाते हैं और आँखों में बचता हैं तो सिर्फ इंतज़ार.....😐

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बूढ़ी आँखों ने 
पाले थे कुछ ख़्वाब एक रोज
पंख लगे ख़्वाबो के
छोड़ गए  आँखों का आसियाना
 एक रोज......
    आँखे तकती हैं राहो को 
पैर भी अब लड़खड़ाते हैं हर रोज
वो ख़्वाब आसमान में उड़ते रहे 
वो बूढी आँखे जमीन से उने तकती रही
की शायद लौटेंगे वो ख़्वाब एक रोज.....

@mamta.raj ##बूढी आँखे तलाशती हैं हर पल की जिनको ख़्वाबो की तरह पाला वो बच्चे ही एक दिन बूढ़े माँ बाप को छोड़कर उने बेसहारा कर् के चले जाते हैं और आँखों में बचता हैं तो सिर्फ इंतज़ार.....😐

pratibha

#oldage #बूढी माँ

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कभी चेहरा सुर्ख गुलाब था, 
आज झुर्रियों  का श्रृंगार है !
कभी परिवार की धुरी थी वो 
आज अपनों  के  ही प्यार का इंतज़ार है !!
आँखों मे सिर्फ ममता थी जिनके 
अब आंसुओं  के बाढ़ की,  ऐनक  ही पतवार है !
लफ़्ज़ों मे दुआ थी सिर्फ जिनकी 
होठों  पे आज  दिल के बोझ का वार  है !!
 उसने जिस घर मे करुणा ही बोई थी, 
आज  घर मे सिर्फ उसके रुदन की प्रताड़ है !!
जिसके हाथ सिर्फ उठते थे आशीर्वाद के लिए, 
आज  हाथों को उनके,,  सिर्फ साथ की दरकार है !!
जिन उंगलियों को पकड़ चलना सिखाया था उस  माँ ने, 
उम्र के इस पड़ाव पर वो क्यों?  उंगलियां छुड़ाने  को तैयार हैं !!!! #oldage #बूढी माँ

Kanchan Deora

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आओ बतलाती हूँ तुमको कैसे?
वक्त नही बदलता है, बस लोग बदल जाते है
कल जो छोटा बच्चा था अब उसके दो बच्चे है
मां के पालन पोषण की अब बेटे की बारी है
मां को प्यारा हर बालक, एक मां बच्चों पे भारी है
जिस रिश्ते मे भरी थी ममता आज वह बोझ वहन है
बीमार हुआ हो बच्चा तो, मां सो नही  पाती
प्रहरी सी जगकर बच्चों की देखभाल वो करती
जब बूढी हो जाती मां, सब परिवार पे वोे भारी
बूढी मां पे तड़के चिल्लाता है वो ही बेटा, 
तेरी खांसी से बीवी बच्चों को नींद नही आती है
हो जाता हूं लेट आफिस टाइम से पहुंच नही पाता हूं
थोड़ा धीमे खांसा कर मां थोड़ा धीमे.
सुनकर ये बात मां का मन विचलित है,
'तूम भी यही समझे ना, जो मैने समझा
कि उस  मां का मन  दुखी हुआ होगा.
सोचा होगा उसने, मेरे बेटे को मेरी तकलीफ नही
उठ देखा एक बार नहीं, बस खांसी का शोर सुना
ना !   हम सबने यहाँ सही नही समझा है'
वो तो मां है, ऐसा सोच नही वो पाती है,
वक्त बदल जाता है पर मां बदल नही पाती है
हां वक्त नही बदलता है  बस लोग बदल जाते है
हर पल हर उम्र में मां को बस रहता यही ख्याल
ना होवे तकलीफ कभी उन्हें, रहे सदा खुशहाल
सुनके बेटे की परेशानी, बस उस दिन मां ने ठानी
अब जब रात में खांसी होगी, आवाज नहीं होने दूंगी 
मूंह को दबाके हाथों से,आवाज बाहर नही जाने दूंगी
अब आवाज नही आती, छाया रहता सन्नाटा है
सुना है उस रात मां का निधन हो गया,
"शायद खांसी"
सच क्या था, कोई  ये कैसे जान पाएगा 
खांसी से नही, दम घूटना उसकी मौत का कारण था
आफिस को ना हो देरी, बच्चों की नींद खराब ना हो,
इसलिए बस मां ने खुद को गहरी नींद सुलाया था
सच क्या था, कोई ये कैसे जान पाएगा
मां और उसकी ममता, जीते जी समझ नही पाते है
मां तो मां है, मां को तो वक्त भी बदल नही पाता है
हाँ वक्त नही बदलता है बस लोग बदल जाते है Follow more storie @Nojotoapp Love#emotions#poetry#nojotopoetry#pain#story#noidapoet#delhipoets# https://www.facebook.com/sahastra Follow more such stories by Kanchan Deora https://nojoto.com/post/96e3f52fa45f6e9f49eab7019f1520aa/ Via Nojoto #writersofinstagram #writeraofindia #shayaris #poetry #quote #wordporn #qotd #igwriters #Nojoto #NojotoApp #wordgasm #wordporn #indianwriters #poetsofindia #stories #storytelling #poetrycommunity #igpoets #wordsofwisdom #love #thoughts #igwriterclub

अमित तिवारी रूद्र

#Afsana देख मेरी माँ सड़क पे सो रही है नमस्कार दोस्तों हमारे देश में १३४ करोड़ लोगो की जनसँख्या है और उन १३४ करोड़ की जनसँख्या में कोई एक मुसाफिर जो की सड़क में एक दिन जा रहा था उसने एक बूढी स्त्री को सड़क पे सोते हुए देखा उससे रहा नहीं गया तो वो उस बूढी स्त्री के पास गया और उनसे पुछा की आप यहाँ कब से रह रही हैं और क्यू रह रही हैं आपका कोई घर नहीं है क्या तो उस बूढी स्त्री ने कुछ इस तरह अपने दुःख को बयान किया बेटा चोट तो ये जो है हमारी वो है बहुत पुरानी चले जाओ बेटा यहाँ से होगी बड़ी मेहेरबानी मत

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#Afsana
देख मेरी माँ सड़क पे सो रही है 

नमस्कार दोस्तों हमारे देश में १३४ करोड़ लोगो की जनसँख्या है और उन १३४ करोड़ की जनसँख्या में कोई एक मुसाफिर जो की सड़क में एक दिन जा रहा था उसने एक बूढी स्त्री को सड़क पे सोते हुए देखा उससे रहा नहीं गया तो वो उस बूढी स्त्री के पास गया और उनसे पुछा की आप यहाँ कब से रह रही हैं और क्यू रह रही हैं आपका कोई घर नहीं है क्या तो उस बूढी स्त्री ने कुछ इस तरह अपने दुःख को बयान किया

बेटा चोट तो ये जो है हमारी वो है बहुत पुरानी
चले जाओ बेटा यहाँ से होगी बड़ी मेहेरबानी 
मत

अमित तिवारी रूद्र

#StorytellingDay देख मेरी माँ सड़क पे सो रही है नमस्कार दोस्तों हमारे देश में १३४ करोड़ लोगो की जनसँख्या है और उन १३४ करोड़ की जनसँख्या में कोई एक मुसाफिर जो की सड़क में एक दिन जा रहा था उसने एक बूढी स्त्री को सड़क पे सोते हुए देखा उससे रहा नहीं गया तो वो उस बूढी स्त्री के पास गया और उनसे पुछा की आप यहाँ कब से रह रही हैं और क्यू रह रही हैं आपका कोई घर नहीं है क्या तो उस बूढी स्त्री ने कुछ इस तरह अपने दुःख को बयान किया बेटा चोट तो ये जो है हमारी वो है बहुत पुरानी चले जाओ बेटा यहाँ से होगी बड़ी मेहेर

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#StorytellingDay
देख मेरी माँ सड़क पे सो रही है 

नमस्कार दोस्तों हमारे देश में १३४ करोड़ लोगो की जनसँख्या है और उन १३४ करोड़ की जनसँख्या में कोई एक मुसाफिर जो की सड़क में एक दिन जा रहा था उसने एक बूढी स्त्री को सड़क पे सोते हुए देखा उससे रहा नहीं गया तो वो उस बूढी स्त्री के पास गया और उनसे पुछा की आप यहाँ कब से रह रही हैं और क्यू रह रही हैं आपका कोई घर नहीं है क्या तो उस बूढी स्त्री ने कुछ इस तरह अपने दुःख को बयान किया

बेटा चोट तो ये जो है हमारी वो है बहुत पुरानी
चले जाओ बेटा यहाँ से होगी बड़ी मेहेर

अमित तिवारी रूद्र

देख मेरी माँ सड़क पे सो रही है नमस्कार दोस्तों हमारे देश में १३४ करोड़ लोगो की जनसँख्या है और उन १३४ करोड़ की जनसँख्या में कोई एक मुसाफिर जो की सड़क में एक दिन जा रहा था उसने एक बूढी स्त्री को सड़क पे सोते हुए देखा उससे रहा नहीं गया तो वो उस बूढी स्त्री के पास गया और उनसे पुछा की आप यहाँ कब से रह रही हैं और क्यू रह रही हैं आपका कोई घर नहीं है क्या तो उस बूढी स्त्री ने कुछ इस तरह अपने दुःख को बयान किया बेटा चोट तो ये जो है हमारी वो है बहुत पुरानी चले जाओ बेटा यहाँ से होगी बड़ी मेहेरबानी मत पूछो बेटा #Poetry

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देख मेरी माँ सड़क पे सो रही है 
नमस्कार दोस्तों हमारे देश में १३४ करोड़ लोगो की जनसँख्या है और उन १३४ करोड़ की जनसँख्या में कोई एक मुसाफिर जो की सड़क में एक दिन जा रहा था उसने एक बूढी स्त्री को सड़क पे सोते हुए देखा उससे रहा नहीं गया तो वो उस बूढी स्त्री के पास गया और उनसे पुछा की आप यहाँ कब से रह रही हैं और क्यू रह रही हैं आपका कोई घर नहीं है क्या तो उस बूढी स्त्री ने कुछ इस तरह अपने दुःख को बयान किया
बेटा चोट तो ये जो है हमारी वो है बहुत पुरानी
चले जाओ बेटा यहाँ से होगी बड़ी मेहेरबानी 
मत पूछो बेटा


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