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Biikrmjet Sing
Happy New Year गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥ गुर का बचनु सदा अबिनासी ॥ गुर कै बचनि कटी जम फासी ॥ गुर का बचनु जीअ कै संगि ॥ गुर कै बचनि रचै राम कै रंगि ॥१॥जो गुरि दीआ सु मन कै कामि ॥ संत का कीआ सति करि मानि ॥१॥ रहाउ॥गुर का बचनु अटल अछेद ॥ गुर कै बचनि कटे भ्रम भेद ॥ गुर का बचनु कतहु न जाए ॥ गुर कै बचनि हरि के गुण गाए ॥२॥गुर का बचनु जीअ कै साथ ॥ गुर का बचनु अनाथ को नाथ ॥ गुर कै बचनि नरकि न पवै ॥ गुर कै बचनि रसना अम्रितु रवै ॥३॥गुर का बचनु परगटु संसारि ॥ गुर कै बचनि न आवै हारि ॥ जिसु जन होए आपि क्रिपाल ॥ नानक सतिगुर सदा दइआल ॥४॥५॥७४॥ अर्थ:- गउड़ी गुआरेरी राग में गुरु अर्जन देव जी महाराज जी द्वारा परमेश्वर के उचारे बचन।। जो गुर यानी ध्यान की योगिक कला है ऐसे दिए साधु जनों द्वारा परमेश्वर के बचन कभी नाशवान नहीं होते।। ऐसी ध्यान की एकदृष्ट-समदृष्टि करने की योगिक कला से जम मार्ग यानी दायाँ नेत्र से ध्यान खत्म हो कर बाए नेत्र में आ गया जिससे जमो के पाश से छुटकारा हो गया।। मन सदा उस गुर को यानी योगिक ध्यान कला को संभाले रखता है।। ऐसी ध्यान योगिक कला से निराकार प्रकाश के संग मन रच मिच जाता है।। जो यह ध्यान की योगिक कला साधु जनों द्वारा प्रकाश=परमेश्वर ने दी है वह नेत्रो में बैठे मन के काम आनी है।। ऐसे गुर देने वाले योगिक कला सीखाने वाले सन्तों का दिया योगिक कला को सीखाने का बचन सत-2 करके मानो मेरे मन नेत्रो में बैठे हुए।।१।।रहाउ।। गुर=योगिक ध्यान कला है जो अटल है और इसको कोई छिन्न भिन्न नहीं कर सकता।। ऐसे गुर को देने की हरिकथा द्वारा मन दो दृष्टि से एक दृष्ट हो गया और त्रै गुणों से छूट गया।। गुर=योगिक ध्यान कला है जो वह कहीं नहीं जाती अमिट है।। ऐसे गुर के द्वारा मन मे बिना बोले ख्यालो में हरी=प्रकाश के गुण गाये जाते हैं।। मन के संग यह गुर=योगिक ध्यान कला का बचन जाएगा।। जो खुद को ऐसा समझते हैं के अंतकाल कोई भी साथ नहीं जाता इसलिए हमारा कोई साथ नहीं हम मन सच्चाई में अनाथ हैं उनका फिर यह गुर=योगिक ध्यान कला साथी बनती है।। ऐसे गुर को ले कर नरके नहीं जाना पड़ता।। ऐसे गुर द्वारा रसना से उस गुर=योगिक ध्यान कला की हरि से मिलने का मार्ग की कथा रूपी अमृत मन अपनी जीभा द्वारा करता है।। ऐसे गुर को सीखकर संसार मे ही आकाश तत्व में यानी हमारे इर्दगिर्द खाली स्पेस में प्रकाश ब्रम्ह प्रगट हो जाता है।। फिर ऐसे गुर द्वारा मन जीवन की बाजी हारता नहीं है।। जिस जीव पर वह प्रकाश खुद मेहरबान होता है।।उसका नेत्रो में बैठा मन=जोत खुद में रलामिला कर उसे यह ध्यान की योगिक कला दया करके संकल्पो द्वारा सिखा देता है सच्चा सत+गुर=परमेश्वर।। ©Biikrmjet Sing #गुर
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पवन आरम्भ सतगुर मत वेला।। शब्द गुरु सुरत धुन्न चेला।। अकथ कथा ले रहो निराला।। नानक जुग-2 गुर गोपाला।। अर्थ:- नाक द्वारा जहाँ से हमे पवन आ रही है यानी जहां से हमे श्वास आ रहा है हमने वहां पर सच्चे गुर यानी योगिक कला वाली मत लेकर उस समय अपने दोनों नेत्रों का ध्यान नाक के उस भाग पर केंद्रित करना होता है सच्चे साधु के मुख से बोले गए शब्दों यानी दिशा निर्देश रूपी शब्दो रूपी धुन्न को अपना गुरु मान कर नेत्रों में बैठे मन को सुरती यानी ध्यान एकदृष्ट करना है व उस दिशा निर्देश का चेला बनना है।। उस इशारे मात्र दिशा निर्देश रूपी अकथ कथा को मन मे धारण करके त्रै-गुणी माया से यानी रजो-तमो-स्तो से निराला होना है किसके द्वारा हे नानक जो जुगों से एक ही गुर एकदृष्ट करने की योगिक कला जो नेत्रों को नाक पर देखने की कला चली आ रही है उस परम निराकार प्रकाश गोपाल से जुड़ने की जो सदा ही रहने वाले हैं।। ©Biikrmjet Sing #गुर
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गुर सुखदाता गुर करतार।। जी प्राण नानक गुर आधार।। अर्थ:- नाम ध्याने की विधि यानी गुर ही हमारे लिये सुखों का दाता है।। गुर ही परमात्मा है।। हे नानक मनुष्य के जहाँ से प्राण आ रहे हैं वहां हमने सन्तो द्वारा दी गयी विधि को लगाना है यानी गुर को उपयोग में लाना है।। गुरबाणी फ़रमान करती है:- नेत्र तुंग के चरण तर स्तद्रव तीर तरंग।। अर्थ:-अपने नेत्रों को तीर के जैसे, जहां से प्राण आ रहे वहां पर टिका लो।। {(तुंग गांव हरिमंदिर साहिब का पुराना नाम है ) हमारा शरीर भी हरिमंदिर है:- हरमन्दर एह शरीर है।।} फिर उन नेत्रो को प्रकाश में जो के हमारे साहमने खाली स्पेस है उसमें टिका लो (यह हुए चरण प्रभु के) तोह आपको वह सच्चा द्रव यानी अमृत प्रकाश प्रभु दिखेगें तरंगो की फोम में , तर यानी तैरती हुई लहरें।। गुरु जी फ़रमान करते हैं:- ,"जह झिलमिलकार दिसन्ता।।" यानी पहले नेत्रों को तीर की फोम में नाक के उस भाग पे फोकस करना है जहाँ से स्वास आ रहे हैं।। फिर नेत्रो की दृष्टि को साहमने फोकस करना है खाली स्पेस में फिर पलकों को ऊपर उठा देना है खाली स्पेस में ध्यान फोकस करना है।।फिर ध्यान साहमने फिर नाक पर फोकस करना जहां से स्वास आ रहा।। फिर नेत्रो को नीचे जहां भी बैठे हैं जमीन पर जा बिस्तर पर जो भी जमीन है नीचे फोकस करना खाली स्पेस में फिर नाक पर फोकस करना फिर नीचे उसके बाद फिर साहमने खाली स्पेस में फिर पलके ऊपर उठा देनी और खाली स्पेस में देखना फिर साहमने फिर नीचे फिर नाक पर खुद को देखना है।। यह है विधि-गुर।।प्रकाश को ध्याने की।। ©Biikrmjet Sing #गुर
Burhan kadiyani
तुम्हे लगता है हम तुम्हे गुर ते रहते है तुम्हे लगता है हम तुम्हे गुर ते रहते है अरे ऐसे ही तो हम नमाज़ अदा किए देते है तुम्हे लगता है हम तुम्हे गुर ते रहते है तुम्हे लगता है हम तुम्हे गुर ते रहते है अरे ऐसे ही तो हम नमाज़ अदा किए देते है
Sona Nebhnani
जन्म दिया जिसने मुझे .... इस दुनिया से रूबरू करवाया.. गुर मेरे वो... एक गुरु मेरा आखों से दिखेना उसपर विश्वाज़ करना भी उसने सीखाया.... गुरु कृपा की शक्ति जानी तब जब मुश्किलो में दिल से उसे पुकारा .. अंदर से एक आवाज़ आई गुरु नाम की तब मुझे समज आई.. लख लख शुकराना करु में गुर तेरा ... जो तेरी शरण में पाया ... माँ बाप ... और त्वाढी जो मेने शरण पाई जीवन मेरा सफला जाई My Quotes.....Sona Nebhnani
Ashutosh Dwivedi
आदमी को आदमी के गुर सिखा दो और हमको शायरी के गुर सिखा दो ठंड इतनी बढ़ गयी है कम ज़रा हो जनवरी को फरवरी के गुर सिखा दो बे-वफ़ा हो कर चली जाए कमीनी मौत को भी दिल्लगी के गुर सिखा दो ख़ुश बहुत है बैठ कर दिल में उदासी इस उदासी को हँसी के गुर सिखा दो हाथ दोनो जोड़ कर दीपक बनाओ तीरगी को रौशनी के गुर सिखा दो मैकदे जाकर बिताए चंद पल वो हर किसी को तिश्नगी के गुर सिखा दो है बड़ी सुंदर मिरी वाली कि बस उस नासमझ को नाज़नीं के गुर सिखा दो #nojoto #Ashu #kavishala #ghazal
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