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Prakash Vidyarthi
White ☝️शीर्षक - "मैं मज़दूर हूं"☝️ हां, मैं एक मज़दूर हूं। खपड़ैल झूगी झोपड़ियो में गुजर बसर करनेवाला। अपनी मेहनत के रंगों से दूसरों का नाम रंगनेवाला। दौलतमंद ,रईसो,अमीरों को आराम विश्राम देनेवाला। चिलचिलाती धूप जड़ा बरसात में भी काम करनेवाला। हर कार्य को श्री गणेश कर अंतिम अंजाम देनेवाला। जरूरत और उम्र के बंदिशों में पैसों को सलाम करनेवाला। गरीब बेबस लाचार नौकर पापी पेट के लिए बजबूर हूं।। हां मैं..........२ श्रमिक बन दिनरात कठिन परिश्रम करते रहता हूं। कृषक बनकर बंजर खेतों से भी अन्न रूपी सोना उपजाता हूं। तो कभी होटलों में प्लेट धोता हुं मेहमानों को पानी पिलाता हूं। कुली के भेष में कभी लोगों के समान ढोकर पहुंचाता हूं। कभी ईट जोड़कर गगनचुम्बी महल इमारतें बनाता हुं।। कहार बनकर किसी सजी दुल्हन की डोली उठाता हूं । कोई कहता बेशक हमें अनपढ़ गवांर बेलूर हूं। हां मैं........२ दूसरों के लिऐ जूते चप्पल बनाता हूं ख़ुद खाली पैर रेंगता हूं। हर किसी के लिए सुत्ते कातकर नए नए वस्त्र सिलता हुं ,।। पर अपने नंगे बदन को ढकने कि लिऐ एक धागे को तरसता हूं।। कल कारखानों में जान जोख़िम में डालकर मशीनें चलाता हूं। तो कभी कभार गिट्टी पत्थर को तोड़कर तराशकर सड़कें बनाता हुं। और थक हारकर वीरान सी इन सड़कों के किनारे चैन से सो जाता हूं।। भई सुख सुविधा से स्वयं मैं दूर हूं।। हा मैं.........२ मेरे भीं बाल बच्चे हैं परिवार हैं, पर रहने के लिए अपना आशियाना नही। दवा हैं भरपुर पर बीमार पड़ने पर हम अभागो के लिए सस्ता दवाखाना नहीं।। गाय भैंस आदि पशुओं को पालता हूं,चारा खिलाता हूं,देखभाल करता हूं। पर इसके दूध घी माखन मैं ख़ुद नहीं खा पाता हूं। साहब लोगों को बेच आता हूं।। बैंक और सरकार भी माफ नहीं करता,करजो के बोझ तले सदा दबा रहता हूं। बच्चों के पालन पोषण शादी ब्याह के चिंता में जनाब आत्महत्या भीं कर लेता हूं ।। महंगाई का मारा मैं बिल्कुल बेकसूर हूं।। हां मैं .........२ कभी मैं रिक्शा ठेला बस गाड़ी चलाकर ड्राइवर, खलासी के रूप मे । सफर में लोगों की सेवा करता हूं, उनके मंज़िल तक पहुंचाता हूं।। राष्ट्र निर्माण का मैं भी सूत्रधार हूं इसलिए देशहित लोकहित के विकास । में मैं भी पूरी ईमानदारी से भरपूर योगदान देता हूं अपना हाथ बटाता हूं ।। वसूलो के राह पर चलते रहता हूं अपनी धुन में कभी चीखता, चिलाता हूं। तो कभी संवेदनशील स्वभाव से भावनाओ में बहकर रोता, हंसता,गाता हूं।। हुं निर्धन दयालु पर नहीं राजा क्रूर हूं। हां मैं.........२ शायद दिमाग़ से पैदल हूं इसलिए देशभक्तों की देशभक्ति में नहीं हमारा नाम हैं। चतुर सियारों धूर्त जानवरों की सूची में हमारा त्याग तपस्या समर्पण सब गुलाम है।। कैसी ये मिट्टी की मलिन मूल हैं, रहम कोई करता कहां कहीं कांटे तो कहीं फूल हैं। मानवता की बड़ी भूल हैं पीढ़ी दर पीढ़ी कोई फलफुल रहा सब अपने में मशगूल हैं।। न कोई सहानुभूति न अच्छा रूल हैं ,स्वार्थ के नदियों के ऊपर तारीफो के जर्जर पुल हैं। शिक्षा के धूल बने फिरे हम विद्यार्थी गरीबों के नसीब में कहां कोई अपना स्कूल हैं।। अब अपनी किस्मत मजदूरी के उमंग में मगरूर हूं। हां मैं,,.........२ स्वरचित -: प्रकाश विद्यार्थी आरा बिहार ©Prakash Vidyarthi #safar #मजदूरदिवस #मजदूरी #पोएट्री #कविताएं #thouthtOfTheDay
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