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'मनु' poetry -ek-khayaal
ये करुणा... दया... सहानुभूति..!!! विसर्जित कर ही आना अंतिम कूच से पहले, अत्यंत सूक्ष्म रस तो इसमें भी छिपा है, हां सत्य है के तरल, तनु.... आपका व्यक्तित्व हो जाता है इसमें, किन्तु अवलोकन स्वयं का बहुत आवश्यक है जब भाव करुणा, दया के हों सहानुभूति के हों.. ठहर के देख लेना खुद को..!!! रस मिल रहा है क्या ...पोषित तो नही हो रहा अहंकार इसमे...!!ये अंतिम गांठ है जो खुलनी बहुत जरूरी है, सिर्फ मोह ही नही....ये भी मीठे किन्तु विषैले रस से भरे फल हैं ..हालाकिं उद्देश्य परमार्थ ही है, किन्तु फिर भी। इन्हें त्यागना है....यात्रा का अंतिम पूर्णविराम..!!!! 'मनु' अहंकार
अहंकार
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'सत्य' और 'विवेक' जीवन के दो बिल्कुल भिन्न पहलू, अलग तथ्यात्मक परिस्थितियां हैं.… सत्य का अनुकरण आपके सामाजिक सम्मान एवं उन्नति के मार्ग को कठिन बनाएगा... बाधाओं परेशानियों को न्योता देगा, सत्य की सहज अभिव्यक्ति अति दुष्कर है, आप सत्यानुकरण के पश्चात भी पूर्ण सत्य अभिव्यक्त नही कर सकेंगे, पूर्ण सत्य नग्न है और हमारे समाज मे नग्नता पर निषेध है फिर वो सत्य की ही क्यों न हो । विवेक आपको सत्य पर अल्पारोपण कर मूल से भिन्न किन्तु मूल के समतुल्य ही अभिव्यक्ति का एक मार्ग देता है विवेक छल का भी सहारा लेता है विवेक कुटिलता लिए हुए भी सहज है किंतु सत्य सात्विक होकर भी सहज स्वीकार्य नहीं, विवेक मुख्यतः मनोनुकूल कार्य सिद्धि में सहायक है एवम विवेक युक्ति का जन्मदाता भी है..विवेकी व्यक्ति सफलता हेतु अपना ध्येय/ लक्ष्य हासिल करने को मार्ग में परिवर्तन भी करता है और अंततः लक्ष्य तक मार्ग प्रशस्त कर ही लेता है, सत्यधारक के लिए यह स्वतन्त्रता नही इसलिए सत्य धारण को 'तप' की श्रेणी में रखा गया। सत्य की अपनी गरिमा है अपना स्थान है किन्तु जीवन को जटिलता से भर देता है और विवेक आपके जीवन को सहज सफल बनाने का माध्यम बनता है शायद इसलिए विवेकी व्यक्ति सत्य को दम्भ जानता है जीवन की जटिलता अगर सत्य से बढ़ती हो तो विवेक उत्कृष्ट है सत्य से.. मैं 'सत्य' का विरोधी नहीं अपितु 'सहज जीवनशैली' का समर्थक हूँ...!!! 'मनु'
Naresh_ke_lafz
आये थे वो मिलने और कर बैठे गुस्सा होनी थी कुछ मीठी बाते पर हुई नही रातभर सोये नही हम मिलने के बहाने पर खुबसूरत सुबह नसीब हुई नही । दिलासा दिलाई हमारे दिल को मिलन की किन्तु वो तुम्हारी दिलासा रंग लाई ही नही खोजे जा चुके थे उनके मन के वो तराने पर वो मधुर तराने हमारे कानो को भाए ही नही ।। आंखो से बहता पानी उस वक्त बहुत तड़पा किन्तु वो पत्थर दिली मेरी तरफ मुड़े नही उनको भुलाना हमको देगा काफी तकलीफे पर ये कोई हमारे लिए असंभव सी बात नही ।।। मौसम की तरह बदल देगे खुद को, भविष्य मे तेरा साथ ना होना बेशक दुखदायी पर जिंदगी में कोई और नही वफादारी की हमेशा याद रहेगी वो कसमें पर उन्हे भूलना कोई बच्चो का खेल नही ।V losac_kp👆shayari_official #lifeown
Varun Savita (वर्ण)
शब्दों का अम्बार तो था किन्तु कह न सका, हवा से प्यार तो था किन्तु बह न सका । हमारे अपने ही हैं वो भी जो प्यार करते हैं, फिर भी उनके दर्द को मैं सह न सका ।। Jogi Varun Savita
Sunita Bishnolia
मैंने मेहनत करना सीखा, लड़ना सीख न पाई जो मुझको मिलता मेहनत से पाकर खुशी मनाई जीवन के संघर्षों में ठोकर पग-पग पर मिलती है सुख-सुविधाएँ होतीं क्या हैं मैं अब तक जान न पाई। #दर्शन--धरती धोरां री हर वर्ष की भाँति इस बार भी 'शिक्षक दिवस' से पूर्व शैक्षणिक भ्रमण हेतु छात्रों को ऐतिहासिक स्थलों के दर्शन श्रृंखला में निकल पड़ा हमारा कारवां । उद्देश्य छात्रों को गाँवों से जोड़ने,प्रकृति के अंचल में खुले और समाप्त होते रेतीले धोरों में खुले आसमान के नीचे स्वच्छंद इस पेड़ से उड़ते पक्षियों को निहारने की सुखानुभूति प्रदान करना। #कुछ छात्रों का रेतीले टीलों पर दौड़कर चढ़ जाना कुछ का धीरे -धीरे लक्ष्य प्राप्त करना और कुछ का मार्ग में ही पस्त हो जाना। आस-पास में बकरी और गायों को
#दर्शन--धरती धोरां री हर वर्ष की भाँति इस बार भी 'शिक्षक दिवस' से पूर्व शैक्षणिक भ्रमण हेतु छात्रों को ऐतिहासिक स्थलों के दर्शन श्रृंखला में निकल पड़ा हमारा कारवां । उद्देश्य छात्रों को गाँवों से जोड़ने,प्रकृति के अंचल में खुले और समाप्त होते रेतीले धोरों में खुले आसमान के नीचे स्वच्छंद इस पेड़ से उड़ते पक्षियों को निहारने की सुखानुभूति प्रदान करना। #कुछ छात्रों का रेतीले टीलों पर दौड़कर चढ़ जाना कुछ का धीरे -धीरे लक्ष्य प्राप्त करना और कुछ का मार्ग में ही पस्त हो जाना। आस-पास में बकरी और गायों को
read moreसूर्यांश गर्ग
*डर* आपकी बातें मानकर, जो आप कहेंगें बन जाऊँगा, आपके नक्शे चल, आगे भी मैं बढ़ जाऊँगा, आपके सानिध्य में, कामियाब मैं बन जाऊँगा पापा, किन्तु सपनो का गला घोट कर , खुश नहीं रह पाउँगा पापा ।। एक अच्छे बेटे की तरह, सारी इच्छाएँ पूर्ण करता जाऊँगा, न कोई बहस न कोई सवाल, हाँ में हाँ भरता जाऊँगा, शब्द ज्ञान छोड, आपको अपना ज्ञान मैं बना जाऊँगा पापा, किंतु अंदर की जिज्ञासा मार, खुश नहीं रह पाउँगा पापा ।। हर हार से कुछ सीख, बहेतर मैं बन जाऊँगा, अपनी हर जीत को, आपकी मैं बतलाऊँगा , आखरी साँस तक अपनी, परिवार के लिए जीता जाऊँगा पापा किंतु खुद के लिए जिये बिना, ख़ुश नहिं रह पाउँगा पापा ।। सारी बचकानी बातें छोड़, बड़ा मैं हो जाऊँगा, यारी-दोस्ती को भूल, अब सफल व्यापारी बन जाऊँगा, आपकी बढ़ती आयु को, अपनी मैं बतलाऊँगा पापा, किन्तु अंदर के बच्चे को मार, खुश नहीं रह पाउँगा पापा ।। अब साहित्य और संगीत भूल, व्यापार में लग जाऊँगा, अपनी रुचियों को पीछे छोड़, गैरों के लिए जीता जाऊँगा, आपकी बातें मानकर, जो कहेंगे मैं बन जाऊँगा पापा, किंतु, इतना आज्ञाकारी होने के बाद भी, दूर आपसे हो जाऊँगा पापा ।। *सूर्यांश गर्ग* #thought
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