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surender kumar
कर गयै बरबाद मुझै शोक दिल लगानै कै बोहोत याद अतै है वो वादै तेरे साथ निभानै कै
@Devidkurre
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है? सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला शासन के घोड़े पर वह भी सवार है उसी की जनवरी छब्बीस उसीका पन्द्रह अगस्त है बाकी सब दुखी है, बाकी सब पस्त है कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है कौन है बुलंद आज, कौन आज मस्त है खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा मालिक बुलंद है, कुली-मजूर पस्त है सेठ यहां सुखी है, सेठ यहां मस्त है उसकी है जनवरी, उसी का अगस्त है पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो मास्टर की छाती में कै ठो हाड़ है! गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो मज़दूर की छाती में कै ठो हाड़ है! गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है! गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो बच्चे की छाती में कै ठो हाड़ है! देख लो जी, देख लो, देख लो जी, देख लो पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है! मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है गऱीबों की बस्ती में उखाड़ है, पछाड़ है धत् तेरी, धत् तेरी, कुच्छों नहीं! कुच्छों नहीं ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है ताड़ के पत्ते हैं, पत्तों के पंखे हैं पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है कुच्छों नहीं, कुच्छों नहीं ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है! किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है! कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है! सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्त है मंत्री ही सुखी है, मंत्री ही मस्त है उसी की है जनवरी, उसी का अगस्त है। #बाबा_नागार्जुन वाणी मेरी नही लेकिन विचार इनके जैसे ही है किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है? सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला
वाणी मेरी नही लेकिन विचार इनके जैसे ही है किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है? सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला
read moreDEV FAIZABADI
~~~~मेला~~~ ~~~~विधा-हास्य (अवधी)~~~~ खाओ जलेबी अऊर सहौ धक्का। मेला तर जाये पक्का।। मन मा खुरपंच जेकरे जागा। ऊ काट चिकोटी कसके भागा। पकड़ा तो गये घुरहू बेचारे, जेकरे पड़ा लात कै छक्का।-मेला तर... एतनी भीड़ की धूल उडै। जायके जलेबी पै ख़ूब पडै। तब्भौ ससुरी आटै नाही, सब तौलावे आधै कच्चा।-मेला तर.... चार लवंडा कै दशा खराब। खाय के टिकिया गांठै रूआब। मेला कै ई देख के हाल, 'देव' होयगै हक्का-बक्का।-मेला तर... -देव फैजाबादी #NojotoQuote #मेला तर जाये पक्का (अवधी)#nojotohindi#hasyakavita#avdhi#
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विधा -हास्य व्यंग्य (अवधी) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~परपंची पत्नी~~~~~~~~~~~~~~ परपंची पत्नी जौ आवति है, तौ लीला अजब रचावति है। चूल्हा फूकै कै बात छोड़ के, पूरे घर का सुलगावति है।। सासु-ससुर का गियर मा लैके, पति का डियर बनावति है। जवन करै का पत्नी का सब, तवन पति का हुकुम लगावति है। जौ अंग्रेजी कै लेक्चर हांकै, तौ धाक पे धाक जमावति है। कंचित जौ ओका बोल दिया, तौ गजबै मुँह लटकावति है। औ होत सवेर कपड़ा सब लैके, राह नैहर कै अपनावति है। पति बेचारा काव करै अब, फिर हाथ जोड़ समझावति है। यहि एतने से राजी नाही, ऊ घर मा फूट करावति है। यही से देव बहुतै डेरात पै, सब कुंवारन का समझावति है करै ना शादी यस पत्नी से, जवन पूरा घर बिलवावति है। -देव फैजाबादी (हृदयेश पत्रिका में प्रकाशित २००७) #NojotoQuote परपंची पत्नी (अवधी) विधा-हास्य व्यंग्य #nojotohindi#nojotoenglish#poem#poetry#hasya
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read morekumar ramesh rahi
नेहिया कै धूप ऐसन खिलल बा, बहिंया म थामे पियऊ मिलल बा! डगरा म उड़ उडि जाई मोर चुनरी, पिरतिया कै डारि फुलवा सजल बा! #NojotoHindiPost #nojotobhojpuri #love
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