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kumaarkikalamse
अक्षरों के भिगो के थोड़े चावल, मात्राओं की हरी दाल मिलाता हूँ, नमक, राई, और घी के शे'रों से, ग़ज़ल वाली खिचड़ी बनाता हूँ!! #अक्षर #खिचड़ी #ग़ज़ल #चावल #दाल #राई #घी
Vishal Vaid
तुम्हे जो याद रखता हूँ तो बाकी भूल जाता हूँ सुना देता हूँ ऊला और सानी भूल जाता हूँ बहुत धड़के है दिल मेरा वो जब टीवी में आती है मैं अक्सर देख कर नोरा को बीवी भूल जाता हूँ बहुत मशहूर ,है किस्से मेरी इस जिंदगानी के मैं बचपन याद रखता हूं जवानी भूल जाता हूँ तेरे हाथों को ले कर हाथ में जब बात करता हूँ पड़ी रहती है टेबल पे, मैं काफ़ी भूल जाता हूँ बहुत नारे लगाता हूँ मैं अपने देश की खातिर विदेशी देखता हूँ और देसी भूल जाता हूँ बना लेता हूं चावल तो बिना बीवी की रहमत के दिलानी दाल को कितनी है सीटी भूल जाता हूँ 1222*4 धुन कोई दीवाना कहता है पढ़ने मैं आप ज्यादा दिमाग़ न लगाए, क्योंकि लिखने वाले ने भी नही लगाया है। और ऐसा नहीं है की शायर लोग हर वक्त गम में डूबे या संजीदगी से भरे रहते है , आम इंसान है हम सब , इस लिए पढ़िए और मुस्कुराए 😊😊 मुश्किल शब्द के अर्थ नोरा से मतलब नोरा फतेही से है ऊला *** शेर का पहला मिसरा/ वाक्य सानी *** शेर का दूसरा मिसरा/ वाक्य बाकी अल्फाज़ तो आप समझ ही जाएंगे
Ek villain
सरकार ने 45 पोषण युक्त चावल को सार्वजनिक वितरण प्रणाली पीडीएस के जरिए गरीबों को देने का फैसला तो कर लिया लेकिन संबंधित मंत्रालय के अधिकारियों को ही मालूम नहीं था कि इस चावल का स्वाद कैसा होता है इस चावल से बनने वाले दूसरे बैनर कैसे बनाया जाए कुछ लोगों ने पूछा कि इसे खीर बन सकती है या तो नहीं कुछ लोगों ने यह आशंका कि इससे इटली बनेगी या नहीं खाद आपूर्ति मंत्रालय इन सभी सवालों के जवाब प्रोटोकॉल कर कर जाने की योजना बनाई फिर मंत्रालय की कैंटीन में यह फोटो फाइट चावल से सारे व्यंजन तैयार किए गए कुछ अधिकारियों के घरों की चावल भेजा गया वहीं से भी रिपोर्ट मांगी है बताया जा रहा है कि इन अधिकारियों ने गृह मंत्रालय से उसे ही हरी झंडी दिखाई दिए सीमित बनी है कि जैसे तमाम दूसरे व्यंजन भी बनाना आसान है ©Ek villain #चावल पर दुविधा सरकार की #Love
मलंग
सरकारी शिक्षक सोचते हैं सब, शिक्षक तो पढ़ाता होगा स्कूल जाकर सिर्फ ABCD कराता होगा। जिस दिन तुम उसका हाल जान जाओगे शिक्षा की बदहाली का राज जान जाओगे कभी दाल सब्जी, कभी चावल है उठाता कभी एम डी एम का ,है हिसाब लगाता कम हो गए डाकिये, पर इनकी डाक कम ना हुई घर घर जाकर भी , इनकी नाक कम ना हुई चुनाव आते ही , ये मतदान अधिकारी बन जाते हैं जब प्रिंसिपल ना हो तो , ये प्रभारी बन जाते हैं हरफनमौला किरदार है इनका, पर घमंड बिल्कुल नहीं ज्ञान के सागर हो जायें , पर पाखण्ड बिल्कुल नहीं। नित नित नए प्रयोग, इन पर ही किये जाते हैं नवाचार के बहाने रोज नए टिप्स दिये जाते हैं प्रयोगशाला नहीं उपकरण नहीं फिर भी प्रयोग कराना है अनुदान मद प्राप्ति से पहले ही, उसका उपभोग कराना है कभी बाबू कभी क्लर्क कभी चपरासी बन जाते हैं अपने विभाग के लिए तो ये जगदासी बन जाते हैं एम डी एम की थाली गिनकर भी, कभी ये बताते हैं एम डी एम की गैस भरने की, लाइन भी ये लगाते हैं ऑडिट के समय हर चीज का, हिसाब भी देना पड़ता है विद्यालय बिल्डिंग का तो इन्हें, टेंडर भी देना पड़ता है पढ़ लिखकर ठेकेदारी की, कला तो इनमें आई नहीं इंजीनियरिंग की डिग्री भी, इन्होंने कभी पाई नहीं पर शिक्षक बन अब हर चीज में, दिमाग लगाना पड़ता है शिक्षण को ताक पर रखकर अब,हर कार्य कराना पड़ता है फिर भी नजरों में सबके ये सिर्फ, हराम की ही खाते हैं औरों के लिए तो ये स्कूल में सिर्फ, आराम फरमाते हैं बच्चा लायक नहीं फिर भी पास करना है रेड एंट्री से इन्हें हर दम हर समय डरना है स्कूल ना आये बच्चा तो ,दोष इन पर ही मढ़ना है घर जाकर हर बच्चे के, फिर पैर इन्हें ही पड़ना है नित नए नए तुगलकी फरमान इन्हें ही सुनाये जाते हैं परीक्षा परिणाम बेहतर ना हो तो आरोप भी लगाये जाते हैं अभी दुर्गम के शिक्षक का तो,हाल तुम ना पूछो कैसे जिंदा है वो वहाँ, ये राज तुम ना पूछो अपने को दूसरी दुनिया का कभी वो पाता है जान हथेली पर रखकर भी वो स्कूल जाता है ऊपर से सरकार ने इस कदर रहम किये दुर्गम विद्यालय होकर भी सुगम कर दिए अब भले ना सब्जी मिले ना मिले यहाँ चावल ना नहाने को पानी मिले ना पोछने को टॉवल फिर भी सुगम की नौकरी ये कर रहे हैं दुर्गम जैसे सुगम में , ये मर रहे हैं फिर भी किंचित गम ना करते बाधा देख कभी ना डरते मिशन कोशिश तो अब आई है ये खुद कितने मिशन हैं करते अब शिक्षकों पर प्रयोग तुम बंद करो उलझाकर इनकी बुद्धि ना कुंद करो राष्ट्र निर्माता को राष्ट्र निर्माण करने दो बख्श दो इन्हें देश कल्याण करने दो शिक्षक को शिक्षण के काम में ही लगाओ इस डूबती व्यवस्था को कोई तो बचाओ वरना वो दिन दूर नहीं जब सरकारी स्कूल सब खाली होंगे ना रंग बिरंगे फूल कोई ना चौकीदार ना माली होंगे गरीब का जो भला करना है तो सरकारी स्कूल बचाना होगा गुरूओं को स्कूलों में सिर्फ पढ़ाना होगा यकीं मानो उस दिन इक नई भोर होगी शिक्षा और खुशहाली फिर चहुँ ओर होगी। रचयिता- -बलवन्त रौतेला रुद्रपुर
pandeysatyam999
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली, तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती। तेरे भक्त जनो पर माता भीर पड़ी है भारी। दानव दल पर टूट पड़ो मां करके सिंह सवारी॥ सौ-सौ सिहों से बलशाली, है अष्ट भुजाओं वाली, दुष्टों को तू ही ललकारती। ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
Netra Jha
**गुजारा होता है हर किसी का उनके अपने प्रारब्द्ध के कर्मों की सूची से, तभी तो इंसान तो सभी हैं मगर कोई राजा की जिंदगी जीता है तो कोई रंक की| गुजारा करने के लिये हर जीव का इंतजाम रहता है, हर जीव का पालन स्वयं प्रकृति करती है| 👇👇👇👇👇 एकबार सूर्य की पत्नि ने कहा कि आपको रोज जगत का पालन करने के लिये जाना पड़ता है , क्या रात्री तक हर जीव के उदर में कुछ न कुछ अन्न जाता है? सूर्य नारायण ने कहा हां , तब पति की परीक्षा लेने के लिये उन्होने सूरोदय से पहले एक चींटे को डिब्बी में बंद कर दिया, दुसरे दिन सुबह से फिर रात्री हुई तब पत्नि ने पूछा - स्वामी सबके पेट में अन्न गया न? सूर्य नारायण ने कहा - हां , ऐसा कभी हो नहीं सकता कि किसी जीव को कुछ न मिले| तब पत्नि जाकर गर्व से वो डिब्बी लेकर आईं और कहा- स्वामी मैं क्षमा चाहती हुं , मगर एक जीव भूखा रह गया| जैसे ही डिब्बी खोली एक आधा चावल का दाना चींटे के साथ पड़ा था, सूर्य नारायण मुस्कुरा दिये, दरअसल जिस वक्त वो डब्बी बंद कर रहीं थीं उस वक्त उनके मस्तक पर लगा कंकू चावल में से एक दाना गिर गया था| इसलिये सबका इस दुनिया में कोई किसी भी हाल में हो गुजारा हो ही जाता है**..!!