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Alok Pathak
दिन आया सुकून भरा महीनों के इंतजार पर दरवाजे पर ही हूं खड़ी मैं सोलह श्रृंगार कर सूटकेस दे हाथों में साथियों को पहले भेजा है क्यों बक्से में कर बंद खुद को यूं आपने सहेजा है जान वार कर वतन पर बेजान देह हैं सौंप चले थे रौशनी के इंतजार में हम आप तो रौशन कर संसार चले संभालूं कैसे आसुओं को आप मौन हैं बेसुध हैं पसरा सन्नाटा शहर में जो रक्त आपका अवरुद्ध है वादा है आपसे बच्ची भी आपका नाम बढ़ाएगी नाम से आपके वो अपनी पहचान बताएगी लेटे आप हैं भावनाएं देश की जाग रही देखती राह मैं बैठी रही ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही।।४।। #shahadat_bhari_deewali 4
#shahadat_bhari_deewali 4 #poem
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बाबूजी दुकान से नया कुर्ता भी सिला लाए दो सौ धरा दुकानदार को मिठाई सभी खा लेना रौशन घर को करने चराग हमारा आ रहा कह आए झिलमिलाती लड़ियां भी लगा रहे घर सजाने की हर तरकीब वो अपना रहे चासनी में डूबी रस मलाई भी कह रही देखती राह मैं बैठी रही ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही।।३।। #shahadat_bhari_deewali 3
#shahadat_bhari_deewali 3 #poem
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बेटी के सब्र का बांध भी अब टूट रहा खिलौनों से उसका साथ भी है छूट रहा आप आ रहे हैं उसको याद यही आती है पापा-पापा कहकर वो नींद में भी बड़बड़ाती है व्याकुल सी नजरें सिर्फ आसरे में हैं दीवाली बीतने से पहले जरूर आएंगे कह रही सहेलियों से नए नए खिलौने पटाखे पापा मेरे लाएंगे जलाऊंगी मैं पटाखे उनके साथ मिलकर तब हम असली दीवाली मनाएंगे खुशियों की सवारी लेकर घड़ियां हैं आ रही देखती राह मैं बैठी रही ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही।।२।। #shahadat_bhari_deewali 2
#shahadat_bhari_deewali 2 #poem
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शहादत भरी दीवाली देखती राह मैं बैठी रही ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही ना आए आप करके वादा मैं दीप लेकर आऊंगा जगमगाएंगे चौबारे हमारे मैं दीप लेकर आऊंगा कहा था मां से मिठाई मेरी पसंदीदा बनाना छुटकी जो छुपकर पहले मुझसे खाए डांट जोर की तुम उसको लगाना दीपावली के दिए सब के साथ ही जलाऊंगा ना आए आप करके वादा मैं दीप लेकर आऊंगा। छिपाकर आंसू सबसे हंसती मैं फिर रही देखती राह जो बैठी रही ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही।।१।। #shahadat_bhari_deewali 1
#shahadat_bhari_deewali 1 #poem
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