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Best निर्मल Shayari, Status, Quotes, Stories

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Amit Singhal "Aseemit"

Pradyumn awsthi

#निर्मल तन,मन

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निर्मल मन जन सो मोहि पावा,मोहि कपट छल छिद्र ना भावा ।

भावार्थ = वेद पुराणों में ईश्वर ने कहा है कि निर्मल,साफ और सरल
स्वाभाव वाला मानव ही मेरे मन को भाता है अर्थात मुझे सबसे ज्यादा
प्रिय लगता है लेकिन जो मानव अपने अंदर छल,कपट और अनेक 
प्रकार के बुरे भावों को अपने अंदर रखते हैं ऐसे मानव मुझे तनिक 
भी नहीं भाते हैं और ऐसे मानवों से में सदैव अप्रसन्न ही रहता हूं।

©"pradyuman awasthi" #निर्मल तन,मन

ranjit Kumar rathour

मेरी ट्रेन वाली सब्बो #निर्मल वर्मा की बिट्टो जैसी poetry month

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Biikrmjet Sing

जग में राम नाम हर निर्मला होर मैला सभ आकार।।

अर्थ:- जगत में शरीर यानी सारा तन मैला है अगर निर्मल है तो वह है दसवां द्वार जिसमें प्रकाश रूप परमात्मा रूपी राम बस्ते हैं यानी हमारे नेत्रों व नैनो के साहमने परमात्मा बसते हैं।।

©Biikrmjet Sing #निर्मल

Prem sagar

#निर्मल पाणी #सतलुज नदी हिमाचल प्रदेश

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Kumar Gagan

#लव #Ka #Ka Ayesha Aarya kanishka Yogendra Nath Kumar Khushi masakali

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यदि आप के मन में  "जहर"  नहीं है ,, तो.. 
आप के जेब में रखी -                      
                        "जहर की शीशी" भी
 किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकती ...!!



                #निर्मल मन की आवाज़



- अपनी कलम ✒️ से..

©Kumar Gagan #लव #Ka #Ka  Ayesha Aarya  kanishka Yogendra Nath Kumar Khushi masakali

Shreya Tripathi

kashii....

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प्रेम पतित पावनी काशी
निर्मल,अविरल,आनंददायी गंगा धार
अद्भुत घटा अकल्पनीय दृश्य
धरोहर काशी शान....
सुबहे-काशी शाम-काशी घाट
घटा निराली काशी काशी
जन्म काशी मोक्ष काशी
काशी हरे संताप
कथा काशी महादेव सुनावे
सुने सारा जग
प्रेम पतित पावनी काशी
निर्मल अविरल गंगा धार..... #NojotoQuote kashii....

Vinay Shrivastava

ओस की बूंदे #Dewdrop #Life #Motivation

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रात में आसमान से उतरीं,
अकुलाई सी शरमाई सीं,
अपनी मंज़िल से अनजान,
ठंडी हवाओं संग गुनगुनातीं,
शांति और समपर्ण से भरीं,
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं ।।

किसी घास के तिनके पर,
किसी फूल की पत्ती पर,
या फिर सीधे मिट्टी पर,
चाह नही थी कोई,
ईश्वर की मर्जी में वो खोईं,
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं ।।

धरती ने उनका स्वागत किया,
जिससे भी उनका मिलन हुआ,
उनकी सुंदरता थी बढ़ाई,
जैसे कर दी हो सुंदर सी कढ़ाई,
मांग नही करना कोई आया,
बिना बोझ के साथ निभाया,
फिर भी पहचान नही खोई,
ध्यानमग्न सी बैठीं रहीं अपने सुख में खोईं,
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं ।।

फिर तपस्या का फल पाया,
सुनहरा सूरज नभ में उग आया,
उसकी आभा से हो गईं प्रकाशमान,
सूर्य उनमें से झिलमिलाया,
मोती सा उनको चमकाया,
बिन मांगे था बहुत कुछ पाया,
दिवाली सा उत्सव उन्होंने मनाया,
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं  ।।

फिर जाने का वक़्त हो आया,
छोटा सा जीवन क्या खूब जी पाया,
धरती को था बहुत खूबसूरत बनाया,
सीख लें हम जीने की कला इनसे,
क्या खूब जीवन जीना सिखाया,
लीन हो गईं अम्बर में फिर कहीं ।
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं ।।

-Vinay











 #NojotoQuote ओस की बूंदे 
#Dewdrop #Life #Motivation

Vinay Shrivastava

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रात में आसमान से उतरीं,
अकुलाई सी शरमाई सीं,
अपनी मंज़िल से अनजान,
ठंडी हवाओं संग गुनगुनातीं,
शांति और समपर्ण से भरीं,
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं ।।

किसी घास के तिनके पर,
किसी फूल की पत्ती पर,
या फिर सीधे मिट्टी पर,
चाह नही थी कोई,
ईश्वर की मर्जी में वो खोईं,
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं ।।

धरती ने उनका स्वागत किया,
जिससे भी उनका मिलन हुआ,
उनकी सुंदरता थी बढ़ाई,
जैसे कर दी हो सुंदर सी कढ़ाई,
मांग नही करना कोई आया,
बिना बोझ के साथ निभाया,
फिर भी पहचान नही खोई,
ध्यानमग्न सी बैठीं रहीं अपने सुख में खोईं,
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं ।।

फिर तपस्या का फल पाया,
सुनहरा सूरज नभ में उग आया,
उसकी आभा से हो गईं प्रकाशमान,
सूर्य उनमें से झिलमिलाया,
मोती सा उनको चमकाया,
बिन मांगे था बहुत कुछ पाया,
दिवाली सा उत्सव उन्होंने मनाया,
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं  ।।

फिर जाने का वक़्त हो आया,
छोटा सा जीवन क्या खूब जी पाया,
धरती को था बहुत खूबसूरत बनाया,
सीख लें हम जीने की कला इनसे,
क्या खूब जीवन जीना सिखाया,
लीन हो गईं अम्बर में फिर कहीं ।
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं ।।


-Vinay








 #NojotoQuote

Vinay Shrivastava

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रात में आसमान से उतरीं,
अकुलाई सी शरमाई सीं,
अपनी मंज़िल से अनजान,
ठंडी हवाओं संग गुनगुनातीं,
शांति और समपर्ण से भरीं,
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं ।।

किसी घास के तिनके पर,
किसी फूल की पत्ती पर,
या फिर सीधे मिट्टी पर,
चाह नही थी कोई,
ईश्वर की मर्जी में वो खोईं,
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं ।।

धरती ने उनका स्वागत किया,
जिससे भी उनका मिलन हुआ,
उनकी सुंदरता थी बढ़ाई,
जैसे कर दी हो सुंदर सी कढ़ाई,
मांग नही करना कोई आया,
बिना बोझ के साथ निभाया,
फिर भी पहचान नही खोई,
ध्यानमग्न सी बैठीं रहीं अपने सुख में खोईं,
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं ।।

फिर तपस्या का फल पाया,
सुनहरा सूरज नभ में उग आया,
उसकी आभा से हो गईं प्रकाशमान,
सूर्य उनमें से झिलमिलाया,
मोती सा उनको चमकाया,
बिन मांगे था बहुत कुछ पाया,
दिवाली सा उत्सव उन्होंने मनाया,
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं  ।।

फिर जाने का वक़्त हो आया,
छोटा सा जीवन क्या खूब जी पाया,
धरती को था बहुत खूबसूरत बनाया,
सीख लें हम जीने की कला इनसे,
क्या खूब जीवन जीना सिखाया,
लीन हो गईं अम्बर में फिर कहीं ।
थीं वो ओस की निर्मल बूदें ।
धरती की गोद में आ गिरीं थीं ।।


-Vinay











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