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अदनासा-

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अदनासा-

विडियो सौजन्य एवं हार्दिक आभार💐🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳https://www.instagram.com/reel/C2KpiW0v_S_/?igsh=MXNmaG5oZW96MjY2OQ== #हिंदी #क़ानून #जागरुकता #जनता #पुलिस #विश्वास #सोशलमीडिया #जिजीविषा #Instagram #अदनासा #जानकारी

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Death_Lover

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Sita Prasad

दस रुपये के कुरकुरे या टेढ़े-मेढ़े या लेज के पैकेट में शायद पचास या पचपन ग्राम खाने की चीज होती है। पांच रुपये वाले में शायद बीस ग्राम। खाने की यह चीज कुछ सेकेंड में खतम हो जाती है। लेकिन, जिस चीज में यह पैक करके आती है, वह हजारों सालों में खतम नहीं होती। जाहिर है कि प्लास्टिक उन कुछ चीजों में शामिल है जो इंसानियत के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। लेकिन, फिलहाल तो यह आधुनिकता और संपन्नता की प्रतीक है। अब दिल्ली को ही लीजिए। देश की राजधानी में प्रतिव्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पादन राष्ट्रीय औसत से पांच गुना ज्यादा है। यानी किसी गांव, कस्बे या दूर-दराज के क्षेत्र में रहने वाले व्यक्ति की तुलना में दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति पांच गुना ज्यादा प्लास्टिक कचरा पैदा करता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरमेंट का दावा है कि देश में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पादन सबसे ज्यादा गोवा में है। टूरिज्म आधारित अर्थव्यवस्था जमकर प्लास्टिक कचरा पैदा कर रही है। इसके बाद दूसरे नंबर पर दिल्ली है। प्लास्टिक कचरा पैदा करने के मामले में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय औसत 7.6 ग्राम प्रतिदिन का है। जबकि, गोवा में यह प्रतिव्यक्ति औसत 61.2 ग्राम का है। दिल्ली में यह प्रतिव्यक्ति औसत 36.2 ग्राम प्रतिदिन का है। दिल्ली के बाद चंडीगढ़, पुद्दुचेरी और गुजरात प्रतिव्यक्ति कचरा उत्पादन के मामले में क्रमशः तीसरे, चौथे और पांचवे नंबर पर हैं। लाइन से देखिए, ये सब देश के तुलनात्मक रूप से आधुनिक और संपन्न हिस्से हैं। पूरी दुनिया में ही हर दिन पैदा होने वाले प्लास्टिक का सत्तर फीसदी तक का हिस्सा केवल पैकेजिंग में इस्तेमाल होता है। चाहे खाने के पैकेट हों, किताबों के पैकेट हों, खिलौने के पैकेट हों या कुछ भी और। कहीं कुछ भेजना है, कहीं कुछ पहुंचाना है। सबकुछ को प्लास्टिक में बंद किया जाता है। जब वो सामान सही जगह पहुंच जाता है तो पैकेजिंग उतार दी जाती है। फिर उसे फेंक दिया जाता है। वो प्लास्टिक कचरा है। किसी ने कहा है कि मिनरल वॉटर कंपनियां मिनरल वाटर का उत्पादन नहीं करतीं। वो केवल प्लास्टिक का उत्पादन करती हैं। दुनिया भर में पानी की बोलतें मुसीबत बन गई हैं। प्लास्टिक हजारों सालों तक जमीन को, पानी को और हवा को खराब करता है। ये वही चीजें हैं, जिनके बिना हम जी नहीं सकते। जमीन पर हम रहते हैं, अपना खाना उगाते हैं। पानी से हम बने हैं। हवा में हम सांस लेते हैं। लेकिन, प्लास्टिक कचरा इन तीनों में ही जहर घोल रहा है। अगर सिर्फ सामान की पैकेजिंग के तरीके में ही बदलाव किया जा सके तो हजारों टन प्लास्टिक को पर्यावरण खराब करने से बचाया जा सकता है। लेकिन, इसी दुनिया में चंद कंपनियां हैं, उन कंपनियों से मुनाफा कमाने वाले पूंजीपति हैं। वे प्लास्टिक का उत्पादन करते हैं। प्लास्टिक ने उनकी अमीरी पैदा की है। दुनिया चाहे भाड़ में चली जाए, लेकिन वे अपनी इस अमीरी को खोना नहीं चाहते। तो नतीजा क्या है, प्लास्टिक पैदा होता ही रहेगा, भले ही यह हमारी सासें ही क्यों न छीन ले.... #YourQuoteAndMine #हिंदी_साहित्य #जागरुकता #जंगलकथा #जंगलमन #कबीर_संजय

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एक ही है- उत्पादन बन्द करना,
जब तक प्लास्टिक का उत्पादन बन्द नहीं होगा, आप खरीदार को दोषी नहीं ठहरा सकते। आजकल, खरीदार से कहा जाता है, भटको मत। फिर हर जगह बड़े- बड़े  विज्ञापन छापते जाते है। 
 दस रुपये के कुरकुरे या टेढ़े-मेढ़े या लेज के पैकेट में शायद पचास या पचपन ग्राम खाने की चीज होती है। पांच रुपये वाले में शायद बीस ग्राम। खाने की यह चीज कुछ सेकेंड में खतम हो जाती है। लेकिन, जिस चीज में यह पैक करके आती है, वह हजारों सालों में खतम नहीं होती। 
जाहिर है कि प्लास्टिक उन कुछ चीजों में शामिल है जो इंसानियत के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। लेकिन, फिलहाल तो यह आधुनिकता और संपन्नता की प्रतीक है। अब दिल्ली को ही लीजिए। देश की राजधानी में प्रतिव्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पादन राष्ट्रीय औसत से पांच गुना ज्यादा है। यानी किसी गांव, कस्बे या दूर-दराज के क्षेत्र में रहने वाले व्यक्ति की तुलना में दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति पांच गुना ज्यादा प्लास्टिक कचरा पैदा करता है। 
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरमेंट का दावा है कि देश में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पादन सबसे ज्यादा गोवा में है। टूरिज्म आधारित अर्थव्यवस्था जमकर प्लास्टिक कचरा पैदा कर रही है। इसके बाद दूसरे नंबर पर दिल्ली है। प्लास्टिक कचरा पैदा करने के मामले में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय औसत 7.6 ग्राम प्रतिदिन का है। जबकि, गोवा में यह प्रतिव्यक्ति औसत 61.2 ग्राम का है। दिल्ली में यह प्रतिव्यक्ति औसत 36.2 ग्राम प्रतिदिन का है। दिल्ली के बाद चंडीगढ़, पुद्दुचेरी और गुजरात प्रतिव्यक्ति कचरा उत्पादन के मामले में क्रमशः तीसरे, चौथे और पांचवे नंबर पर हैं। लाइन से देखिए, ये सब देश के तुलनात्मक रूप से आधुनिक और संपन्न हिस्से हैं। 
पूरी दुनिया में ही हर दिन पैदा होने वाले प्लास्टिक का सत्तर फीसदी तक का हिस्सा केवल पैकेजिंग में इस्तेमाल होता है। चाहे खाने के पैकेट हों, किताबों के पैकेट हों, खिलौने के पैकेट हों या कुछ भी और। कहीं कुछ भेजना है, कहीं कुछ पहुंचाना है। सबकुछ को प्लास्टिक में बंद किया जाता है। जब वो सामान सही जगह पहुंच जाता है तो पैकेजिंग उतार दी जाती है। फिर उसे फेंक दिया जाता है। वो प्लास्टिक कचरा है। किसी ने कहा है कि मिनरल वॉटर कंपनियां मिनरल वाटर का उत्पादन नहीं करतीं। वो केवल प्लास्टिक का उत्पादन करती हैं। दुनिया भर में पानी की बोलतें मुसीबत बन गई हैं। 
प्लास्टिक हजारों सालों तक जमीन को, पानी को और हवा को खराब करता है। ये वही चीजें हैं, जिनके बिना हम जी नहीं सकते। जमीन पर हम रहते हैं, अपना खाना उगाते हैं। पानी से हम बने हैं। हवा में हम सांस लेते हैं। लेकिन, प्लास्टिक कचरा इन तीनों में ही जहर घोल रहा है। 
अगर सिर्फ सामान की पैकेजिंग के तरीके में ही बदलाव किया जा सके तो हजारों टन प्लास्टिक को पर्यावरण खराब करने से बचाया जा सकता है। लेकिन, इसी दुनिया में चंद कंपनियां हैं, उन कंपनियों से मुनाफा कमाने वाले पूंजीपति हैं। वे प्लास्टिक का उत्पादन करते हैं। प्लास्टिक ने उनकी अमीरी पैदा की है। दुनिया चाहे भाड़ में चली जाए, लेकिन वे अपनी इस अमीरी को खोना नहीं चाहते। 
तो नतीजा क्या है, प्लास्टिक पैदा होता ही रहेगा, भले ही यह हमारी सासें ही क्यों न छीन ले....

Shiv k Shriwas

#जागरुकता ही बचाव है# coronavirus##

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मित्रों,
आज वैश्विक परिदृश्य में विश्व अत्यंत संकटकालीन परिस्थितियों से जूझ रहा है।मानो पूरी दुनिया स्थिर हो चुकी हो।मानवजीवन अशांत एवं भयभीत महसूस कर रहा है।चंद दिनो पूर्व जो मनुष्य स्वयं को धरा का संचालक एवं प्रकृति को अपनी ईच्छानुरुप ढ़ालने का दुस्साहस कर रहा था,आज प्रकृति के प्रकोप से असहाय महसूस कर रहा है।विशेषकर हमारे देश मे प्राचीनकाल से ही प्रकृतिपूजा एवं प्रकृति से मित्रवत व्यवहार करने की परंपरा रही है।परंतु पाश्चात्य संस्कृति के हावी होने एवं अंधानुकरण की वजह से पिछले कई दशकों से प्रकृति से हमारा तारतम्य विफल होते जा रहा है।प्रकृति के विरुद्ध कार्य करने की मानवीय प्रवृति मे इजाफा हुआ है,परिणामस्वरुप वैश्विक आपदा,महामारी या प्राकृतिक प्रकोप का सामना करना पड़ रहा है।
                         मित्रों अभी भी वक्त है पृथ्वी को सुंदर,खुशहाल,व स्वस्थ रखने हेतु प्रत्येक नागरिक, नैतिकता, मानवता एवं विश्वहीत के लिए प्रतिबद्ध होकर प्रकृति के अनुकुल कार्य करें ताकि कोरोना वायरस जैसे वैश्विक महामारी का सामना भविष्य मे ना करना पड़े।
            आइए हम सब मिलकर जनहित एवं राष्ट्रहित के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करें।

                              Shiv k Shriwas #जागरुकता ही बचाव है# coronavirus##


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