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Divyanshu Pathak
हमारे पुरखों ने उपासना को अनिवार्य बताया।सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के बाद तारे निकलने तक इसका एक मात्र कारण लम्बी आयु और बेहतर स्वास्थ्य था। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 न तिष्ठति तु यः पूर्वां नोपासते यश्च पश्चिमाम्। स शूद्रवद्बहिष्कार्य: सर्वस्माद् द्विजकर्मणः।। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 यदि तुम प्रातः और सांयकाल में उपासना नहीं करते हो तब तुम शूद्रता को प्राप्त हुए श्रेष्ठ कर्म से बहिष्कृत (विमुख) हो जाओगे। (मनुस्मृति अध्याय -02 श्लोक - 103) जब अर्थ का अनर्थ कर दिया जाता है तो हमें ठीक होने वाली बात भी गलत मालूम पड़ती है।लेकिन स्वविवेक से यह ज़रूर चिंतन करना चाहिए कि सही क्या है?कुछ गलत मिल जाए तो उसे ठीक करने का प्रयास तो होना ही चाहिए।महाभारत में भी उपासना के बारे में ऐसा ही वर्णन है---- ऋषयो नित्यसंध्यत्वाद्दीर्घमायुरवाप्नुवन्। तस्मातिष्ठेत्सदा पूर्वां पश्चिमां चैव वाग्यतः।। ऋषियों ने सुबह और सांयकाल की उपासना कर दीर्घायु वाला जीवन प्राप्त किया।इसलिए हमें भी बैठकर सुबह और शाम को उपासना करनी चाहिए। महाभारत अनु. अध्याय 104 श्
Divyanshu Pathak
कोकिलानां स्वरो रूपं, नारी रूपं पतिव्रतम् ! विद्या रूपं कुरूपाणां, क्षमा रूपं तपस्विनाम् !! हमारी धार्मिक पुस्तकों या शास्त्रों में बुराइयों को ढूंढने वालों की आँखे पता नहीं क्या देख लेती हैं जिसे लेकर वो इनका विरोध करने लग जाते हैं। ☕😂😁😁☕☕🍫☕🌹 जब ये श्लोक मैंने सुनाया तो एक नारीवाद की पक्षधर बोली कि इसमें पुरुषों के लिए तो कुछ नही कहा । ☕☕☕☕😁😂🍫☕🌹 मैंने कहा कोई बात नही उनके लिए आप हो । : जैसे कोयल का मधुर स्वर उसके रूप को पहचान देता है । ठीक बैसे ही संयमित मधुर वाणी हमारी पहिचान बनती है ।
Divyanshu Pathak
वह मुझसे अब ख़फ़ा हो गया है उसका लफ़्ज़ बद्दुआ हो गया है! काम करना बहुत मुश्किल हो गया है मेरा हाथ मुझसे ज़ुदा हो गया है! पानी को कौन नीचे खींच रहा है पानी में गहरा कुआ हो गया है! इस शख्स का बचना अब मुश्क़िल है जख़्म बहुत ही गहरा हो गया है ! पैसा पास हो तो ख़रीद लो क़ानून पैसा क़ानून से भी बड़ा हो गया है ! 🍵🍹☕मेरी डायरी के एक पृष्ठ पे मिली ये ग़ज़ल पता नहीं किसकी है पर है क़माल की 😊🤓इसे पढ़ते ही #मनुस्मृति की ओर दिमाग़ चला गया 🍉🍉🐿सोचा आपके साथ साझा कर दूँ😀🍫🐒🐒🍹#हरेकृष्ण🍹🍵🍵😊#पाठक😊🤓#पंछी😊🤓🍹🍵 :🤓🍹🍵🐒🍫☕🍧🐦 ’ मनुस्मृति में कहा है- ‘अधर्मेणैधतेतावत्ततो भद्राणि पश्यति। सपत्नाञ्जयते सर्वान् समूलस्तु विनश्यति ॥’ अर्थात्-प्रथमत: मनुष्य अधर्म से बढ़ता है और सब प्रकार की समृद्धि प्राप्त करता है तथा अपने सभी प्रतियोगियों से आगे भी निकल जाता है किन्तु समूल नष्ट हो जाता है। इसका भावार्थ है कि अधर्म के जरिए उत्पन्न अन्न
manoj kumar jha"Manu"
अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी | संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः || - मनुस्मृति ५.५१ भावार्थ - पशु वध करने की आज्ञा प्रदान करने वाला , उसके खण्ड खण्ड करने वाला, वध करने वाला ,क्रय-विक्रय करने वाला, मांस को पकाने वाला, परोसने तथा उसे भक्षण करने वाला -ये आठ प्रकार के लोग घातक कहे जाते हैं। #मनुस्मृति माँस का परित्याग अनिवार्य रूप से करें।
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