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Prakhar Tiwari

#me #status #संस्कृति #sanskar #संस्कृतश्लोक सर्वप्रथमं अहं भवन्तं प्रेम करोमि द्वितीयं अस्माकं मध्ये किमपि प्रथमं वस्तु मा विस्मरतु..!

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अनजान मुसाफ़िर

Madhav Jha


यदा किंचिज्‍ज्ञोSहंद्विप इव मदान्‍ध: समभवं 
तदासर्वज्ञोSस्‍मीत्‍यभवदवलिप्‍तं मम मन: ।
यदा किंचित्‍किंचिद्बुधजनसकाशादवगतं 
तदा मूर्खोSस्‍मीति ज्‍वर इव मदो मे व्‍यपगत:  ।। 8
 
व्‍याख्‍या -
यदा अहं अल्‍पज्ञ: आसम् तदा गज इव मदान्‍ध: आसम् यत् मत्‍सदृशं नास्ति अस्‍यां पृथिव्‍यां विद्वान् कश्चित् । किन्‍तु यदा विदुषां सम्‍पर्कं प्राप्‍य किंचित्-किंचित् ज्ञानं जातं तदा अवगमनमभवत् यत् अहं तु मूर्ख: एव अस्मि इति, पुनश्‍च मम अभिमानं ज्‍वर इव समाप्‍तमभवत् ।

 हिन्‍दी -
जब मैं अल्‍पज्ञ था तब हाथी की भांति मुझे अभिमान था, तब मैं ही सर्वज्ञ हूँ ऐसा मेरा मन समझता था । जब मैं विद्वानों के सम्‍पर्क में रहकर कुछ-कुछ जानकार हुआ तब मुझे यह ज्ञात हुआ कि वस्‍तुत: मैं मूर्ख हूँ और मेरा अभिमान ज्‍वर की भांति उतर गया ।

छन्‍द - शिखरिणी छन्‍द: ।
छन्‍दलक्षणम् - रसे रुद्रैश्छिन्‍ना यमनसभलाग: शिखरिणी ।

हिन्‍दी छन्‍दानुवाद - 
गज के समान था मदान्‍ध लिये छुद्र-ज्ञान, सोंचा करता था कोई क्‍या मेरे समान है ।
मैं हूँ सर्वज्ञ, मुझको है सब कुछ ज्ञात, जितने भी नीति, वेद, शास्‍त्र व पुराण हैं ।
विदुषों की संगति में बैठ के जो सीखा कुछ तो पता चला कि अभी तुच्‍छ-लव-ज्ञान है ।
विज्ञ नहीं अज्ञ हूँ मैं इसकी प्र‍तीति हुई, ज्‍वर के समान दूर हुआ अभिमान है ।।
 #संस्कृतसाहित्यम् #संस्कृतश्लोक

Madhav Jha

शुभरात्रि।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत ।।

सभी सुखी हों, सभी निरोगी रहें ।
सभी सभी से भद्र हों और किसी को 
कोई भी दुःख हो तो वो दूर हो जाए ।— % & #संस्कृतश्लोक #शुभकामनाएँ #शुभरात्रि #योरकोट_दीदी #योरकोटबाबा

Madhav Jha

1. सहस्रकिरणोज्ज्वल। लोकदीप नमस्तेऽस्तु नमस्ते कोणवल्लभ।।
भास्कराय नमो नित्यं खखोल्काय नमो नमः। विष्णवे कालचक्राय सोमायामिततेजसे।।

भावार्थ―
हे देवदेवेश! आप सहस्र किरणों से प्रकाशमान हैं। हे कोणवल्लभ! आप संसार के लिए दीपक हैं, आपको हमारा नमस्कार है। विष्णु, कालचक्र, अमित तेजस्वी, सोम आदि नामों से सुशोभित एवं अंतरिक्ष में स्थित होकर सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करने वाले आप भगवान भास्कर को हमारा नमस्कार है।

2. तिलवत् स्निग्धं मनोऽस्तु वाण्यां गुडवन्माधुर्यम्।
तिलगुडलड्डुकवत् सम्बन्धेऽस्तु सुवृत्तत्त्वम्।।

भावार्थ―
मकर संक्रांति पर तिल समान हम सभी के मन स्नेहमय हो, गुड़ समान हमारे शब्दों में मिठास हो और जैसे लड्डू में तिल और गुड़ कि प्रबल घनिष्ठता है वैसे हमारे संबंध हो।


 #मकर_सक्रांति_की_बहुत_बहुत_शुभकामनायें  #योरकोट_हिंदी #संस्कृतश्लोक #योरकोटबाबा #योरकोट_दीदी

"अमोघ"

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