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Anuj Jain
भी अब दुश्वार है बहक गयी है दुनिया सारी अब पागल सरदार है चुप चाप घुट घुट कर मरना ही इख़्तियार है अब पागल को खुदा कहना ही एकमात्र उपाय है ©Anuj Jain #Currentscenario #Politics #madman
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read moreRaza Official
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read moreमुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
अपने चेहरे से जो... अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे; तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे; घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है; पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे; क़हक़हा आँख का बर्ताव बदल देता है; हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे; कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा; एक क़तरे को समंदर नज़र आयें कैसे। ::*MadMan*:: ©Ankur Mishra अपने चेहरे से जो... अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे; तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे; घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है;
अपने चेहरे से जो... अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे; तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे; घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है;
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कुछ तो है अधुरा सा मुझमें , तभी तो दर्द से भरा हुँ , कुछ तो है कहना मुझे , तभी तो लिखता रहता हुँ , कुछ तो बाकी हैं मुझमें , तभी तो हँसता रहता हुँ , कुछ तो हैं सुनना मुझे , तभी तो गुमसुम रहता हुँ , कुछ तो है आँखों मैं मेरी , तभी तो अब भी सपने बुनता हुँ । ©Ankur Mishra #Madman
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
Nahi jo dil me jagah to nazar me rehne do, Meri hayaat ko to apane asar me rehne do, Main apni soch ko teri gali me chhor aaya, Mere wazood ko Mere khwabon ke ghar me rehne do ©Ankur Mishra Nahi jo dil me jagah to nazar me rehne do, Meri hayaat ko to apane asar me rehne do, Main apni soch ko teri gali me chhor aaya, Mere wazood ko Mere khwabon ke
Nahi jo dil me jagah to nazar me rehne do, Meri hayaat ko to apane asar me rehne do, Main apni soch ko teri gali me chhor aaya, Mere wazood ko Mere khwabon ke
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एक ग़ज़ल उस पे... एक ग़ज़ल उस पे लिखूं दिल का तकाज़ा है बहुत; इन दिनों खुद से बिछड़ जाने का मौका है बहुत; रात हो दिन हो गफलत हो कि बेदर्दी हो; उसको देखा तो नहीं है, उसे सोचा है बहुत; तश्नगी के भी मुक़ामात हैं ,क्या क्या यानी; कभी दरिया नहीं काफी, कभी क़तरा है बहुत; मेरे हाथों की लकीरों के इज़ाफ़े हैं गवाह; मैने पत्थर की तरह खुद को तराशा है बहुत। ::::::::::MADMAN:::::::::: ©Ankur Mishra एक ग़ज़ल उस पे... एक ग़ज़ल उस पे लिखूं दिल का तकाज़ा है बहुत; इन दिनों खुद से बिछड़ जाने का मौका है बहुत; रात हो दिन हो गफलत हो कि बेदर्दी हो;
एक ग़ज़ल उस पे... एक ग़ज़ल उस पे लिखूं दिल का तकाज़ा है बहुत; इन दिनों खुद से बिछड़ जाने का मौका है बहुत; रात हो दिन हो गफलत हो कि बेदर्दी हो;
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मेरे बारे में किस्से पूछेंगे आप मैं खुद बता रहा हूं मैं बहुत बुरा हुं। ©Ankur Raaz मैं बहुत बुरा हुं #madman
मैं बहुत बुरा हुं #madman
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बातें जब खो देती है, जज़्बात, रिश्ते में रह जाये बस, जिम्मेदारी, महसूस करने से जादा, दिखाने को मोह्हबत, जिंदा रहने को, कहने लगो जिंदगी, तब मुस्कुरा के आईने को, सच बताना, शब्द दर शब्द, जिंदगी को, नए मायने बताना l ©Ankur Raaz बातें जब खो देती है, जज़्बात, रिश्ते में रह जाये बस, जिम्मेदारी, महसूस करने से जादा, दिखाने को मोह्हबत, जिंदा रहने को, कहने लगो जिंदगी,
बातें जब खो देती है, जज़्बात, रिश्ते में रह जाये बस, जिम्मेदारी, महसूस करने से जादा, दिखाने को मोह्हबत, जिंदा रहने को, कहने लगो जिंदगी,
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"ग़ैर-जरूरी सा हूं शायद" मैं उसके लिए, ग़ैर-जरूरी सा हूं शायद... हां, मैं अब एक, मजबूरी सा हूं शायद... अपना दर्द अब, किसी और से कह लेता है वो... सुना है,मेरे बिना भी, खुश रह लेता है वो... मेरे बिना वो तो पूरा है लेकिन, उसके बिना मैं अधूरा सा हूं शायद... हां, मैं अब एक, मजबूरी सा हूं शायद... मुझसे दूर जाने के, नए बहाने ढूंढने लगा है वो... मुझसे जी भर गया है शायद, नए ठिकाने ढूंढने लगा है वो... पहले नज़र से दूर किया उसने, अब दिल से भी, दूरी सी है शायद... हां, मैं अब एक, मजबूरी सा हूं शायद.... चाह कर भी उससे, ये कह नहीं पाता हूं... लौट के आ जाओ अब, तुम बिन, रह नहीं पाता हूं... उसे कैसे समझाऊं ये की, उससे मिलकर ही, पूरा सा हूं शायद... हां, मैं अब एक, मजबूरी सा हूं शायद.... अंकुर ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) "ग़ैर-जरूरी सा हूं शायद" मैं उसके लिए, ग़ैर-जरूरी सा हूं शायद... हां, मैं अब एक, मजबूरी सा हूं शायद... अपना दर्द अब, किसी और से कह लेता है वो... सुना है,मेरे बिना भी, खुश रह लेता है वो...
"ग़ैर-जरूरी सा हूं शायद" मैं उसके लिए, ग़ैर-जरूरी सा हूं शायद... हां, मैं अब एक, मजबूरी सा हूं शायद... अपना दर्द अब, किसी और से कह लेता है वो... सुना है,मेरे बिना भी, खुश रह लेता है वो...
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