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Raz Nawadwi
2122-1122-1122-22 ------------------------- शुक्र है उसका तुझे जिसने डराया इक दम जाने कब मुझसे तेरा फिर यूँ चिपकना होगा //१ गरचे अच्छा है मगर 'राज़' पता था ये किसे प्यार के खेल में यूँ रोना लिपटना होगा //२ #राज़_नवादवी #Love
Raz Nawadwi
ग़ज़ल-२६१ (१२२२-१२२२-१२२) ------------------------------------ मज़े सब सूफ़ियाना चाहता हूँ मैं संसद चुन के जाना चाहता हूँ //१ बना कर मूर्ख छोटी मछलियों को बड़ी मछली फँसाना चाहता हूँ //२ सियासत को पड़ा मिर्गी का दौरा उसे जूता सुँघाना चाहता हूँ //३ जहाँ का फ़ोन उठ जाए समय पर मैं इक ऐसा भी थाना चाहता हूँ //४ जो रिश्वतख़ोर हैं उनके मकाँ पे मैं बुलडोज़र चलाना चाहता हूँ //५ खुले में मुजरिमों के वास्ते अब सज़ा-ए-ताज़ियाना चाहता हूँ //६ रहूँ पी कर भी चुप तो क्या मज़ा है मैं पीकर बड़बड़ाना चाहता हूँ //७ सभी से कह दो कर लें बंद आँखें मैं सच नंगा दिखाना चाहता हूँ //८ पता मुझको नहीं है 'राज़' ख़ुद भी मैं क्यों ठेके पे जाना चाहता हूँ //९ #राज़_नवादवी #AlvidaJumma
Raz Nawadwi
ग़ज़ल-२५८ (२१२२-२१२२-२१२) ----------------------------------- झील का पानी भी खारा था कभी हमने हर क़तरा निथारा था कभी //१ ग़र्क़ है जो कस्रते सैलाब में वो नदी का ही किनारा था कभी //२ आज जिनके हाथ में बंदूक़ है हाथ में उनके ग़ुबारा था कभी //३ इंहिदामों का है मंज़र हर तरफ़ शह्र ये मिस्ले बुख़ारा था कभी //४ आज बच्चे इल्तिजा सुनते नहीं देख लेना भी इशारा था कभी //५ ख़ुद हुए, अहसास हमको तब हुआ हमने भी मजनूँ को मारा था कभी //६ रफ़्तगाने ख़ाक़ हमसे कहते हैं जो तुम्हारा है हमारा था कभी //७ राज़ जिन महलों में हैं वीरानियाँ उनमें जन्नत का नज़ारा था कभी //८ #राज़_नवादवी #mahashivratri
Raz Nawadwi
Love quotes in hindi ग़ज़ल: २५३ (1222-1222-122) ---------------------------------- तेरे बेबाक क़ौलों का गिला क्या न दें गाली तो होंठों का मज़ा क्या //१ बिना तेरी इजाज़त के कभी भी तुझे हल्के से भी हमने छुआ क्या //२ मुहब्बत में मिली है कब मुहब्बत मुहब्बत कर के भी यारो हुआ क्या //३ जिसे मजनूँ ने सींचा अपने खूँ से वो सह्रा प्यार का फूला फला क्या //४ वो लासानी था लासानी रहेगा तुम्हें ग़ालिब के बारे में पता क्या //५ वो आया था इधर, कैसे यक़ीं हो कोई रोया, किसी का खूँ बहा क्या //६ तड़पता हूँ रिहाई के लिए मैं असीरे जाँ से हो कारे वफ़ा क्या //७ बुढ़ापे में तुझे मैं याद आया जो फ़ारिग़ है वो होवे मुब्तिला क्या //८ उसे ऐ 'राज़' कह दो अब तो खुल के न दे अंडा तो मुर्गी का मज़ा क्या //९ #राज़_नवादवी
Raz Nawadwi
#ग़ज़ल_غزل: २५१ --------------------------- 2122-2122-2122-212 मुँह बनाया सुब्ह को, पर रात भर अच्छा लगा प्यार करने का तुम्हारा ये हुनर अच्छा लगा //१ डर रहे थे कल बहुत वो वस्ल के गिरदाब में आज शरमा के मगर कहते हैं डर अच्छा लगा //२ मंदिरों की घंटियाँ हों या हो मस्जिद की अज़ाँ चल दिये उठ कर मियाँ हमको जिधर अच्छा लगा //३ था गिला क्या क्या नहीं वस्ते सफ़र हमसे उन्हें अब हज़र में हैं तो कहते हैं सफ़र अच्छा लगा //४ जब कभी परदेस से लौटा हूँ अपने गाँव मैं शह्र के महलों से अपना मुस्तक़र अच्छा लगा //५ थी उन्हें तशवीश आँखों से न उनको चूम लूँ राहज़न की आँख में लुटने का डर अच्छा लगा //६ 'राज़' दिल को खींचती हैं क्यों पराई औरतें कम ही हैं जिनको कि अपना हमसफ़र अच्छा लगा //७ #राज़_नवादवी
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