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Shah-a-noor
औरत है, जब तक खुद की रूह को और आत्मसम्मान चोट न पहुंचे। हर रिश्ता बचाने की कोशिश करेगी। ©Noorlovenoor #DiyaSalaai #औरत #औरत_का_अस्तित्व
poonam atrey
इस राख को मत कुरेदिये , क्योंकि ये राख ही तो हैं , मेरे अंतिम सफर की साक्षी इसमें है मेरी अधजली अस्थियां जिन्हे सहेजना है मुझे इसी राख में , अभी जीना है मुझे इस राख में एक चिंगारी बनकर , और उस चिंगारी से जला देना है, दुनिया के इस खोखले समाज को , जहां स्त्री के पैदा होने से पहले ही रच जाता है उसका जीवन चरित्र, कुचल दिया जाता है अस्तित्व उसका , उसी पुरुष के क़दमों तले , जिस पुरुष को जन्म दिया उसने , कभी जला दिया जाता है उसका जिस्म दहेज की आग में , कभी हवस की भट्टी में , झोक दिया जाता है ...🙏🙏 पूनम आत्रेय ©poonam atrey #औरत_का_अस्तित्व Mili Saha Rama Goswami PRIYANK SHRIVASTAVA 'अरमान' Miss khan Anjana Uikey Mohini tiwari Shilpi Singh Anuja sharma अदनासा- Ravi Ranjan Kumar Kausik Ambika Mallik Radhika yadav Vijay Kumar R K Mishra " सूर्य " Madhusudan Shrivastava Mahi Balwinder Pal Sethi Ji अकेला मानव Manish।।।।। खामोशी और दस्तक Bhavana kmishra Poonam Suyal पथिक gauri Ambika Mallik Sethi Ji Sanjay Ni_ra_la Praveen Jain "पल्लव" kumar samir @gyanendra pandey Hardik Mahajan Sunita Pathania Nil Nasiba Bibi
poonam atrey
सुबह की गुनगुनी धूप कहाँ होती है औरत के हिस्से में, उसे समेटना होता है कल के बिखरे घर को, नहीं ले पाती वो दोपहर की खिली धूप का आनंद , उसे करना होता है इंतजाम सबकी भूख का, सन्ध्या की ठंडी बयार भी नही मिल पाती है उसे, पूरे घर को व्यवस्थित जो करना होता है , कहाँ बैठ पाती है वो चाँद की खिली चांदनी में, कल की दिनचर्या का ताना बाना जो बुनना है, फिर उड़ जाती है उसकी रातो की नींद भी, जब सुनने को मिलता है ये जुमला, तुम दिन भर करती क्या हो , फिर अगले दिन से उसकी वही दिनचर्या शुरू हो जाती है ।। -पूनम आत्रेय ©poonam atrey #औरत_का_अस्तित्व Shilpi Singh Suresh Gulia S.Anand Dharamsingh Markam #Sneha Sharma Ambika Mallik Rajesh Arora PRIYANK SHRIVASTAVA 'अरमान' Balwinder Pal अदनासा- अकेला मानव
रिंकी✍️
मैं घर की जलती बत्ती बनी बनी मैं दियासलाई मैं वो बर्तन बनी जो टकराती रही घर के आंगनों में नल के पास वही मंदिर की आरती मैं जो सुबह शाम बजती रहती एक दीया जो तुलसी के पास जलती रही मैं ही रसोईघर से निकलने वाली खुशबू रही और हाँ चिमनी से निकलती धुंआ मैं वही घर की मर्यादा मैं चौखट बनी दीवारों को चमकाती रही घर की दीवारों के अंदर बनकर सजावटी वस्तु सजती रही मैं औरत थी मगर घुटती रही मेरी तड़प शब्द बनकर फुट पड़ते कभी वो कहते ये बहुत बोलती हैं हमेसा लड़ती रही ✍️रिंकी मैं घर की जलती बत्ती बनी बनी मैं दियासलाई मैं वो बर्तन बनी जो टकराती रही घर के आंगनों में नल के पास वही मंदिर की आरती मैं जो सुबह शाम बजती रहती एक दीया जो तुलसी के पास जलती रही मैं ही रसोईघर से निकलने वाली खुशबू रही
S
कभी मां तो कभी बहन , कभी पत्नी तो कभी बेटी , का किरदार निभाती है सभी की जिमेदारियो का बेढ़ा ढोती है पैसे , जेवर किसी से कुछ न चाहती है प्यार और सम्मान की वह भूखी है मनुष्य की पीढ़ियों को आगे बढ़ाती है ना इस घर की ना उस घर की सभी के लिए पराई होती है कभी मां तो कभी बहन , कभी पत्नी तो कभी बेटी , का किरदार निभाती है यही तो एक औरत होती है— % & एक औरत का जीवन चक्र ... #औरत_एक_रूप_अनेक #औरत_का_अस्तित्व #औरत_का_मान_सम्मान #औरत_की_रचना
Vandana
""""" वह बनती है संवरती है रिझाने के लिए मगर तुम रिझ जाओगे उसके मात्र देह से तो तुम्हें कभी भी स्वीकार नहीं करेगी वह आकर्षित करती है,,,,उसकी आत्मा को छू जाने के लिए,, #औरत_का_अस्तित्व
Vandana
गीली मिट्टी सा मन उसका जिसने चाहा वही मोड़ दिया,,, गीली मिट्टी सा मन उसका जिसने चाहा वही मोड़ दिया माँ बाप के घर की सुकुमारी दायरो में समेट दिया,,,,,,, देखो बंधन के लिए कितना कितना आडंबर रचा है समाज ने पैरों में आलता हाथों में कंगन सर में पल्लू,,, आजादी को छोड़ बंधनों में बंधने ससुराल चली एक विवाहिता,,,,
Vandana
कुछ है जो बाकी है कुछ है जो अधूरा सा है शायद वो अपने वजूद को तलाशती है,,, जाने क्या अधूरा रह गया था उसके अल्हड़पन में उस की मस्तियों में उसकी शरारतो में,,,, वह बेबाक सी लड़की यौवनता की पहली दहलिज में कदम रखा था,,, आसमान की ऊंचाइयों से भी ऊँची उसकी आकांक्षाएं थी,,,, उसके सिरहाने में ख्वाबों की तितलियां थी,,,
Nishtha Rishi
चूल्हे फूंकते हुई स्त्री फुक रही थी अपने सपने, देने परिवार को समय अपने। जला लौ अपने चैन की, झुलस रही थी सबकी खुशियो के जलावन में। अपनी खुशियों का गला घोंट कर, सेंक रही थी सबकी खुशियो की रोटी नमन तेरे बलिदान को। #yqdidi #bestyqhindiquotes #औरत_का_अस्तित्व #hindipoetry #nishtharishi
Anjum Rizvi
बोलती हुई औरतें, कितनी खटकती हैं ना.. सवालों के तीखे जवाब देती बदले में नुकीले सवाल पूछती कितनी चुभती है ना... लाज स्त्री का गहना है इस आदर्श वाक्य का मुंह चिढ़ाती तमाम खोखले आदर्शों को, अपनी स्कूटी के पीछे बांधकर खींचती घूरती हुई नज़रों से नज़रें भिड़ाती कितनी बुरी लगती हैं ना औरतें सदियों से हमें आदत है झुकी गर्दन की जिसे याद हो जाए पैरों की हर एक रेखा.. जिसका सर हिले हमेशा सहमति में... जिसके फैसले के अधिकार की सीमा सीमित हो महज़ रसोई तक... अब, जब पूजे जाना नकार कर वो तलाश रही हैं अपना वजूद तो न जाने क्यों हमें खटक रहा है उनका आत्मविश्वास खोजने लगे हैं हम तरीके उसे ध्वस्त करने के... हर कामयाब स्त्री हमारे लिए, समझौते के बिस्तर से आये व्यभिचार का प्रतीक है..! हर आधुनिक महिला चरित्रहीन और हर अभिनेत्री वेश्या... जीन्स पहनना चालू होने की निशानी है और शॉर्ट्स वालियों के तो रेट्स भी पता हैं हमको... सवाल पूछती औरतों को चुप कराने का नहीं कोई बेहतर उपाय कि घसीटो उन्हें चरित्र की अदालत में जहाँ सारे नियम, सभी क़ानून है पुरुषों के, पुरूषों द्वारा.. जिनकी आड़ में छुप जाएंगी वो तमाम ऐयारियाँ, नाइन्साफ़ीयां जो हमेशा हक़ रही हैं मर्दों का बोलती हुई औरतों !! अब जब सीख ही रही हो बोलना तो रुकना नहीं कभी.. पड़े जरुरत तो चीखना भी लेकिन खामोश न होना.. तुम्हारी चुप्पी ही, सबसे बड़ी दुश्मन रही है तुम्हारी... बोलती हुई औरतों, बोलती रहना तुम !!! मुबारक अली। Via शीतल कुमार ©Anjum Rizvi #समाज_और_संस्कृति #समाज_की_हकीकत #समाज_के_ठेकेदार #समाज_की_सोच #औरत_का_अस्तित्व #औरतकीकहानी