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अदनासा-
अदनासा-
Nirupama Mishra
भ्रांतियां दृष्टिकोण को धूमिल कर देती हैं। ©Nirupama Mishra #भ्रांतियां #अफवाहें #दृष्टिकोण #धूमिल #नजरिया
Poonam
कही सुनी बातों में ना आया कीजिए, दृष्टि जब अपनी है, तो दृष्टिकोण भी अपना रखिए..!! ©Poonam #दृष्टि #दृष्टिकोण #कही_सूनी #morning #सुप्रभात
Deepak Thapliyal
समझ कभी भी एकतरफ़ा होकर सकारात्मक व लाभकारी नहीं हो सकती। अगर हम चाहते हैं कि प्रभु हमको समझें तो उसके लिए हमें भी प्रभु को समझना होगा। सारा खेल दृष्टिकोण का है। ॐ नमः शिवाय 🙏🏻 नज़रिया बदलेगा तो असमीचीन विचारों का दरिया बदलेगा। #दृष्टिकोण
Dharmendra Kumar
💐💐 🌺🌻‼ *सुप्रभात*‼🌻🌺 ✍.. *जहाँ हमारा स्वार्थ समाप्त होता है ..* *वही से हमारी इंसानियत आरम्भ होती है !!* *लोग कहते है कि आदमी को अमीर होना चाहिए..* *और गांव के बुज़ुर्ग़ो का कहना है कि आदमी का जमीर होना चाहिए...।।* 🌹🌳🌷🌿🌺🌴💐🌸🍁 *चित्र* ही नहीं... *#चरित्र* भी सुंदर हो।" *भवन* ही नहीं... *#भावना* भी सुंदर हो।" *साधन* ही नहीं... *#साधना* भी सुंदर हो।" *दृष्टि* ही नहीं... *#दृष्टिकोण* भी सुंदर हो।""।। 💞 ***💞 🐚🔔🌞🔔🐚 💕 *स्नेह वंदन ---------------- ©Dharmendra Kumar #scienceday
Dharmendra Kumar
💐💐 🌺🌻‼ *सुप्रभात*‼🌻🌺 ✍.. *जहाँ हमारा स्वार्थ समाप्त होता है ..* *वही से हमारी इंसानियत आरम्भ होती है !!* *लोग कहते है कि आदमी को अमीर होना चाहिए..* *और गांव के बुज़ुर्ग़ो का कहना है कि आदमी का जमीर होना चाहिए...।।* 🌹🌳🌷🌿🌺🌴💐🌸🍁 *चित्र* ही नहीं... *#चरित्र* भी सुंदर हो।" *भवन* ही नहीं... *#भावना* भी सुंदर हो।" *साधन* ही नहीं... *#साधना* भी सुंदर हो।" *दृष्टि* ही नहीं... *#दृष्टिकोण* भी सुंदर हो।""।। 💞 ***💞 🐚🔔🌞🔔🐚 💕 *स्नेह वंदन* ---------------- ©Dharmendra Kumar #Colors
Juhi Grover
मैं कौन हूँ, क्या हूँ, कहाँ से आई हूँ, कुछ समझ नहीं आता। जो भी हूँ, जहाँ से भी आई हूँ, कोई भी नहीं पूछता। न बहन हूँ, न बेटी हूँ, और न ही माँ बन पाई, लड़की ही है समझ आता। सोचने के लिए मजबूर हूँ, सब की बहनें हैं, सब की बेटियाँ भी हैं, बिना माँ के भी कोई नहीं, दूसरों के लिए दृष्टिकोण वैसा क्यों नहीं रहता? अगर कहीं हम अपनी ही बहन या फिर बेटी को भूल जाएँ, हमारी माँ किसी भद्दी सोच की शिकार हो जाए, तो क्या कोई दूसरा साथ देगा, उसका दृष्टिकोण क्यों बदलेगा? दूसरों के लिए जब हम खड़े होना सीखेंगे, तभी कोई हमारे लिए सामने आयेगा, समय निसंदेह लगेगा, मग़र हमें इतना भी समझ नहीं आता। मैं कौन हूँ, क्या हूँ, कहाँ से आई हूँ, कुछ समझ नहीं आता। जो भी हूँ, जहाँ से भी आई हूँ, कोई भी नहीं पूछता।