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Anuradha T Gautam 6280
Manjul
मुझे नामों में नाम मिले चेहरे पर चेहरे.. चारों तरफ़ लगे हुए थे पहरे ओहदों के, अमीरी के, सब के अलग - अलग चेहरे. ढूंढना चाहे हर पते पर ईमान ना मिला मुझे लोग तो मिले लेकिन इंसान ना मिला. ©Manjul Sarkar #mask #chehre #ढोंगी #Ohde
Poonam Ritu Sen
देह की प्यास उसे निरंतर शैतान बनाते रही, भावशून्य मन,उसके हैवानियत का रूप प्रदर्शित करते रही, पर फिर भी वह तृप्त प्राप्त कर ना सका, लोगों की आस्था और विश्वास के साथ खेलता रहा, पैसों के मोह में धर्म की बलि देता गया, पवित्र स्थानों को दूषित विचारों से मैला कर दिया, अभिमानी सारथी बन अंधविश्वास का रथ चलाता गया संन्यासी के भेष में दोहरा व्यक्तित्व छुपाता रहा, साधुजन कहलाने की चाह में असाध बनकर ढोंग रचता रहा... #व्यंग्य लिखने की एक कोशिश धार्मिक अराजकता और #ढोंगी साधुओं के ऊपर कटाक्ष #yqdidi #yqbaba #हैवान #शैतान #आस्था #मोह #सारथी #रथ #सन्यासी #स
Shiwalika_SSS
महफूज़ रखना खुद तक ही,अपने राज़ और अपनी कमियाँ, परछाई बन कर दग़ा देते हैं, ये ढोंगी लोग और ढोंगी दुनिया। #परछाई #राज़ #कमियां #ढोंगी #yqhindi #hindipoetry #hindiquotes #hindishayari
कमबख्त_कलम
माँ को याद करने का दिन केवल कल का था, आज से फिर आप अपनी फोन वाली अम्माओं को याद कर सकते हो। #ढोंगी लोग #yqbaba #yqdidi #yourquote #yourquotes #mothersday #mothersdayspecial $hatefakepeople #sambhav
NEHA SHARMA
सरकारी नौकरियों का बाज़ार कुछ इस कदर चला !! जिसके हाथ लगी वो जी गया जिसके हाथ ना लगी वो जीते जी मर गया ©neha lawaniya #मेरी #खेल #राजनीति #इंसान #समाज #ढोंगी #Goodevening
अश्वनी कुमार चौहान
चिकन चबाकर मटन दबाकर खाने वाले लोग एक पशु के मरने पर अफसोस जताते हैं आज पशु पीड़ा पर उनको पीड़ा होती है जो प्रोटीन समझ पशुओं को चट कर जाते हैं #RIPHUMANITY #ढोंग #ढोंगी
Ashu___
ढोंगी बाबा इश्क को भी नहीं छोड़ा इन बाबाओं ने इश्क़ के नाम पर भी अंधविश्वास फैला रखा है इन डोंगी बाबाओं ने...! #ढोंगी बाबा
Trishila Salve
*आठवतयं तिला आज* आठवतयं तिला आज सुरुवातीला किती सहज आणि सुंदर लिहायचासं तू... ओघवतेपणाने... मांडायचीस तिची वेदना... दर्दी शब्दात... कनवाळू अक्षरात... प्रत्येकीला वाटायचं तू तिच्याबद्दल लिहलयं... कारण ती इथून तिथून सारखी ना...! थोडीशी हळवी... मग सहज ती तुझ्या प्रत्येक शब्दात, प्रत्येक अक्षरात तिलाच शोधायची... कधी तुझी प्रेयसी बनून... कधी तुझी सखी बनून... कधी तुझी प्रीत बनून... कधी तुझी बहीण बनून... कधी तुझी आई बनून... आणि तुही आणायचासं आव आकंठ तिच्या प्रेमात बुडाल्याचा... उधळाचास शब्दांची फुले... बांधायचासं अक्षरांची तोरणे... त्याला भरायचा अश्रुचा दर्दी रंग... अन नजाकतीने पेश करायचास... तिच्यावरील ढोंगी प्रेमाची कविता... आणि घ्यायचास टाळीवर टाळी... प्रत्येक उच्छवासावर... त्याच तिच्यावरील ढोंगी कवितेने तुला बहाल केलं कवित्व, श्रेष्ठ कविपद... स्त्रीवादी कविपद... अन बदलास तू... तुझी प्रेमकविता बनली थोडी उथळ... तिच्या सौंदर्याच वर्णन करणारी... तिच्याच शरीराचं प्रदर्शन मांडणारी... तिची स्त्रीसुलभ भावनाही टाळीसाठी तू लिहलेली... आता तुझी कविता ती वाचत नाही... त्यात ती स्वतःला शोधत नाही... शब्दाला दाद देत नाही... आताच्या तुझ्या कवितेत ती असतेच कुठे रे...? तुझ्या कवितेत असते फक्त एक स्त्री... तुला प्रसिद्ध करणारी... त्रिशिला साळवे ९११२८५९६६९ कविता जीवनाची