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चाँदनी
भारत पुरुषप्रधान देश है इसमें पुरुषों की कोई गलती नही फ़िर गलती किसकी है इन्हें प्रधान बनाया कौन ???? "स्त्रियाँ " ©चाँदनी #आख़िर कौन???
Shreya Mishra
आखिर क्या कसूर है उसका?? महज तीन वर्ष की आयु में उसने ये सवाल किया.. लोगो ने दबाव दिया,अपनों ने नकार दिया.. उसके पावन अबोध मन को कौन समझाए.. एक काली रात ने उसके मासूमियत को शर्मसार किया.. तीन वर्ष की मासूम को समझ ना आया कि जिन अपनों ने प्यार दिया, उड़ने को पंख दिया,घर की नन्ही लक्ष्मी नाम दिया.. आज उन्होंने ही उसे क्यों नकार दिया .. क्यों उसे बेटी नहीं कलंक नाम दिया, जिस मां पिता ने उसको हमेशा दिर्घायु होने का आशीर्वाद दिया.. आज उन्होंने ही क्यों उसे शरीर त्यागने का अभिशाप दिया.. सवाल तो बस यही था कि आखिर कसूर क्या है उसका? इसी सवाल पर अपनों ने भी पराय होने का प्रमाण दिया। Shreya Mishra_ #आख़िर क्या कसूर है उसका??
Rkumar
उसने मुझे छोड़ कर ठीक ही किया होगा आख़िर जान कर अपने प्यार के साथ गलत कौन करता है ©Rkumar उसने #मुझे #छोड़ कर #ठीक ही किया होगा #आख़िर जान कर अपने #प्यार के साथ #गलत कौन करता है #rkumar #Journey
Rkumar
मत कहो उसे बेवफ़ा आख़िर वो मेरा यार था सच्चा झूठा या जैसा भी हो आख़िर वो मेरा प्यार था ©Rkumar मत कहो उसे #बेवफ़ा #आख़िर वो #मेरा_यार था #सच्चा #झूठा या जैसा भी हो आख़िर वो #मेरा_प्यार था #rkumar #Roses
C Vansh Shukla
#आख़िर क्यों आज उसकी याद मुझे फ़िर क्यूं आ रही है, मेरे बीते कल में फ़िर से खीची जा रही है। जहां से निकलने के लिए मैंने खुद को बर्बाद कर लिया, आज वो जगह मेरे पास चल के क्यूं आ रही है।।।।। #Love
Swati kashyap
Maneesh Ji
आख़िर कैसे बुझायी जायें प्यास इन लबों की इक़ उम्र गुज़र गई इनको सूखें हुए - MERI SHAYARI MERI DASTAAN #आख़िर कैसे #बुझायी जाये #प्यास इन #लबों की इक #उम्र #गुज़र गई है इनको #सूखे हुए - MERI SHAYARI MERI DASTAAN ...................................................................🥀 🥀 Aankhir Kaha Bhujhayi Jaye Pyas In Labo Ki Ik Umra Gujar Gai Inko Sukhe Hue
Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय"
आख़िर कब? °°°°°°°°°°°°°° कब होगा सूर्यास्त? मतलबपरस्त सोच का। कब होगा दहन? रावण वाली सोच का। कब होगा हनन? दानवी बोझ का। कब होगा सूर्योदय? सत्य के जीत का। -Rekha $harma #आख़िर कब #मंजुलाहृदय #Rekhasharma
kratika
*आख़िर सब कुछ छूट ही जाता है* घर वापस लौट रहा हूं अब । सामान बांधता जाता हूं, और साथ सोचता जाता हूं, "कुछ छूट तो नहीं रहा है?" एक दिन ऐसा भी आएगा, जब मृत्यु शैय्या पर लेटा यह सोचूंगा, "सब छूट रहा है..." आख़िर सब कुछ छूट ही जाता है । जब छूट ही जाना है सब कुछ तो फिर इतने हंगामे क्यों? डर की ये चीख़ पुकारें क्यों? सपनों के शोर-शराबे क्यों? ये आज की ममी बना करके कल जीने की नादानी क्यों? क्यों दौड़ लगाए जाता हूं? क्यों ख़ुद को हराए जाता हूं? बस बहुत हुआ, अब रुक जाऊं । जो मिला है उसको जी पाऊं, जीवन अमृत को पी पाऊं, बस इतना ही काफ़ी होगा कि अंतिम क्षण में कह पाऊं, "सब छूट गया मैं मुक्त हुआ ।" *-कपिल*