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Swapnil Panpatil

जब तक #करोना जैसी #महामारी जारी है #घर #बैठने में ही #समझदारी है #corona #takecare #besafe #BeHealthy #Thoughts

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जब तक करोना जैसी महामारी जारी है
घर बैठने में ही समझदारी है

©Swapnil Panpatil जब तक #करोना  जैसी #महामारी  जारी है
#घर  #बैठने  में ही #समझदारी  है

#corona #takecare #besafe #BeHealthy

Govind Yadav

सफलता 😎 की #ऊंचाई_पर☝ हो तो #धीरज_रखना, #पक्षी         
🦅 भी.    जानते       हैं कि #आकाश ⛅ में #बैठने ☝ की #जगह_नहीं होती ।। 😌

©Govind Yadav #Baad

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 1 - धर्मो धारयति प्रजाः आज की बात नहीं है। बात है उस समय की, जब पृथ्वी की केन्द्रच्युति हुई, अर्थात् आज से कई लाख वर्ष पूर्व की। केन्द्रच्युति से पूर्व उत्तर तथा दक्षिण के दोनों प्रदेशों में मनुष्य सुखपूर्वक रहते थे। आज के समान वहाँ हिम का साम्राज्य नहीं था, यह बात अब भौतिक विज्ञान के भू-तत्त्वज्ञ तथा प्राणिशास्त्र के ज्ञाताओं ने स्वीकार कर ली है। पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुवप्रदेश में बहुत बड़ा महाद्वीप था अन्तःकारिक। महाद्वीप तो वह आज भी है।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
1 - धर्मो धारयति प्रजाः

आज की बात नहीं है। बात है उस समय की, जब पृथ्वी की केन्द्रच्युति हुई, अर्थात् आज से कई लाख वर्ष पूर्व की। केन्द्रच्युति से पूर्व उत्तर तथा दक्षिण के दोनों प्रदेशों में मनुष्य सुखपूर्वक रहते थे। आज के समान वहाँ हिम का साम्राज्य नहीं था, यह बात अब भौतिक विज्ञान के भू-तत्त्वज्ञ तथा प्राणिशास्त्र के ज्ञाताओं ने स्वीकार कर ली है।

पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुवप्रदेश में बहुत बड़ा महाद्वीप था अन्तःकारिक। महाद्वीप तो वह आज भी है।

Rupam Rajbhar

दो दोस्त थे।
पहला दोस्त एक घोड़ा था और दूसरा दोस्त एक घोड़े पर बैठने वाला
वो दोनो दूध बेचने का काम किया करते
थे।
एक दिन घोड़ा और उसपे बैठेने वाले का
सड़क में दुर्घटना  हो गई।
एम्बुलेंस आया और उनकी जांच हुई तो
ये पता चला दोनों दोस्त इस दुनिया में नहीं रहे।
लेकिन एक बात डॉक्टर ने बताई कि
घोड़े पर बैठने वाला एक अंधा आदमी था। 

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RAKESH NAYAK

साथ बैठने को शामें बहौत थे साथ तेरे बैठने को शामें  बहोत थे पर चलते वक़्त के साथ वो खाली शामें बनकर रह गये
" एकांत में कुछ यादें " #Nojoto #hindiquotes #पुराने #यादों #में #कहीं #आज #भी #हो #तुम

Chandrika Lodhi

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जश्न  मना रहे थे जश्न हम सब आजादी का 
आत्मा मेरी कहकर यह चीत्कार उठी 
आजाद कहा हूँ मैं? मैं विद्रोह करने को तैयार बैठी 
न खाने की आजादी न पहनने की 
न उठने की आजादी न बैठने  
तालीमो की खान हूँ मैं आज भी गुलाम हूँ 
अपना अनकहा गुस्सा दिखा रही थी मैं 
पास में बैठी एक अम्मा मेरी बातो से मुस्कुरा रही थी 
मैंने वेबाकी से कहा हुआ क्या जो इतरा रही हो 
आप अजीब सी हंसी क्यो हंसे जा रहे हो 
थोड़ा सौम्य और सहजता से वो बोली 
तू अभी नदान है इसलिए इन बातो को गुलामी बोली 
मेट्रिक पास मैं उस उम्र की हूँ    मैं आज आजाद हूँ इसलिए गुलामी नही भूली 
वो बुरका मेरी अम्मी की पहचान थी वो घूघट मेरे ससुर की शान थी 
 वो जड़ो में सब्जी खुद ही  सुबह लाते थे   
परेशान न हूँ मैं इसलिए खुद बच्चो को स्कूल छोड़ आते थे  
उनकी दासी होना सौभाग्य समझती हूँ  
मैं आज भी इस आजादी में उनकी  प्रेम कैद को तरसती हूँ  
अब्बा मेरे  मुझे उठने बैठने के साथ तरीका भावनाओ का सीखाते थे 
 मैं सुंदर लगी इसलिए माँ से गोटे वाली चुनर मगवाते थे 
उनकी लाड़ली बनकर मैं सबकी जान थी 
अगर बात मनना है गुलामी तो उस गुलामी के हम भी गुलाम थे 
माथे पर माँग टीका सजाकर जब सास मेरी दुआओ देकर मुस्कुराती थी 
उनकी दी वो साड़ी मेरी मान कहलाती थी 
वो राखी पर आये न आये पर ज्नमदिन पर तोहफा जूरूर लाते थे 
भाई मुझे गुलाम बनाकर ही इतराते थे 
 वो सुनाने हर किस्सा मुझे दफ्तर का जब जल्दी घर आते थे 
 यही सोचकर मेरे कदम चाय बनाने किचन तक अपने आप चले जाते थे  
उनके सपनो को इंसान बनाने मैं सपनो को क्या खुद को भी छोड़कर मुस्कुराती हूँ 
उनकी बच्चो की माँ बनकर मैंअफसर होने से ज्यादा धौक जमाती हूँ 
   आज भी अपने पौधो की साख पर मुस्कुराती हूँ 
मैं गुलाम बनकल आज अपनी भावनाओं की ठगी सी रह जाती हूँ 
तामीजो और संस्कारो से गुलाम होना बड़प्पन है 
 आजाद होना है खुदगर्जी से आजाद हो जाओ 
तुम ज्येठ के टिसु बन जाओ 
विद्रोह करना है तो अन्याय का करो भवनाओ का नही  
मचलते समाज की नींव वना सकती हो तुम इस गुलामी में जीकर  बिना विद्रोह के क्रांति ला सकती हो 
 जो आजाद होकर दिन भर तुम्हारे प्रेम  की आह भरते है  
क्या वो चेहरे तुमको आजाद दीखते है  
 

 #NojotoQuote

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 10 – अनुगमन 'ठहरो!' जैसे किसी ने बलात्‌ पीछे से खींच लिया हो। सचमुच दो पग पीछे हट गया अपने आप। मुख फेरकर पीछे देखना चाहा उसने इस प्रकार पुकारने वाले को, जिसकी वाणी में उसके समान कृतनिश्चयी को भी पीछे खींच लेने की शक्ति थी। थोड़ी दूर शिखर की ओर उस टेढ़े-मेढ़े घुमावदार पथ से चढ़कर आते उसने एक पुरुष को देख लिया। मुण्डित मस्तक पर तनिक-तनिक उग गये पके बालों ने चूना पोत दिया था। यही दशा नासिका और उसके समीप के कपाल के कुछ भागों कों छोड़कर शेष मु

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
10 – अनुगमन

'ठहरो!' जैसे किसी ने बलात्‌ पीछे से खींच लिया हो। सचमुच दो पग पीछे हट गया अपने आप। मुख फेरकर पीछे देखना चाहा उसने इस प्रकार पुकारने वाले को, जिसकी वाणी में उसके समान कृतनिश्चयी को भी पीछे खींच लेने की शक्ति थी।

थोड़ी दूर शिखर की ओर उस टेढ़े-मेढ़े घुमावदार पथ से चढ़कर आते उसने एक पुरुष को देख लिया। मुण्डित मस्तक पर तनिक-तनिक उग गये पके बालों ने चूना पोत दिया था। यही दशा नासिका और उसके समीप के कपाल के कुछ भागों कों छोड़कर शेष मु

❤ रोहित सिंह राठौर❤

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हारकर बैठने से मुश्किले खत्म नही होती। 
मन को मारकर बैठने ख्वाहिशें खत्म नही होती। 
जिंदगी का मज़ा लेना है मुश्किलो को सजा देना है। 
यूं मायूस बैठने से राहे आसान नही होती।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 9 - सेवा का प्रभाव 'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
9 - सेवा का प्रभाव

'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

Prem Nirala

इद्दत(किसी के मरने के बाद विधवा विलाप)

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एक सिर्फ उसे ही मेरी शब(रात) में बैठने का हक हैं
एक सिर्फ उसे ही मेरी इद्दत में भी बैठने का हक हैं

prem_nirala_ इद्दत(किसी के मरने के बाद विधवा विलाप)
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