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#maxicandragon
वो बढते श्वेत केशों पर भी, परिपक्व झूठ की कला सीख रहा था उनके चम्मच, तकिया, बर्तन, पर्दे को अब वो अपना कह रहा था कहते थे जिन्हें , के क्या करेंगे, ऩ आएंगे, न थूकेंगे जहा पर कीमती सामान,तैखाने,संदूक और क्या है ताजमहल के अंदर खोज रहा था घिन आती थी देह से दुआ करते थे मौत की शायद इसलिए उनके पैरों से ज्यादा, वो अब निशां पैरो के संगमरमर पर धो रहा था कहता रहा बस की मै हूं न, वो बस मै तक सिमटा रह गया और एक मै था के अक्स ढूंढ रहा था उसमे उनका जो अब संग नही था #Sadharanmanushya #बडा_हुआ_तो_क्या_हुआ ©#maxicandragon वो बढते श्वेत केशों पर भी, परिपक्व झूठ की कला सीख रहा था उनके चम्मच, तकिया, बर्तन, पर्दे को अब वो अपना कह रहा था कहते थे जिन्हें , के क्या करेंगे, ऩ आएंगे, न थूकेंगे जहा पर कीमती सामान,तैखाने,संदूक और क्या है ताजमहल के अंदर खोज रहा था घिन आती थी देह से दुआ करते थे मौत की शायद इसलिए उनके पैरों से ज्यादा, वो अब निशां पैरो के संगमरमर पर धो रहा था
वो बढते श्वेत केशों पर भी, परिपक्व झूठ की कला सीख रहा था उनके चम्मच, तकिया, बर्तन, पर्दे को अब वो अपना कह रहा था कहते थे जिन्हें , के क्या करेंगे, ऩ आएंगे, न थूकेंगे जहा पर कीमती सामान,तैखाने,संदूक और क्या है ताजमहल के अंदर खोज रहा था घिन आती थी देह से दुआ करते थे मौत की शायद इसलिए उनके पैरों से ज्यादा, वो अब निशां पैरो के संगमरमर पर धो रहा था #Poetry #thought #poem #writer #kavita #shayeri #Sadharanmanushya #vishwasghati #बडा_हुआ_तो_क्या_हुआ
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