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Pankaj Kathpalia

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Mishra Kaushal

रोष में ही सही...
आ ही जाओ इक दफ़ा !
खड़ी दूर,हो संग फिर मेरे।। #रोष#misraword#misralove

Ananya Singh

पृथ्वी बैठीं तट पर 
सोच रही थी खिन्न में, 
क्या बचाउ और क्या बह जाने दूं 
अपने इस रोष निर्झर में...  #रोष #निर्झर #दिलकीबात #उदास_मन #तट

अशोक द्विवेदी "दिव्य"

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Anjali Raj

माना सारा सिस्टम देश का दुश्मन है।
मचा है हाहाकार हर तरफ़ क्रंदन है।
दिल पे रख कर हाथ तू सच ये बोल ज़रा।
क्या तूने खुद अपनी जान की की परवाह?
निकला घर से भीड़ बढ़ाने दुनिया की।
क्या तूने खुद मुँह और नाक की रक्षा की? 
सिस्टम की बारी तो बाद में ही आयी।
क्या उससे पहले तेरी सुधि जग पाई?
उस डॉक्टर में दिखा खुदा का रूप नहीं?
जो कहता था अभी कोरोना गया नहीं।
जा कर भीड़ में डुबकी किसने मारी थी?
किसके सिर पर घूमने की धुन तारी थी?
क्या लगता था तुझे कोरोना छोडेगा?
या आया तो फूंक मार के मोड़ेगा?
एक ने दस दस  में कोरोना फैलाया।
अब तुझको सिस्टम देश का याद आया।
हर तरफ़ उघाड़े नाक मुँह को लोग खड़े।
कब्रिस्तानों में मुँह ढके मृतक पड़े।
सब इक दूजे पे दोष मढ़ते जाओ।
बिना मास्क घूमो बाद में चिल्लाओ।
खुद तेरे सिस्टम से जो ना रुक पाया।
मंत्री जंत्री कौन किसी के काम आया?
मुँह ढक ले या कफ़न से मुँह ढंकवाएगा?
बचा नाक या देश की भी कटवाएगा?
अब भी चेत जा गर जो जान ये प्यारी है।
देश बचाने की अब तेरी बारी है।

अंजलि राज #अंजलिउवाच #YQdidi #कोरोना #मास्क #सिस्टम #रोष #बुरा-न-मानना

Shilpa yadav

#अभिलाषा #जिंदगी_का_सफर #क्षण #कँहा #रोष #dost RAVINANDAN Tiwari J P Lodhi. Sandip rohilla Priya Gour अं_से_अंशुमान #कविता

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चिर संचित अभिलाषा का
 अथाह समुद्र मंथन
खिंची खिंची सी हर एकांत 
सुबह का हैरत क्षण।।

©Shilpa yadav #अभिलाषा 
#जिंदगी_का_सफर 
#क्षण 
#कँहा 
#रोष 

#dost  RAVINANDAN Tiwari  J P Lodhi. Sandip rohilla Priya Gour अं_से_अंशुमान

अभिजित त्रिपाठी

हल्दी घाटी के  भीषण  रण में, राणा  निर्द्वंद्व घूमते थे।
जिधर भी  चेतक मुड़  जाता, लाशों के  ढेर झूमते थे।
मानसिंह   बस  एक   वार  में,  होश   गंवाकर  भागा।
अंत  युद्ध  का  निकट  आ  गया, तब  तंद्रा  से  जागा।
सेना को  ललकार  लगाता, बहलोल  खान तब आया।
उसने  राणा  पर वार  किया, और  पूरा  जोर  लगाया।
एक वार में दो कर दिया उसे, जब राणा को रोष हुआ।
हल्दीघाटी  में जोरों  से, जय  जगदम्बा  उद्घोष  हुआ।

©अभिजित त्रिपाठी #हल्दीघाटी #जगदम्बा #रण #चेतक #दो #रोष #जय #उद्घोष #राणा 

#hills

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 2 – ग्रह-शान्ति 'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
2 – ग्रह-शान्ति

'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते

hgdshots

कभी-कभी हवा अपने वेग से रोष ज़ाहिर करती है
तो कभी अपनी शीतलता और मधुरता से हिचकोले देती है 
मन की शांति के लिए ।।

 #nojoto#हवा#बातें #कहानी#रोष#मधुरता#शीतलता

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 9 - भोले भगवान हरीश आज इस ज्येष्ठ की दोपहरी में बहुत भटका, बहुत से दफ्तरों के द्वार खटखटाये उसने, अनेक समाचार-पत्रों और दूसरे कार्यालयों में पहुँचा; कितने दिनों से चल रहा है यह क्रम; कौन गिनने बैठा है इसे। विश्वविद्यालय से एम० ए० करके अपने साथ अनेक प्रशंसा पत्र लिये भटक रहा है हरीश। 'काम नहीं है।' उसके लिए! एक एम० ए० के लिए क्या विश्व में कहीं काम नहीं है? वह अकेला है, घर पर और कोई नहीं; घर ही नहीं उसके तो; पर पेट है न! अकेले को भी तो भूख

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
9 - भोले भगवान

हरीश आज इस ज्येष्ठ की दोपहरी में बहुत भटका, बहुत से दफ्तरों के द्वार खटखटाये उसने, अनेक समाचार-पत्रों और दूसरे कार्यालयों में पहुँचा; कितने दिनों से चल रहा है यह क्रम; कौन गिनने बैठा है इसे। विश्वविद्यालय से एम० ए० करके अपने साथ अनेक प्रशंसा पत्र लिये भटक रहा है हरीश। 'काम नहीं है।' उसके लिए! एक एम० ए० के लिए क्या विश्व में कहीं काम नहीं है? वह अकेला है, घर पर और कोई नहीं; घर ही नहीं उसके तो; पर पेट है न! अकेले को भी तो भूख
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